स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF Hindi

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार Hindi PDF Download

Free download PDF of स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार Hindi using the direct link provided at the bottom of the PDF description.

DMCA / REPORT COPYRIGHT

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार Hindi - Description

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF हिन्दी भाषा में प्रदान करने जा रहे हैं। स्वामी विवेकानन्द जी अत्यंत ही महान आध्यात्मवादी, समाज सुधारक, यथार्थवादी विचारक एवं महान सृजनात्मक विभूति के रूम में विख्यात थे। उन्होंने भारत को नव भारत बनाने तथा अत्यधिक ऊंचाई पर पहुँचाने के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान दिया तथा कठिन परिश्रम किया था।

उनका मानना था कि व्यक्ति को अपने जीवन में तब तक नहीं रुकना चाहिए जब तक कि वह अपना लक्ष्य हासिल न कर ले। स्वामी विवेकानंद जी समाज सेवा को सबसे बड़ी सेवा मानते थे। इसीलिए उन्होनें अपना सम्पूर्ण जीवन नैतिक व सामाजिक पुनरोद्धार के हित में समर्पित कर दिया था। आप भी इस लेख के द्वारा स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार के बारे में विस्तृत जानकारी आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF – महत्वपूर्ण बिन्दु

समाज की विविध समस्याओं के प्रति स्वामी विवेकानंद जी के भिन्न-भिन्न विचार निम्न प्रकार थे-

  • (i) वर्ण व्यवस्था का विरोध
  • (ii) अस्पृश्यता की निन्दा तथा गृहस्थ जीवन में आस्था
  • (iii) भारतीय संस्कृति में महान आस्था
  • (iv) भारत के यूरोपीकरण का विरोध
  • (v) समाज में क्रमिक सुधार
  • (vi) सामाजिक उत्थान हेतु धार्मिकता आवश्यक

(i) वर्ण व्यवस्था का विरोध –

  • वे भारत की प्राचीन वर्ण व्यवस्था के विरोधी थे। उनके अनुसार आधुनिक युग में वर्ण व्यवस्था सामाजिक अत्याचारों को प्रोत्साहन देने वाली है। इस वर्ण व जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज को खोखला कर दिया है।” वे एकाधिकारवाद के विरोधी थे। उन्होंने परम्परावादी ब्राह्मणों के पुरातन अधिकारवाद का खण्डन किया।
  • यह अधिकार शूद्रों (देश की बहुसंख्यक जनता) को वैदिक ज्ञान से वंचित करना था। उनके अनुसार सभी मनुष्य बराबर हैं और ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शूद्र का भेदभाव उचित नहीं।” सभी हर क्षेत्र में समान अधिकार होना चाहिए।

(ii) अस्पृश्यता की निन्दा तथा गृहस्थ जीवन में आस्था –

  • वे छूआछूत के विरोधी थे। ये सब व्यर्थ की बातें है। ईश्वर द्वारा निर्मित सभी जीव समान हैं फिर कोई अस्पृश्य क्यों माना जाए? संन्यासी होते हुए भी उनकी गृहस्थ जीवन में आस्था थी। गृहस्थ जो अपने समस्त उत्तरदायित्वों का अच्छी तरह से पालन करते हैं सबसे अधिक अच्छे हैं।

(iii) भारतीय संस्कृति में महान आस्था –

  • उनकी भारतीय संस्कृति में महान् आस्था व प्रबल विश्वास था। वे यह मानते थे कि भारतीय संस्कृति अक्षुण्य है और भारतीयों को अपनी संस्कृति को भूलना नहीं चाहिए।”
  • प्राचीन काल में भारतीयों ने अपनी संस्कृति का समस्त संसार में प्रसार किया था व भारत विश्व का आध्यात्मिक गुरु था।” यदि भारतीय अपनी इस आध्यात्मिकता को ग्रहण कर लें तो वह आज भी संसार के अगुवा बन सकते हैं।

(iv) भारत के यूरोपीकरण का विरोध –

  • वे भारत के यूरोपीकरण के विरोधी थे। भारतीय संस्कृति पर उन्हें अत्यधिक गर्व था। एक स्थान पर उनके द्वारा लिखा गया है कि ‘हमें अपने प्रकृति स्वभाव द्वारा विकसित होना चाहिए।
  • विदेशी समाजों की कार्य प्रणालियों को अपनाना व्यर्थ है। यह असंभव है।” वह उनके लिए कल्याणप्रद हैं, किन्तु भारत के लिए नहीं।

