वट सावित्री व्रत कथा Book PDF Hindi

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वट सावित्री व्रत कथा Book Hindi - Description

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप वट सावित्री व्रत कथा Book PDF / Vat Savitri Vrat Katha Book PDF प्राप्त कर सकते हैं। वट सावित्री व्रत को हिन्दू धर्म में अत्यधिक उत्तम माना जाता है। वट सावित्री व्रत को विवाहित स्त्रियॉं द्वारा अपने पति की दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य की कामना हेतु किया जाता है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक रूप से अति उत्तम है अपितु यह पति – पत्नी के मध्य प्रेम एवं सौहार्द की वृद्धि भी करता है।
इस व्रत में बरगद के वृक्ष का पूजन किया जाता है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन देवी सावित्री ने यमराज जी से सत्यवान के प्राण पुनः प्राप्त किए थे। जैसा कि आप जानते हैं भारत विविधितताओं का देश है अतः कई स्थानों पर वट सावित्री व्रत को सन्तान प्राप्ति के लिए भी किया जाता है।

Vat Savitri Vrat 2022 Katha PDF / वट सावित्री व्रत कथा book pdf

पौराणिक मान्यता के अनुसार, मद्रदेश में अश्वपति नाम के धर्मात्मा राजा का राज था। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए राजा ने यज्ञ करवाया, जिसके शुभ फल से कुछ समय बाद उन्हें एक कन्या की प्राप्ति हुई, इस कन्या का नाम सावित्री रखा गया। जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उन्होंने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को अपने पतिरूप में वरण किया।
सत्यवान के पिता भी राजा थे परंतु उनका राज-पाट छिन गया था, जिसके कारण वे लोग बहुत ही द्ररिद्रता में जीवन व्यतीत कर रहे थे। सत्यवान के माता-पिता की भी आंखों की रोशनी चली गई थी। सत्यवान जंगल से लकड़ी काटकर लाते और उन्हें बेचकर जैसे-तैसे अपना गुजारा करते थे।
जब सावित्री और सत्यवान के विवाह की बात चली तब नारद मुनि ने सावित्री के पिता राजा अश्वपति को बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं और विवाह के एक वर्ष पश्चात ही उनकी मृत्यु हो जाएगी। जिसके बाद सावित्री के पिता नें उन्हें समझाने के बहुत प्रयास किए परंतु सावित्री यह सब जानने के बाद भी अपने निर्णय पर अडिग रही।
अंततः सावित्री और सत्यवान का विवाह हो गया। इसके बाद सावित्री सास-ससुर और पति की सेवा में लग गई। समय बीतता गया और वह दिन भी आ गया जो नारद मुनि ने सत्यवान की मृत्यु के लिए बताया था। उसी दिन सावित्री भी सत्यवान के साथ वन को गई। वन में सत्यवान लकड़ी काटने के लिए जैसे ही पेड़ पर चढ़ने लगा कि उसके सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी, कुछ वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट गया। कुछ ही समय में उनके समक्ष अनेक दूतों के साथ स्वयं यमराज खड़े हुए थे।
यमराज सत्यवान के जीवात्मा को लेकर दक्षिण दिशा की ओर चलने लगे, पतिव्रता सावित्री भी उनके पीछे चलने लगी। आगे जाकर यमराज ने सावित्री से कहा, ‘हे पतिव्रता नारी! जहां तक मनुष्य साथ दे सकता है, तुमने अपने पति का साथ दे दिया। अब तुम लौट जाओ’ इस पर सावित्री ने कहा, ‘जहां तक मेरे पति जाएंगे, वहां तक मुझे जाना चाहिए। यही सनातन सत्य है’ यमराज सावित्री की वाणी सुनकर प्रसन्न हुए और उनसे तीन वर मांगने को कहा।
सावित्री ने कहा, ‘मेरे सास-ससुर अंधे हैं, उन्हें नेत्र-ज्योति दें’ यमराज ने ‘तथास्तु’ कहकर उसे लौट जाने को कहा और आगे बढ़ने लगे किंतु सावित्री यम के पीछे ही चलती रही । यमराज ने प्रसन्न होकर पुन: वर मांगने को कहा। सावित्री ने वर मांगा, ‘मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए। इसके बाद सावित्री ने यमदेव से वर मांगा, ‘मैं सत्यवान के सौ पुत्रों की मां बनना चाहती हूं।
कृपा कर आप मुझे यह वरदान दें’ सावित्री की पति-भक्ति से प्रसन्न हो सावित्री से तथास्तु कहा, जिसके बाद सावित्री न कहा कि मेरे पति के प्राण तो आप लेकर जा रहे हैं तो आपके पुत्र प्राप्ति का वरदान कैसे पूर्ण होगा। तब यमदेव ने अंतिम वरदान को देते हुए सत्यवान की जीवात्मा को पाश से मुक्त कर दिया। सावित्री पुनः उसी वट वृक्ष के लौटी तो उन्होंने पाया कि वट वृक्ष के नीचे पड़े सत्यवान के मृत शरीर में जीव का संचार हो रहा है। कुछ देर में सत्यवान उठकर बैठ गया। उधर सत्यवान के माता-पिता की आंखें भी ठीक हो गईं और उनका खोया हुआ राज्य भी वापस मिल गया।

