Vigyan Bhairav Tantra PDF Hindi

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Vigyan Bhairav Tantra Hindi - Description

Dear readers, here we are offering Vigyan Bhairav Tantra PDF to all of you. Vigyan Bhairav Tantra is one of the highly important ancient scriptures that are available today. This book of Tantra Shastra once helped Tantra science to reach a new height. Under Vigyan Bhairav Tantra, the questions of the Goddess are asked in philosophical form, which have to be answered by Lord Shiva, but he does not give the answer to the Goddess. In return, he tells the method and by telling this method he tells the answer saying that if the goddess goes through this method she will get the answer to her question when the goddess asks what is your truth Lord then she Let’s answer them in the same way. Vigyan Bhairav Tantra is an authentic book of Tantra Science. This book has been compiled in the form of Shiva-Parvati dialogue. Satisfying the curiosities of Parvati, Shiva has revealed 120 procedures of Tantra.

Similarly, Bhairav Vigyan Tantra is a kind of do-and-know Sadhna because for any tantra to do is to know which means only when we do Sadhana do we get to know about it. These 120 activities of Tantra have been compiled in a book called Vigyan Bhairav Tantra. In the field of Tantra Vidya, to learn any kind of Vidya or to practice Tantra Mantra is to know about it.

Vigyan Bhairav Tantra Hindi PDF

  • विज्ञान का अर्थ है चेतना, भैरव का अर्थ वह अवस्था है, जो चेतना से भी परे है और तंत्र का अर्थ विधि है, चेतना के पार जाने की विधि। हम मूर्छित हैं, अचेतन हैं, इसलिए सारी धर्म-देशना अचेतन के ऊपर उठने की; चेतन होने की देशना है।
  • विज्ञान का मतलब है चेतना। और भैरव एक विशेष शब्द है, तांत्रिक शब्द, जो पारगामी के लिए कहा गया है। इसलिए शिव को भैरव कहते हैं और देवी को भैरवी- वे जो समस्त द्वैत के पार चले गए हैं।
  • शिव के उत्तर में केवल विधियाँ हैं। सबसे पुरानी, सबसे प्राचीन विधियाँ। लेकिन, तुम उन्हें अत्याधुनिक भी कह सकते हो, क्योंकि उनमें कुछ भी जोड़ा नहीं जा सकता। वे पूर्ण हैं- 112 विधियाँ। उनमें सभी संभावनाओं का समावेश है, मन को शुद्ध करने के, मन के अतिक्रमण के सभी उपाय उनमें समाए हुए हैं। और यह ग्रंथ, विज्ञान भैरव तंत्र, 5 हजार वर्ष पुराना है। उसमें कुछ भी नहीं जोड़ा जा सकता, कुछ जोड़ने की गुंजाइश ही नहीं है। यह सर्वांगीण है, संपूर्ण है, अंतिम है। यह सबसे प्राचीन है और साथ ही सबसे आधुनिक, सबसे नवीन। ध्यान की इन 112 विधियों से मन के रूपांतरण का पूरा विज्ञान निर्मित हुआ है।
  • ये विधियाँ किसी धर्म की नहीं हैं। वे ठीक वैसे ही हिंदू नहीं हैं, जैसे सापेक्षितवाद का सिद्धांत आइंस्टीन के द्वारा प्रतिपादित होने के कारण यहूदी नहीं हो जाता। रेडियो और टेलीविजन ईसाई नहीं हैं।