(v) समाज में क्रमिक सुधार –

  • वे समाज में क्रमिक सुधारों के पक्षपाती थे। समाज में धीरे-धीरे करके ही परिवर्तन व सुधार लाया जा सकता है एकदम से समाज में परिवर्तन करना असंभव है।
  • आध्यात्मिकता व धार्मिकता की भावना को ग्रहण करके जब हम क्रमशः प्रयत्न करेंगे तभी हम उन्नति कर सकते हैं।

(vi) सामाजिक उत्थान हेतु धार्मिकता आवश्यक –

  • स्वामी जी सामाजिक उत्थान हेतु धार्मिकता को आवश्यक मानते थे। उनके अनुसार धर्म भारत के जातीय जीवन का मेरुदण्ड है। उनका कथन है कि भारत में समाज सुधार के प्रचार के लिए नवीन सामाजिक प्रथा के द्वारा आध्यात्मिक जीवन को प्राप्त करना होगा।
  • भारत का प्रथम कर्तव्य धर्म प्रचार है व धार्मिकता को ग्रहण करके ही भारतीय समाज उन्नत हो सकता है।

स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचारों का वर्णन करें।

(1) जाति व्यवस्था –

  • जाति प्रथा भारत की एक महत्वपूर्ण एवं जटिल समस्या है। विभिन्न समयों पर विभिन्न सुधारकों ने इसे सुधारने तथा हल करने के अलग-अलग नाना प्रकार उपाय प्रस्तावित एवं प्रसारित किये परन्तु कालान्तर में उनके उपाय अस्थायी ही सिद्ध हुए।कबीर, शंकर, रामानुज तथा चैतन्य, आदि समाज-सुधारकों ने जाति प्रथा की कटु आलोचना तो अवश्य की, किन्तु उसे समूल समाप्त करने के लिए कोई दृढ़ उपाय नहीं बताया।
  • फलतः उनके विचारों का शिक्षित समाज पर केवल अस्थायी प्रभाव ही पड़ा और उनकी मृत्यु के पश्चात् यह समस्या पुनः उठ खड़ी हुई।
  • स्वामी विवेकानन्द भी एक समाज सुधारक थे, अतः उन्होंने भी अपना ध्यान जाति प्रथा पर केन्द्रित किया। उन्होंने यह अनुभव किया कि जाति प्रथा के भेदों का पूर्णतः उन्मूलन अथवा विनाश करना असम्भव है। परन्तु इसके कठोर बन्धनों को ढीला किया जा सके, तो समाज का पारी हित हो सकता है।
  • उन्होंने कहा कि धार्मिक तथा आध्यात्मिक जीवन में जाति प्रथा कोई भेद उत्पन्न नहीं करती। सन्यासियों में कोई जातिगत भेद-भाव नहीं होता। एक ब्राह्मण और एक शूद्र सन्यासी को समान अधिकार प्राप्त होते हैं। समाज पहले व्यावसायिक वर्गों में विभक्त था। कालान्तर में इस प्रथा में जटिलता इतनी अधिक बढ़ गयी कि समाज में यह एक गम्भीर समस्या बन गई।
  • स्वामी विवेकानन्द प्राचीन भारत की वर्ण व्यवस्था से अत्यधिक प्रभावित थे। उनका मत था कि उसी चतुवर्ण व्यवस्था को पुनः स्थापित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही ऐसे प्रयास करने चाहिए जिनसे ऊँच-नीच का भेद-भाव मिटकर समाज में समानता स्थापित हो सके।
  • स्वामी जी ने छुआ-छूत का भी विरोध किया। वे आत्मानुभूति एवं आत्मा-त्याग द्वारा समाज का हित करना चाहते थे।