वट सावित्री व्रत की पूजा विधि

  • इस दिन महिलाएं सुबह उठकर सभी कामों से निवृत होकर स्नान कर लें।
  • उसके बाद नए वस्त्र पहनकर सोलह श्रृंगार करें।
  • फिर पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी, प्लेट या डलिया में सही से रख दें।
  • फिर वट (बरगद) वृक्ष के नीचे पूजा की सभी सामग्री रखने के बाद स्थान ग्रहण करें।
  • इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें।
  • फिर धूप, दीप, रोली, भिगोएं चने, सिंदूर आदि से पूजा करें।
  • इसके बाद लाल कपड़ा अर्पित करें और फल चढ़ाएं।
  • फिर बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें।
  • इसके बाद बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं।
  • अब धागे को पेड़ में लपेटते हुए जितना संभव हो सके 5,11, 21, 51 या 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें।
  • आखिरी में सावित्री-सत्यवान की कथा पंडितजी से सुनने के बाद उन्हें यथासंभव दक्षिणा दें।
  • आप चाहें तो कथा खुद भी पढ़ सकती हैं।
  • उसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनका आशीर्वाद लें।
  • फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें।

वट सावित्री व्रत की आरती / Vat Savitri Vrat Aarti Hindi PDF

अश्वपती पुसता झाला।।

नारद सागंताती तयाला।।

अल्पायुषी सत्यवंत।।

सावित्री ने कां प्रणीला।।

आणखी वर वरी बाळे।।

मनी निश्चय जो केला।।

आरती वडराजा।।1।।

दयावंत यमदूजा।

सत्यवंत ही सावित्री।

भावे करीन मी पूजा।

आरती वडराजा ।।

ज्येष्ठमास त्रयोदशी।

करिती पूजन वडाशी ।।

त्रिरात व्रत करूनीया।

जिंकी तू सत्यवंताशी।

आरती वडराजा।।2।।

स्वर्गावारी जाऊनिया।

अग्निखांब कचलीला।।

धर्मराजा उचकला।

हत्या घालिल जीवाला।

येश्र गे पतिव्रते।

पती नेई गे आपुला।।

आरती वडराजा।।3।।

जाऊनिया यमापाशी।

मागतसे आपुला पती।

चारी वर देऊनिया।

दयावंता द्यावा पती।

आरती वडराजा ।।4।।

पतिव्रते तुझी कीर्ती।

ऐकुनि ज्या नारी।।

तुझे व्रत आचरती।

तुझी भुवने पावती।।

आरती वडराजा ।।5।।

पतिव्रते तुझी स्तुती।

त्रिभुवनी ज्या करिती।।

स्वर्गी पुष्पवृष्टी करूनिया।

आणिलासी आपुला पती।।

अभय देऊनिया।

पतिव्रते तारी त्यासी।।

आरती वडराजा।।6।।

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