वैशाख पूर्णिमा की व्रत कथा | Vaishakh Purnima Vrat Katha Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप वैशाख पूर्णिमा की व्रत कथा PDF / Vaishakh Purnima Vrat Katha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। पूर्णिमा व्रत का हिन्दू सनातन धर्म में बहुत अधिक महत्व है। इस अवसर पर भगवान श्री हरि विष्णु जी का विशेष पूजन किया जाता है जिसके प्रभाव से व्यक्ति विभिन्न प्रकार के संकटों से मुक्त हो सकता है। वैशाख पूर्णिमा के दिन सूर्य संक्रांति होने के कारण इस दिन पितृ तर्पण एवं स्नान-दान करने से भी आपको पुण्य फलों की प्राप्ति होगी।
यदि आप वैशाख पूर्णिमा के दिन किसी भी प्रकार का शुभ कार्य करते हैं तो आपको अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। विष्णु पुराण , मत्स्य पुराण , ब्रह्म पुराण तथा नारद पुराण के अंतर्गत वैशाख पूर्णिमा के दिन दिये गये दान के विशेष महत्व को उल्लेखित किया गया है। इस दिन किए गए दान से मनुष्य अक्षय पुण्य फल प्राप्त होता है। अतः इस दिन तीर्थ स्नान करने के उपरांत व श्रद्धा अनुसार अन्न, जल, स्वर्ण अथवा वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।
वैशाख पूर्णिमा की व्रत कथा PDF | Vaishakh Purnima Vrat Katha PDF
द्वापुर योग में एक समय की बात है मां यशोदा ने भगवान कृष्ण जी से कहा कि हे कृष्ण तुम सारे संसार के उत्पन्नकर्ता, पोषक हो आज तुम मुझे ऐसे व्रत कहों जिससे स्त्रियों को मृत्युलोक में विधवा होने का भय नहीं रहे तथा यह व्रत सभी मनुष्यों की मनोकामनाएं पूर्ण करने वाला हो। यह सुनकर श्रीकृष्ण ने कहा हे मां आपने मुझसे बहुत ही सुंदर सवाल किया गिया है। मैं आपको विस्तारपूर्वक बताता हूं।
सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णमासियों का व्रत करना चाहिए। इस व्रत करने से स्त्रियों को सौभाग्य संपत्ति आदि की प्राप्ति होती और संतान की रक्षा होती है। यह व्रत अचल सौभाग्य को देने वाला एंव भगवान शिव के प्रति मनुष्य मात्र की भक्ति को बढ़ाने वाला वाला व्रत है। तब यशोदा जी कहती है कि हे कृष्ण सर्वप्रथम इस व्रत को मृत्युलोक में किसने किया था।
इसके विषय में विस्तार पूर्वक मुझे बताओं। तब श्री कृष्ण भगवान कहते है कि इस भू मंडल पर एक अत्यंत प्रसिद्ध राजा चंद्रहास्य से पालित अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण कातिका नाम की एक सुंदर नगरी थी। वहां पर धनेस्वर नाम का एक ब्राह्मण निवास करता था। उसकी स्त्री अति सुशीला रूपवती स्त्री थी।
दोनों ही उस नगरी में बड़े प्रेम के साथ निवास करते थे। घर में धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी। उनको एक बड़ा दुख था। उनके यहां कोई संतान नहीं थी, इस दुख से वे अत्यन्त दुखी रहा करते थे। एक समय एक योगी नगरी में आया था। वह योगी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर के सभी के घर से भिझा लाकर भोजन किया करता था, रूपवती से वह भिझा नहीं लेता था।
उस योग ने रूपवती से भिझा न लेकर के और अन्य दूसरे घर से भिझा लेकर के भिझा के अन्न को गंगा के किनारे जाकर के बड़े प्रेम से खा रहा था। तब ही धनेस्वर ने योगी को ऐसा करते हुए देख लिया था। अपनी भिझा के अनादर से दुखी होकर के धनेस्वर योगी से कहता है कि हे माहत्मन आप सभी घरों से भिझा लेते हैं, लेकिन मेरे घर की भिझा कभी नहीं लेते हो, इसका कारण क्या है।
तब योगी ने कहा कि मैं निसंतान के घर की भीख पतितों के अन्न के समान हो जाती है और जो पतितों का अन्न खाता है वह भी पतित यानि पापी हो जाता है। चूंकि तुम निसंतान हो तुम्हारे यहां कोई संतान नहीं है। अत: पतित हो जाने के भय से तुम्हारे घर की भीझा नहीं लेता हूं। धनेस्वर यह बात सुनकर के अपने मन में बड़ा दुखी हुआ और हाथ जोड़कर के योगी के पैरों पर गिर पड़ा, तथा आतुर भाव से कहने लगा कि हे महाराज ऐसा है तो आप मुझे कोई पुत्र प्राप्ति का उपाय बताइए।
आप सब कुछ जानने वाले हैं, आप मुझ पर अवश्य कृपा करें। धन की मेरे यहां कोई कमी नहीं है, लेकिन पुत्र यानि संतान न होने के कारण बहुत दुखी हो गया हूं। मेरे इस दुख का हरण कर लिजिए, आप सामर्थवान है। तब योगी जी यह सुनकर कहने लगे कि हे ब्राह्मण तुम चंड़ीदेवी की आराधना करो, तब ब्राह्मण घर आकर अपनी पत्नि को पूरी व्रतांत कहकर स्वयं वन में चला गया, वहां पर उसने चंडी की उपासना की और उपवास भी किया।
चंडी ने सोलहवें दिन उसको स्वप्न में दर्शन दिया और कि हे धनेस्वर जा तेरे यहां पुत्र होगा। लेकिन उसकी सोलह वर्ष की आयु में मृत्यु हो जाएगी। यदि तुम दोनों स्त्री पुरुष 32 पूर्णमासियों का व्रत श्रद्धापूर्वक और विधि पूर्वक करोगे तो वह दीर्घ आयु हो जाएगा। जितनी तुम्हारी सामर्थ हो उतने आटे के दीए बनाकर शिव जी का पूजन करना, लेकिन पूर्णमासी को 32 हो जाना चाहिए और प्रातकाल इस स्थान के समीप एक आम का वृक्ष दिखाई देगा, उस तुम चड़ कर फल तोड़कर शीघ्र अपने घर चले जाना और अपनी स्त्री को सारा वृतांत बताना और रितु स्नान करने के बाद वह स्वच्छ होकर के और शंकर जी का ध्यान करके फल को खा लेगी।
तब भगवान शंकर की कृपा से गर्भ ठहर जाएगा। जब ब्राह्मण प्रातकाल उठा तो उसने उस स्थान के पास एक आम का वृक्ष देखा, जिस पर बहुत सुंदर आम का फल लगा हुआ था। उस ब्राह्मण ने आम के पेड पर चड़कर फल को तोड़ने का प्रयतन किया और असफल रहा। तब उसने भगवान गणेश की वंदना करने लगा। इस प्रकार भगवान गणेश भगवान गणेश जी की प्रार्थना करने पर उनकी कृपा से धनेस्वर ने आम का फल तोड़ लिया और अपनी स्त्री को लाकर दे दिया।
धनेवस्वर की स्त्री कहे अनुसार फल को खा लिया और वह गर्भवती हो गई। देवी जी की अशिम कृपा से एक पुत्र की प्राप्ति हुई थी। उन्होंने उसका नाम देवीदास रखा। बालक अपने पति के घर में बड़ने लगा। भवानी कृपा से वह बालक पढ़ने में बहुत ही होशियर था। दुर्गा जी के अज्ञानुसार उसकी माता ने 32 पूर्णमासी के व्रत रखना शुरू कर दिया था, जिससे बालक दीर्घ आयु वाला हो जाए।
सोलहवा साल लगते ही देवीदास के पिता को बहुत ही चिंता हो गई थी, कहीं उनके पुत्र की मृत्यु इस साल नहीं हो जाए। इसलिए उन्होंने अपने मन में विचार किया कि यह दूर्घटना उनके सामने हो गई तो वे कैसे सहन कर पाएंगे। तो उन्होंने देवीदास के मामा को बुलवाया और उन्होंने कहा कि देवीदाश एक वर्ष के लिए काशी में जाकर विद्या का अध्ययन करें और उसको अकेला भी नहीं छोड़ना चाहिए।
इसलिए साथ मे तुम चले जाओं और एक वर्ष के बाद इसको वापस लौटा के ले आना। तब सारा प्रबंध करके उनके माता पिता ने देवीदास को एक घोड़े पर बैठाकर उसके मामा को उसके साथ ही भेज दिया। किंतु ये बात उसके मामा या और किसी को पता नहीं थी। धनेस्वर ने अपनी पत्नि के साथ माता भगवती के सामने मंगलकामना एवं दीर्घ आयु के लिए भगवती की आराधना पूर्णमासियों का व्रत करना आरंभ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने 32 पूर्णमासियों का व्रत पूरा किया।
एक दिन मामा और भांजा रात्रि बिताने के लिए एक गांव में ठहरे थे वहां पर एक ब्राह्मण की सुंदर लड़की का विवाह होने वाला था। जहां बरात रुकी हुई थी वहां पर ही देवीदास और उनके मामा ठहरे हुए थे। इसके बाद लड़की ने देवीदास से विवाह को अपना पति मान लेती है और उससे ही विवाह करने के लिए कहती है लेकिन देवीदास ने अपनी आयु के बारे में बताता है। लेकिन इस लड़की ने कहा कि जो गति आपकी होगी वही मेरी होगी। हे स्वामी आप उठिए और भोजन कर लिजिए। इसके बाद देवी दास और उसकी पत्नि दोनों ने भोजन किया।