(2) सामाजिक परिवर्तन में संयम पर विश्वास –

  • स्वामी विवेकानन्द की धारणा थी कि सामाजिक परम्परायें एवं रूढ़ियाँ समाज की आत्मरक्षा के सिद्धान्त पर आधारित होती है, किन्तु सामाजिक नियमों को यदि स्थिर रखा जाता है और उनमें परिवर्तन नहीं किया जाता तो समाज में बुराइयां उत्पन्न हो सकती हैं।
  • इसलिए स्वामी विवेकानन्द उन सामाजिक नियमों को ध्वंसात्मक कार्यवाही द्वारा समाप्त करना चाहते थे, जिन्होंने उस परम्परा की संस्था को आवश्यक बना दिया है।

(3) मूर्ति पूजा सम्बन्धी विचार –

  • स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। स्वामी रामकृष्ण परमहंस ‘काली माता’ के अनन्य भक्त थे। अतः स्वामी विवेकानन्द ने अन्य भारतीय समाज-सुधारकों की तरह मूर्ति पूजा का खण्डन अथवा विरोध नहीं किया। वह तो अन्धविश्वास तथा पाखण्ड के विरोधी थे और श्रद्धा एवं भक्ति को ईश्वर की प्राप्ति का साधन समझते थे।
  • उनका मत था, “आजकल यह आम बात हो गयी है कि सभी लोग अनायास ही इस बात को स्वीकार करते हैं कि मूर्ति पूजा ठीक नहीं है। मैं भी ऐसा कहता था और सोंचता था। उसके दण्ड श्वरूप मुझे एक ऐसे महापुरूष के पैरों तले बैठकर शिक्षा ग्रहण करनी पड़ी, जिन्होंने मूर्ति पूजा से ही सब कुछ पाया था।
  • मैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस की बात कर रहा हूँ। अगर मूर्ति-पूजा द्वारा इस तरह रामकृष्ण परमहंस जैसे व्यक्ति बन सकते हैं, तो हजारों मूर्तियों की पूजा करो।”

(4) यूरोपीयकरण के आलोचक –

  • उस समय सम्पूर्ण भारत पर अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित हो चुका था। अंग्रेज अपने साम्राज्य के स्थायित्व के लिए भारत का यूरोपीयकरण कर देना चाहते थे। लॉर्ड मैकाले के नेतृत्व में भारत में पाश्चात्य शिक्षा एवं सभ्यता का तेजी से प्रचार होने लगा था। स्वामी विवेकानन्द भारतीय आध्यात्मवाद और प्राचीन भारतीय संस्कृति के अनन्य भक्त थे।
  • ये किसी भी मूल्य पर भारतीय संस्कृति के नैतिक आदर्शों का त्याग नहीं करना चाहते थे। अतः उन्होंने समाज के यूरोपीयकरण का तीव्र विरोध किया। उन्होंने कहा, “हमें अपनी प्रकृति एवं स्वभाव के अनुसार ही विकास करना चाहिए। विदेशी समाजों की कार्य प्रणालियों को अपनाने का प्रयत्न करना व्यर्थ है; यह असम्भव भी है। यह हमारे लिए गौरवपूर्ण है कि हमको दूसरे राष्ट्रों के अनुरूप नहीं ढाला जा सकता।
  • मैं दूसरी जाति की संस्थाओं की आलोचना नहीं करता, वे उन लोगों के लिए ठीक है, परन्तु हमारे लिये नहीं है। उन लोगों ने दूसरे विज्ञानों, दूसरी संस्थाओं एवं दूसरी परम्पराओं की पृष्ठभूमि में अपनी वर्तमान अवस्था को प्राप्त कर लिया है। हम अपनी परम्पराओं तथा हजारों वर्ष से कर्म की पृष्ठभूमि में, स्वाभाविक रूप से अपनी मनोवृत्ति का अनुसरण कर सकते हैं और यह हमें करना पड़ेगा। हम पाश्चात्य लोगों की तरह नहीं हो सकते। अतः पाश्चात्य लोगों का अनुसरण करना व्यर्थ है।

नीचे दिये गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके आप स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF हिन्दी भाषा में डाउनलोड कर सकते हैं। 

Download स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF using below link

REPORT THISIf the download link of स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार PDF is not working or you feel any other problem with it, please Leave a Comment / Feedback. If स्वामी विवेकानंद के सामाजिक विचार is a copyright material Report This by sending a mail at [email protected]. We will not be providing the file or link of a reported PDF or any source for downloading at any cost.

RELATED PDF FILES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *