ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध PDF Hindi

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ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध Hindi - Description

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध PDF प्राप्त कर सकते हैं। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन आज न केवल सरकार के लिए बल्कि समान्य नागरिकों के लिए अत्यधिक आवश्यक है क्योंकि प्रदूषण की समस्या आज मानव विकास की प्रक्रिया में सर्वाधिक बड़ा व्यवधान बना जा रहा है और इसका स्थायी निदान उपलब्ध नही है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के द्वारा न केवल हम अपने द्वारा फैलाये गए अधिक से अधिक ठोस अपशिष्ट को विभिन्न रूपों में परिवर्तित कर सकते हैं बल्कि पर्यावरण को भी काफी हद तक सुरक्षित कर सकते हैं । यदि आप ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध व विस्तृत जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस लेख को पढ़ सकते हैं तथा पीडीएफ़ प्राप्त कर सकते हैं।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर निबंध PDF

बढ़ते शहरीकरण और उसके प्रभाव से निरंतर बदलती जीवनशैली ने आधुनिक समाज के सम्मुख घरेलू तथा औद्योगिक स्तर पर उत्पन्न होने वाले अपशिष्ट के उचित प्रबंधन की गंभीर चुनौती प्रस्तुत की है। वर्ष-दर-वर्ष न केवल अपशिष्ट की मात्रा में बढ़ोतरी हो रही है, बल्कि प्लास्टिक और पैकेजिंग सामग्री की बढ़ती हिस्सेदारी के साथ ठोस अपशिष्ट के स्वरूप में भी बदलाव नज़र आ रहा है।
हालाँकि अपशिष्ट प्रबंधन की बढ़ती समस्या ने देश को इस विषय पर नए सिरे से सोचने को मज़बूर किया है और इस संदर्भ में कई तरह के सराहनीय प्रयास भी किये जा रहे हैं, परंतु इस प्रकार के प्रयास अभी तक देश भर में व्यापक स्तर पर अपशिष्ट प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिये अपनी उपयोगिता साबित करने में नाकाम रहे हैं।

प्रथम चरण – अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न करने वालों द्वारा कचरे को सूखे और गीले कचरे के रूप में छांट कर अलग करना।
द्वितीय चरण – घर घर जाकर कूड़ा इकट्ठा करना और छंटाई के बाद इसे प्रसंस्करण के लिए भेजना।
तृतीय चरण – सूखे कूड़े में से प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच जैसी पुनर्चक्रित हो सकने वाली उपयोगी सामग्री छांटकर अलग करना।
चतुर्थ चरण –  कूड़े के प्रसंस्करण की सुविधाओं, जैसे कम्पोस्ट बनाने, बायो-मीथेन तैयार करने, और कूड़े-करकट से ऊर्जा उत्पादन करने के संयंत्रों की स्थापना करना।
पंचम चरण –  अपशिष्ट के निस्तारण की सुविधा-लैंडफिल बनाना।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का संबंध अपशिष्ट पदार्थों के निकास से लेकर उसके उत्पादन व पुनःचक्रण द्वारा निपटान करने की देखरेख से है | अतः ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को निम्न रूप में परिभाषित किया जा सकता है : ठोस अपशिष्ट के उत्पादन का व्यवस्थित नियंत्रण, संग्रह, भंडारण, ढुलाई, निकास पृथ्थ्करण, प्रसंस्करण, उपचार, पुनः प्राप्ति और उसका निपटान | नगरपालिका अपशिष्ट पदार्थ (MSW ) शब्द का प्रायः इस्तेमाल शहर, गाँव या कस्बे के कचरे के लिए किया जाता है |
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन का संबंध अपशिष्ट पदार्थों के निकास से लेकर उसके उत्पादन व पुनः चक्रण द्वारा निपटान करने की देखरेख से है| अतः ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को निम्न रूप में परिभाषित किया जा सकता है: ठोस अपशिष्ट के उत्पादन का व्यवस्थित नियंत्रण, संग्रह, भंडारण, ढुलाई, निकास पृथ्थ्करण, प्रसंस्करण, उपचार, पुनः प्राप्ति और उसका निपटान |
नगरपालिका अपशिष्ट पदार्थ (MSW ) शब्द का प्रायः इस्तेमाल शहर, गाँव या कस्बे के कचरे के लिए किया जाता है जिसमे रोज़ के कचरे को इकठ्ठा कर व उसे ढुलाई के द्वारा निपटान क्षेत्र तक पहुंचाने का काम होता है| नगरपालिका अपशिष्ट पदार्थ (MSW) के स्त्रोतों में निजी घर, वाणिज्यिक प्रतिष्ठानो और संस्थाओं के साथ साथ औद्योगिक सुविधाएं भी आती हैं |
हालांकि, MSW  औद्योगिक प्रक्रियाओं से निकले कचरे, निर्माण और विध्वंस के मलबे, मल के कीचड़, खनन अपशिष्ट पदार्थों या कृषि संबंधी कचरे को अपने में शामिल नहीं करता है |नगरपालिका अपशिष्ट पदार्थों में विविध प्रकार की सामग्री आती है | इसमे खाद्य अपशिष्ट जैसे सब्जियाँ या बचा हुआ मांस, बचा हुआ खाना, अंडे के छिलके आदि ,जिसे गीला कचरा कहा जाता है ,और साथ ही साथ कागज़, प्लास्टिक, टेट्रापेक्स,प्लास्टिक के डिब्बे, अखबार, काँच की बोतलें, गत्ते के डिब्बे, एल्युमिनियम की पत्तियाँ, धातु की चीज़ें, लकड़ी के टुकड़े इत्यादि ,जिसे सूखा कचरा कहा जाता है ,जैसे अपशिष्ट पदार्थ आते हैं |

अपशिष्ट (Waste) क्या है?

  • शहरीकरण, औद्योगीकरण और जनसंख्या में विस्फोट के साथ ठोस अपशिष्ट प्रबंधन 21वीं सदी में राज्य सरकारों तथा स्थानीय नगर निकायों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गई है।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, अपशिष्ट का आशय हमारे प्रयोग के पश्चात् शेष बचे हुए अनुपयोगी पदार्थ से होता है। यदि शाब्दिक अर्थ की बात करें तो अपशिष्ट ‘अवांछित’ और ‘अनुपयोगी सामग्री’ को इंगित करता है।

अपशिष्ट को निम्नलिखित भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है: 

  • ठोस अपशिष्ट (Solid Waste): ठोस अपशिष्ट के तहत घरों, कारखानों या अस्पतालों से निकलने वाला अपशिष्ट शामिल किया जाता है।
  • तरल अपशिष्ट (Wet Waste): अपशिष्ट जल संयंत्रों और घरों आदि से आने वाला कोई भी द्रव आधारित अपशिष्ट को तरल अपशिष्ट के तहत वर्गीकृत  किया जाता है।
  • सूखा अपशिष्ट (Dry waste): अपशिष्ट जो किसी भी रूप में तरल या द्रव नहीं होता है, सूखे अपशिष्ट के अंतर्गत आता है।
  • बायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट (Biodegradable Waste): कोई भी कार्बनिक द्रव्य जिसे मिट्टी में जीवों द्वारा कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी और मीथेन में संश्लेषित किया जा सकता है।
  • नॉनबायोडिग्रेडेबल अपशिष्ट (Nonbiodegradable Waste:): कोई कार्बनिक द्रव्य जिसे कार्बन-डाइऑक्साइड, पानी और मीथेन में संश्लेषित नहीं किया जा सकता।
  • प्रेस सूचना ब्यूरो (Press Information Bureau-PIB) द्वारा जारी वर्ष 2016 के आँकड़ों के अनुसार, भारत में प्रतिदिन लगभग 62 मिलियन टन अपशिष्ट का उत्पादन होता है।

पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य पर होता है प्रभाव

  • कई अध्ययनों में सामने आया है कि यदि अपशिष्ट का उचित प्रबंधन न किया जाए तो ये समुद्री और तटीय जैसे विशिष्ट पारिस्थितिकी तंत्रों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता हैं। समुद्री अपशिष्ट को बीते कुछ वर्षों से एक गंभीर चिंता के रूप में देखा जा रहा है। इससे न केवल समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की उत्पादकता पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि इससे कई समुद्री प्रजातियों का जीवन भी प्रभावित होता है।
  • प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों रूपों से अपशिष्ट हमारे स्वास्थ्य एवं कल्याण को भी कई तरह से प्रभावित करता है। जैसे- मीथेन गैस जलवायु परिवर्तन में योगदान करती है, स्वच्छ जल स्रोत दूषित हो जाते हैं।
  • अपशिष्ट से न केवल पारिस्थितिकी तंत्र और स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है, बल्कि यह समाज पर आर्थिक बोझ को भी बढ़ाता है। इसके अलावा अपशिष्ट प्रबंधन में भी काफी धन खर्च होता है। अपशिष्ट संग्रहण, उसकी छंटाई और पुनर्चक्रण के लिये एक बुनियादी ढाँचा बनाना अपेक्षाकृत काफी महंगा होता है, हालाँकि एक बार स्थापित होने के पश्चात् पुनर्चक्रण के माध्यम से धन कमाया जा सकता है और रोज़गार भी सृजित किया जा सकता है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) के अनुसार, भारत में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार करके 22 प्रकार की बीमारियों को नियंत्रित किया जा सकता है।

ठोस अपशिष्ट  प्रबंधन

राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/प्रदूषण नियंत्रण समितियों द्वारा प्रस्तुत वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 के अनुसार देश में रोजाना कुल 1,52,076 टन ठोस कूड़ा उत्पन्न होता है। रोजाना 1,49,748 टन कूड़ा, जो कि कूड़े की कुल मात्रा का 98.5 प्रतिशत इकट्ठा किया जाता है। लेकिन केवल रोजाना 55,759 टन (35 प्रतिशत) कूड़े का उपचार किया जाता है, 50,161 टन (33 प्रतिशत) लैंडफिल में फेंक दिया जाता है और 46,156 टन यानी रोजाना उत्पन्न होने वाले कुल कूड़े के एक तिहाई का कोई हिसाब नहीं रहता।
देश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की स्थिति का विहंगावलोकन इस प्रकार हैः

  1. 24 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में स्रोत पर ही छंटाई शुरू हुई।
  2. 22 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों में यह जारी।
  3. 25 राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों ने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन सुविधा के लिए जमीन का अधिग्रहण किया।
  4. अपशिष्ट प्रसंस्करण सुविधाएँ स्थापित-2028, अपशिष्ट प्रसंस्करण शुरू-160।
  5. लैंडफिल स्थानों की पहचान-1161, संचालन शुरू हुआ-37।

अपशिष्ट प्रबंधन संबंधी चुनौतियाँ

  • शहरीकरण में तीव्रता के साथ ही ठोस अपशिष्ट उत्पादन में भी वृद्धि हुई है जिसने ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को काफी हद तक बाधित किया है।
  • भारत में अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय वित्त, बुनियादी ढाँचे और प्रौद्योगिकी की कमी के कारण कुशल अपशिष्ट प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं।
  • हालाँकि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम-2016 में अपशिष्ट के अलगाव को अनिवार्य किया गया है, परंतु अक्सर बड़े पैमाने पर इस नियम का पालन नहीं किया जाता है।
  • अधिकांश नगरपालिकाएँ बिना किसी विशेष उपचार के ही ठोस अपशिष्ट को खुले डंप स्थलों पर एकत्रित करती हैं। अक्सर इस प्रकार के स्थलों से काफी बड़े पैमाने पर रोगों के जीवाणु पैदा होते हैं और आस-पास रहने वाले रोग भी इससे काफी प्रभावित होते हैं। इस प्रकार के स्थलों से जो दूषित रसायन भूजल में मिलता है वह आम लोगों के जन-जीवन को काफी नुकसान पहुँचाता है।
  • कई विशेषज्ञ इन स्थलों को वायु प्रदूषण के लिये भी ज़िम्मेदार मानते हैं।
  • एक अन्य समस्या यह है कि अपशिष्ट प्रबंधन के लिये जो वित्त आवंटित किया जाता है उसका अधिकांश हिस्सा संग्रहण और परिवहन को मिलता है, वहीं प्रसंस्करण तथा निपटान हेतु बहुत कम हिस्सा बचता है।
  • भारत में अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र का गठन मुख्यतः अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा किया जाता है जिनमें से अधिकांश शहरों में रहने वाले गरीब होते हैं। अनौपचारिक श्रमिक होने के कारण इन लोगों को कार्यात्मक और सामाजिक सुरक्षा नहीं मिल पाती है।
अपशिष्ट प्रबंधन निम्नलिखित  गतिविधियों का समूह है :
  1. कचरे का संग्रह, ढुलाई,प्रशोधन व निपटान
  2. उत्पादन का नियंत्रण, देखरेख व व्यवस्थापन, अपशिष्ट पदार्थों का संग्रह, ढुलाई, प्रशोधन व निपटान ; और
  3. प्रक्रिया में संशोधन, पुनः उपयोग व पुनर्चक्रण द्वारा अपशिष्ट पदार्थ की रोकथाम

अपशिष्ट प्रबंधन शब्द सभी प्रकार के कचरे से संबंध रखता है चाहे वह कच्चे माल की निकासी के दौरान उत्पन्न हुआ हो, या फिर कच्चे माल के मध्य और अंतिम उत्पाद के प्रसंस्करण के दौरान निकला हुआ हो या अन्य मानव गतिविधियों जैसे नगरपालिका (आवासीय, संस्थागत व वाणिज्यक), कृषि संबंधी और विशेष (स्वास्थ्य देखभाल, खतरनाक घरेलू अपशिष्ट, माल का कीचड़) से संबंधित हो | अपशिष्ट प्रबंधन का अभिप्राय स्वास्थ्य, पर्यावरण या सौदर्यात्मक पहलुओं पर कचरे के प्रभाव को कम करने का है |

  1. कचरे का उत्पादन
  2. कचरा कम करना
  3. कचरे को हटाना
  4. कचरे की ढुलाई
  5. अपशिष्ट प्रशोधन
  6. पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग
  7. भंडारण, संग्रह, ढुलाई और स्थानातरण
  8. उपचार
  9. भराव क्षेत्र निपटान
  10. पर्यावरण महत्व
  11. वित्तीय और व्यापारिक पहलू
  12. नीति और अधिनियम
  13. शिक्षण और प्रशिक्षण
  14. योजना और कार्यान्वयन

अपशिष्ट प्रबंधन के साधन विभिन्न देशों (विकसित व विकासशील देश), प्रदेशों (शहरी और ग्रामीण क्षेत्र), व्यावसायिक क्षेत्रों (आवासीय और औद्योगिक) में एकसमान नहीं हैं |
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