Tav Prasad Savaiye Hindi PDF Summary
Dear readers, here we are offering Tav Prasad Savaiye pdf in Hindi to all of you. It is requested all of you with folded hands make it a rule to recite this Nitnem daily and receive the eternal blessings of Guru Maharaj. The holy Bani of Japji Sahib is written by the first Guru Sahib Sri Guru Nanak Dev Ji Maharaj. One of the words of Sahib Shri Guru Nanak Dev Ji Maharaj is that it is very important for us to earn our money and that we take out the Daswantar (tenth part) of our time. And to make it easy for everyone, Guru Gobind Singh Ji Maharaj gave us this gift of Nitnem through which we can extract the Daswantar of our time and connect with Bani. Dhan Guru Nanak Dev Ji Maharaj has gifted this sacred text of Japji Sahib to the Sikh Panth which has a lot of juice and many blessings.
Tav Prasad Savaiye pdf in Hindi
त्वप्रसादि ॥ स्वये ॥
स्रावग सु्ध समूह सिधान के देखि फिरिओ घर जोग जती के ॥
सूर सुरारदन सु्ध सुधादिक संत समूह अनेक मती के ॥
सारे ही देस को देखि रहिओ मत कोऊ न देखीअत प्रानपती के ॥
स्री भगवान की भाइ क्रिपा हू ते एक रती बिनु एक रती के ॥१॥२१॥
माते मतंग जरे जर संग अनूप उतंग सुरंग सवारे ॥
कोट तुरंग कुरंग से कूदत पउन के गउन कउ जात निवारे ॥
भारी भुजान के भूप भली बिधि निआवत सीस न जात बिचारे ॥
एते भए तु कहा भए भूपति अंत कौ नांगे ही पांइ पधारे ॥२॥२२॥
जीत फिरै सभ देस दिसान को बाजत ढोल म्रिदंग नगारे ॥
गुंजत गूड़ गजान के सुंदर हिंसत हैं हयराज हजारे ॥
भूत भवि्ख भवान के भूपत कउनु गनै नहीं जात बिचारे ॥
स्री पति स्री भगवान भजे बिनु अंत कउ अंत के धाम सिधारे ॥३॥२३॥
तीरथ नान दइआ दम दान सु संजम नेम अनेक बिसेखै ॥
बेद पुरान कतेब कुरान जमीन जमान सबान के पेखै ॥
पउन अहार जती जत धार सबै सु बिचार हजारक देखै ॥
स्री भगवान भजे बिनु भूपति एक रती बिनु एक न लेखै ॥४॥२४॥
सु्ध सिपाह दुरंत दुबाह सु साज सनाह दुरजान दलैंगे ॥
भारी गुमान भरे मन मैं कर परबत पंख हले न हलैंगे ॥
तोरि अरीन मरोरि मवासन माते मतंगन मान मलैंगे ॥
स्री पति स्री भगवान क्रिपा बिनु तिआगि जहान निदान चलैंगे ॥५॥२५॥
बीर अपार बडे बरिआर अबिचारहि सार की धार भछ्या ॥
तोरत देस मलिंद मवासन माते गजान के मान मल्या ॥
गाड़्हे गड़्हान को तोड़नहार सु बातन हीं चक चार लव्या ॥
साहिबु स्री सभ को सिरनाइक जाचक अनेक सु एक दिव्या ॥६॥२६॥
दानव देव फनिंद निसाचर भूत भवि्ख भवान जपैंगे ॥
जीव जिते जल मै थल मै पल ही पल मै सभ थाप थपैंगे ॥
पुंन प्रतापन बाढ जैत धुन पापन के बहु पुंज खपैंगे ॥
साध समूह प्रसंन फिरैं जग सत्र सभै अवलोक चपैंगे ॥७॥२७॥
मानव इंद्र गजिंद्र नराधप जौन त्रिलोक को राज करैंगे ॥
कोटि इसनान गजादिक दान अनेक सुअमबर साज बरैंगे ॥
ब्रहम महेसर बिसन सचीपित अंत फसे जम फासि परैंगे ॥
जे नर स्री पति के प्रस हैं पग ते नर फेर न देह धरैंगे ॥८॥२८॥
कहा भयो जो दोउ लोचन मूंद कै बैठि रहिओ बक धिआन लगाइओ ॥
न्हात फिरिओ लीए सात समुद्रनि लोक गयो परलोक गवाइओ ॥
बास कीओ बिखिआन सो बैठ कै ऐसे ही ऐसे सु बैस बिताइओ ॥
साचु कहों सुन लेहु सभै जिन प्रेम कीओ तिन ही प्रभ पाइओ ॥९॥२९॥
काहू लै पाहन पूज धरयो सिर काहू लै लिंग गरे लटकाइओ ॥
काहू लखिओ हरि अवाची दिसा महि काहू पछाह को सीसु निवाइओ ॥
कोउ बुतान को पूजत है पसु कोउ म्रितान को पूजन धाइओ ॥
कूर क्रिआ उरिझओ सभ ही जग स्री भगवान को भेदु न पाइओ ॥१०॥३०॥
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