सुदूर संवेदन PDF Hindi

सुदूर संवेदन Hindi PDF Download

Free download PDF of सुदूर संवेदन Hindi using the direct link provided at the bottom of the PDF description.

DMCA / REPORT COPYRIGHT

सुदूर संवेदन Hindi - Description

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप सुदूर संवेदन PDF प्राप्त कर सकते हैं। सुदूर संवेदन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से आकाश में एक विशेष ऊंचाई अथवा दूरी से किसी भी भू-भाग अथवा उसके क्षेत्र के चित्र लेकर तथा विभिन्न प्राकर के आंकड़े एकत्रित करके उनका विश्लेषण किया जाता है। भारत में भी राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र द्वारा सुदूर संवेदन से संबन्धित कार्यों का आयोजन एवं निरीक्षण किया जाता है।
भारत का राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केन्द्र हैदराबाद में स्थित है तथा भारत सरकार के विज्ञान मंत्रालय के अंतरिक्ष विभाग द्वारा इसे नियंत्रित किया जाता है। सुदूर संवेदन का आरंभ पेरिस से हुआ माना जाता है। तथ्यों के अनुसार १८५८ ई. में जी. तोरांकन नाम के एक गुब्बारेबाज ने गुब्बारे के माध्यम से पेरिस शहर का एक चित्र सन खींचा था।

सुदूर संवेदन PDF (भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह प्रणाली की गाथा)

आई.आर.एस.-1ए का सफल प्रमोचन पूरे देश के लिए गर्व का क्षण था जिसने राष्‍ट्र के प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन हेतु विभिन्‍न आवश्‍यकतओं को पूरा करने के लिए उपग्रहों की परिपक्‍वता को दर्शाया। इसके लिस-। में जमीन पर 148 कि.मी. के प्रमार्ज सहित 72.5 मीटर का स्‍थानिक विभेदन था। लिस-।। में प्रत्‍येक 36.25 मीटर के स्‍थानिक विभेदन वाले दो अलग प्रतिबिंबन संवेदक थे – लिस-।।ए और लिस-।।बी, और इन्‍हें अंतरिक्षयान पर इस प्रकार से लगाया गया जिससे यह जमीन पर 146.98 कि.मी. का सम्मिश्र प्रमार्ज प्रदान कर सकें।
अपने लिस-। तथा लिस-।। संवेदकों के साथ आई.आर.एस.-1ए उपग्रह ने त्‍वरित रूप से भारत को स्‍थूल तथा मध्‍यम स्‍थानिक विभेदनों पर अपने प्राकृतिक संसाधनों का मानचित्रण मानीटरन तथा प्रबंधन करने में सहायता प्रदान की। आँकड़ा उत्‍पादों की प्रचालनात्‍मक उपलब्‍धता ने प्रयोक्‍ता संगठनों के लिए देश में सुदूर संवेदन अनुप्रयोगों तथा प्रबंधन की प्रचालनात्‍मक ता को और अधिक मजबूत किया है आई.आर.एस.-1ए के बाद एक समरूपी उपग्रह आई.आर.एस.-1बी का प्रमोचन वर्ष 1991 में किया गया था।
आई.आर.एस.-1ए तथा 1बी की क्रमबद्धता ने 11 दिनों की पुनरावृत्ति प्रदान की। आई.आर.एस. श्रृंखला के यह दोनों उपग्रह कृषि, वानिकी, भूविज्ञान तथा जलविज्ञान, आदि जैसे विभिन्‍न अनुप्रयोग के क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधन सूचना प्रदान करने के लिए विश्‍वसनीय साबित हुए। उसके बाद से, नीतभारों तथा उपग्रह प्‍लेटफार्मों में संवर्धित क्षमताओं सहित आई.आर.एस. अंतरिक्षयानों की श्रृंखलाओं का प्रमोचन किया गया।
प्रयोक्‍ता एजेंसियों द्वारा इन मिशनों के आँकड़ों की उपयोगिता से लेकर प्रयोक्‍ता आवश्‍यकताओं की पहचान करते हुए, आई.आर.एस. मिशनों की उत्‍पत्ति तक इनकी गतिविधियों के संपूर्ण विस्‍तार का मानीटरन राष्‍ट्रीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन प्रणाली (एन.एन.आर.एम.एस.) द्वारा किया जाता है, जो कि देश में सुदूर संवेदन आँकड़े का प्रयोग करते हुए प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन तथा अवसंरचना विकास के लिए एक नोडल एजेंसी है।
सामान्‍य आवश्‍यकताओं को पूरा करने के अलावा, प्राकृतिक संसाधन मानीटरन, महासागर तथा वायुमंडलीय अध्‍ययन और मानचित्रकला अनुप्रयोगों जैसी विशिष्‍ट विषय-वस्‍तु के अनुप्रयोगों पर आधारित आई.आर.एस. मिशनों की परिभाषा के परिणामस्‍वरूप

