विष्णु भगवान की व्रत की कथा PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए विष्णु भगवान की व्रत की कथा PDF Download करने के लिए प्रदान करने जा रहे हैं। विष्णु भगवान् जी को सनातन हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। भगवान् श्री हरी विष्णु जी इस संसार में रहने वाले समस्त जीवों का पालन पोषण करते हैं तथा सृष्टि के सञ्चालन में बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।
ऐसा माना जाता है कि यदि आपके जीवन में विवाह सम्बन्धी समस्याएं उत्पन्न हो रही हो तो आपको विष्णु भगवान् जी के व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। यह व्रत गुरुवार अथवा बृहस्पतिवार के दिन किया जाता है। भगवान श्री हरी विष्णु जी के ऐसे अनेकों भक्त हैं जो इस व्रत का पालन उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए प्रत्येक गुरुवार को करते हैं।
इसीलिए यदि आप भी भगवान विष्णु जी का विशेष आशीर्वाद अपने जीवन में प्राप्त करना चाहते हैं तो हमारे इस लेख के द्वारा विष्णु भगवान की व्रत की कथा PDF प्रारूप में प्राप्त करके इस व्रत का पालन पूरी श्रद्धा के साथ अवश्य करें। इस व्रत का पालन करते हुए भगवान् श्री हरी विष्णु जी की व्रत की कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए क्योंकि व्रत कथा के पाठ के बिना व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता।
विष्णु भगवान की व्रत की कथा PDF
- कथा के अनुसार, प्राचीन काल की बात है। किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था। वह हर गुरुवार को व्रत रखकर दीन-दुखियों की मदद करके पुण्य प्राप्त करता था, परंतु ये बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी। वह न तो व्रत करती थी और न ही दान-पुण्य में विश्वास रखती थी। इतना ही नहीं, वह राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी।
- एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने के लिए वन गए। घर पर रानी और दासी थी। उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए।
- साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं। आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं। इतना सुनकर बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है।
- अगर धन अधिक है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें। परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई। उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए।
- तब साधु ने कहा, अगर तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना। गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने बालों को पीली मिट्टी से धोना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा का प्रयोग करना, कपड़े धोबी के यहां धुलने देना।
- इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा। इतना कहकर साधु के रूप में बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए। साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई।
भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा। - तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं। इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता। ऐसा कहकर राजा दूसरे देश चला गया। वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता। इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा। इधर, राजा के परदेस जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी।
- एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है। वह बड़ी धनवान है। तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए।
- दासी रानी की बहन के पास गई। उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी। दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया। जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया। दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी। ये सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी।
- कथा सुनकर और पूजा समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी। तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली। बताओ दासी क्यों आई थी।
- रानी बोली, बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं है। ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई। उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने की पूरी बात अपनी बहन को बता दी। रानी की बहन बोली, देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो।
- पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया। ये देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई। दासी रानी से कहने लगी, हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें।
- तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा। उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का केले की जड़ में अर्पित करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें। इससे बृहस्पतिदेव और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं। व्रत और पूजा की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई।
- सात दिन के बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी ने व्रत रखा। वह घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं। फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान की पूजा की। अब पीला भोजन की चिंता को लेकर दोनों बहुत दुखी हुईं। चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे। वह एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में पीला भोजन दासी को दे गए। भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया। उसके बाद वह सभी गुरुवार को व्रत और पूजा करने लगी।
- बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी। तब दासी बोली, देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था। इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब देव बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होने लगा है।
- रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने ये धन पाया है। इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए। इससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे।
- दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी। इससे पूरे नगर में उसका यश बढ़ने लगा। बृहस्पतिवार व्रत कथा के बाद श्रद्धा के साथ आरती की जानी चाहिए। इसके बाद प्रसाद बांटकर उसे ग्रहण करना चाहिए।
विष्णु भगवान की आरती | Vishnu Bhagwan Ki Aarti
ॐ जय बृहस्पति देवा
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
जो कोई आरती तेरी प्रेम सहित गावे।
जेष्टानंद बंद सो-सो निश्चय पावे।।
ॐ जय बृहस्पति देवा।।
विष्णु भगवान की व्रत की कथा PDF – पूजा विधि
- सर्वप्रथम बृहस्पतिवार को सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
- स्नान के बाद पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- पूजा के समय इन्ही पीले वस्त्रों को पहन कर पूजा करें।
- इस दिन भगवान सूर्य, माँ तुलसी और शालिग्राम भगवान को भी जल अर्पित करें।
- इसके पश्चात मंदिर में भगवान विष्णु का विधिवत पूजन करें।
- पूजन के लिए पीली वस्तुओं का ही प्रयोग करें, जैसे – पीले फूल, चने की दाल, पीली मिठाई, पीले चावल, और हल्दी।
- इसके बाद केले के पेड़ के तने पर चने की दाल के साथ पूजा की जाती है।
- केले के पेड़ में हल्दी युक्त जल चढ़ाएं।
- इसी के साथ केले के पेड़ की जड़ो में चने की दाल के साथ मुन्नके भी चढ़ाएं।
- इसके बाद घी का दीपक जलाकर उस पेड़ की आरती करें।
- अंत में केले के पेड़ के पास ही बैठकर व्रत कथा का श्रद्धा-भाव से पाठ करें।
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