सुबह देवीदास ने अपनी पत्नि को तीन नगों से जड़ी एक अंगूठी और रुमाल दिया। मेरा मरण और जीवन देखने के लिए एक पुष्प वाटिका बना लो। जब मेरा प्राण अंत होगा तो ये फूल सुख जाएंगे। ये फिर से हरे भरे हो जाए तो जान लेना की मैं जीवित हूं। भगवान कृष्ण कहते ही की हे माता देवीदास विद्या अध्ययन के लिए काशी चला गया। कुछ समय बीत जाने के बाद सर्प देवीदास के पास आता है और देवीदास के ड़स ने का प्रयत्न करता है। लेकिन व्रत राज के प्रभाव से देवीदास को काट नहीं पाया क्योंकि उसकी माता ने पहले ही 32 पूर्णमासी के व्रत पूरे कर चुकी थी।
इसके बाद काल स्वयं वहां आया और उसके शरीर से उसके प्राणों को निकालने का प्रयत्न करने लगा। जिससे वह मूर्क्षित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। भगवान की कृपा से माता पार्वती से साथ शंकर जी वहां पर गए। माता पार्वती ने शंकर जी से कहा कि इसकी माता ने पहली 32 पूर्णमासी का व्रत किया है और आप उसके प्राणदान दें। इस प्रकार शिवजी उसको प्राण दान देते है। और काल को भी पिछे हटना पड़ा। देवीदास स्वस्थ होकर पुन बैठ गया। उधर उसकी स्त्री उसके काल की प्रतिक्षा किया करती थी।
जब उसने देखा की पुषपवाटिका में पुष्प और पत्ते नहीं रहे तो उसको अत्यंत आश्चर्य हुआ। लेकिन जब वाटिका हरी भरी हो गई तो वह जान गई की उसके पति को कुछ नहीं हुआ है। यह देखकर के वह बहुत प्रसन्न मन से अपने पिता से कहने लगी कि पिता जी मेरे पति जीवत है। आप उनको खोजो। सोलहवा साल बीत जाने पर देवीदास अपने मामा के साथ काशी से वापस चल दिया। उधर उनके सुसर घर से उनको खोजने के लिए जाने वाले ही थे।
लेकिन वे मामा भांजे वहां पहुंच गए। ससुर उनके अपने घर में ले गया और नगर निवासी वहा पर एकत्रित हो गए और उन्होंने निश्चय किया कि इस कन्या का विवाह इस ही बालक के साथ हुआ था। कन्या ने भी लड़को को पहचान लिया था। कुछ दिन बाद देवीदास अपनी पत्नि और मामा के साथ बहुत से उपहार लेकर अपने नगर की ओर चल देता है। जब वह गांव के निकट आ गया तो वहां के लोगों ने उसे देखकर उनके माता पिता को पहले ही खबर देदी। तुम्हारा पुत्र देवीदास अपनी पत्नि और मामा के साथ आ रहा है।
ऐसा सुनकर उनके माता पिता बहुत ही खुश हुए थे। पुत्र और पुत्र वधु की आने की खुशी में धनेस्वर ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया। तब भगवान श्री कृष्ण जी कहते है कि धनेस्वर 32 पूर्णमासी के प्रभाव से पुत्रवान हुआ। जो व्यक्ति या स्त्री इस व्रत को करते है जन्म जन्मांतर के पापों से छूटकारा प्राप्त कर लेते हैं।
वैशाख पूर्णिमा की व्रत पूजा विधि | Vaishakh Purnima Vrat Puja Vidhi PDF
- वैशाख पूर्णिमा के दिन गंगा जैसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए।
- स्नान आदि नित्यक्रिया के उपरान्त व्रत का रहकर विधि-विधान से पूजा करें।
- दान के लिए मिष्ठान, सत्तू, वस्त्र आदि दान का विशेष महत्त्व है।
- इसके साथ ही अपने जीवन की बाधाओं और संकटों को दूर करने के लिए इस दिन मूंग दाल का दान भी सकते हैं।
- इस दिन छात्रों को कलम या कॉपी भी दान में दी जा सकती है, इससे बृहस्पति देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- इसके अलावा वैशाख पूर्णिमा के दिन पूजन स्थान में श्रीयंत्र स्थापित कर सकते हैं।
- श्रीयंत्र माता लक्ष्मी का यंत्र माना जाता है और इसकी पूजा करने से माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- शास्त्रों में बताया गया है कि इस यंत्र की पूजा करने से धन संबंधित समस्याएं भी समाप्त हो जाती हैं और घर में कभी धन-धान्य की कमी नहीं रहती है।
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