  • कोई नहीं कहता कि बिजली ईसाई है, क्योंकि ईसाई मस्तिष्क ने उसका आविष्कार किया है। विज्ञान किसी वर्ण या धर्म का नहीं है। और तंत्र विज्ञान है। तंत्र धर्म नहीं, विज्ञान है। इसीलिए किसी विश्वास की जरूरत नहीं है। प्रयोग करने का महासाहस पर्याप्त है।
  • तंत्र बहुत माना-जाना नहीं है। यदि माना-जाना है भी तो बहुत गलत समझा गया है। उसके कारण हैं। जो विज्ञान जितना ही ऊँचा और शुद्ध होगा, उतना ही कम जनसाधारण उसे समझ सकेगा। हमने सापेक्षतावाद के सिद्धांत का नाम सुना है। कहा जाता था कि आइंस्टीन के जीतेजी केवल 12 व्यक्ति उसे समझते थे। यही कारण है कि जनसाधारण तंत्र को नहीं समझा। और यह सदा होता है कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो तो उसे गलत जरूर समझते हो, क्योंकि तुम्हें लगता है कि तुम समझते जरूर हो।
  • दूसरी बात कि जब तुम किसी चीज को नहीं समझते हो, तुम उसे गाली देने लगते हो। यह इसलिए कि यह तुम्हें अपमानजनक लगता है। तुम सोचते हो, मैं और नहीं समझूँ, यह असंभव है। तीसरी बात कि तंत्र द्वैत के पार जाता है। इसलिए उसका दृष्टिकोण अतिनैतिक है। कृपा कर इन शब्दों को समझें- नैतिक, अनैतिक, अति नैतिक। नैतिक क्या है, हम समझते हैं; अनैतिक क्या है, वह भी हम समझते हैं। लेकिन जब कोई चीज अतिनैतिक हो जाती है, नैतिक-अनैतिक दोनों के पार चली जाती है, तब उसे समझना कठिन हो जाता है। तंत्र अतिनैतिक है।
  • ऐसे समझो, औषधि अति नैतिक है। वह न नैतिक है, न अनैतिक। चोर को दवा दो तो उसे लाभ पहुँचाएगी। संत को दो तो उसे भी लाभ पहुँचाएगी। वह चोर और संत में भेद नहीं करेगी। दवा वैज्ञानिक है। तुम्हारा चोर या संत होना उसके लिए अप्रासंगिक है।
  • तंत्र कहता है, तुम आदमी को बदलाहट की प्रामाणिक विधि के बिना नहीं बदल सकते। मात्र उपदेश से कुछ नहीं बदलता। पूरी जमीन पर यही हो रहा है। इतने उपदेश, इतनी नैतिक शिक्षा, इतने पुरोहित, इतने प्रचारक! पृथ्वी उनसे पटी है। और फिर भी सब कुछ इतना अनैतिक है! इतना कुरूप है। ऐसा क्यों हो रहा है? तंत्र तुम्हारी तथाकथित नैतिकता की, तुम्हारे सामाजिक रस्म-रिवाज की चिंता नहीं करता।
  • इसका यह अर्थ नहीं है कि तंत्र तुम्हें अनैतिक होने को कहता है। नहीं, तंत्र जब तुम्हारी नैतिकता की ही इतनी कम फिक्र करता है, तो वह तुम्हें अनैतिक होने को नहीं कह सकता। तंत्र तो वैज्ञानिक विधि बताता है कि चित्त को कैसे बदला जाए। और एक बार चित्त दूसरा हुआ कि तुम्हारा चरित्र दूसरा हो जाएगा। एक बार तुम्हारे ढाँचे का आधार बदला कि पूरी इमारत दूसरी हो जाएगी।
  • ये 112 विधियाँ तुम्हारे लिए चमत्कारिक अनुभव बन सकती हैं। शिव ने ये विधियाँ प्रस्तावित की हैं। इसमें सभी संभव विधियाँ हैं। ये विधियाँ समस्त मानव जाति के लिए हैं। और वे उन सभी युगों के लिए हैं जो गुजर गए हैं। और जो आने वाले हैं। प्रत्येक ढंग के चित्त के लिए यहाँ गुंजाइश है। तंत्र में प्रत्येक किस्म के चित्त के लिए विधि है।
  • कई विधियाँ हैं। जिनके उपयुक्त मनुष्य अभी उपलब्ध नहीं हैं, वे भविष्य के लिए हैं। ऐसी विधियाँ भी हैं, जिनके उपयुक्त लोग रहे नहीं, वे अतीत के लिए हैं। लेकिन, डर मत जाना। अनेक विधियाँ हैं, जो तुम्हारे लिए ही हैं।

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