  • (i) भूमि/जल संसाधन अनुप्रयोगों (रिसोर्ससैट श्रृंखला तथा रिसैट श्रृंखला);
  • (ii) महासागर/वायुमंडलीय अध्‍ययनों (ओशनसैट श्रृंखला, इन्‍सैट- वी.एच.आर.आर., इन्‍सैट-3डी, मेघा-ट्रॉपिक्‍स तथा सरल तथा
  • (iii) बृहत पैमानों के मानचित्रण अनुप्रयोगों (कार्टोसैट श्रृंखला) जैसी विषयवस्‍तु आधारित उपग्रह श्रृंखला का निर्माण हुआ। आई.आर.एस.-1ए का विकास आई.आर.एस. कार्यक्रम में विशेष उपलब्धि थी।

आई.आर.एस.-1ए के 30 वर्ष पूरा होने तथा भारतीय सुदूर संवेदन कार्यक्रम की सफल यात्रा के अवसर पर, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम विशेषकर, सुदूर संवेदन अनुप्रयोगों के क्षेत्र में, जहाँ भारत दूसरों के लिए एक आदर्श बन गया है, की उपलब्धियों पर गौर करना आवश्‍यक है। अत्‍याधुनिक भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह के निर्माण तथा प्रमो चन और देश के लिए विभिन्‍न अनुप्रयोगों में आँकड़े के प्रचालनात्‍मक उपयोग में महत्‍वपूर्ण प्रगति होती रही आज, विद्युत-चुंबकीय स्‍पेक्‍ट्रम के दृश्‍य, अवरक्‍त, तापीय और सूक्ष्‍म तरंग क्षेत्र में प्रतिबिंबन क्षमताओं सहित अति स्‍पेक्‍ट्रमी संवेदकों को शामिल करते हुए भारतीय भू प्रेक्षण (ई.ओ.) उपग्रहों के व्‍यूह ने देश में प्रमुख प्रचालनात्‍मक अनुप्रयोगों को पूरा करने में सहायता की है।
यह प्रतिबिंबन संवेदक 1 कि.मी. से 1 मी. से भी बेहतर तक का स्‍थानिक विभेदन; 22 दिनों से प्रत्‍येक 15 मिनट तक के पुनरावर्ती प्रेक्षण (कालिक प्रतिबिंबन) तथा 7 बिट से 12 बिट तक विकिरणमापीय रेजिंग प्रदान कर रहे हैं, जिससे राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कई अनुप्रयोगों को सहायता मिल रही है। आने वाले वर्षों में, अधिक फुर्तीले अंतरिक्षयानों को शामिल करते हुए नई प्रेक्षणात्‍मक आवश्‍यकताओं तथा प्रौद्योगिकी उन्‍नतियों की ओर ध्‍यान देते हुए, गत वर्षों के ज्ञान/उपलब्धि को संज्ञान में लेते हुए भारतीय भू प्रेक्षण उपग्रह मजबूत तथा बेहतर प्रौद्योगिकियों की ओर आगे बढ़ रहे हैं।आई.आर.एस.-1ए, स्‍वदेशी अत्‍याधुनिक प्रचालनरत सुदूर संवेदन उपग्रहों की श्रेणी का प्रथम उपग्रह है, जिसे बैकनूर स्थित सोवियत कोस्‍मोड्रोम से 17 मार्च, 1988 को ध्रुवीय सूर्य-तुल्‍यकाली कक्षा में सफलतापूर्वक प्रमोचित किया गया था।

जल संसाधनों के क्षेत्र में अनुसंधान की आवश्यकता

  • किसी भी जी.आई.एस. से संबंधित अध्ययन में पहला और अत्यधिक महत्त्वपूर्ण पहलू आंकड़ों की उपलब्धता और उसकी अनुकूलता है। स्थानिक जल संसाधनों के अध्ययन के लिये आवश्यक जानकारी का निष्पादन सरलता से होना चाहिये। सुदूर संवेदन तकनीक का प्रयोग जल संसाधनों के विकास तथा उनके प्रबंधन जैसे: भूमि वर्गीकरण, बाढ़ क्षेत्र प्रबंधन आदि में किया जा रहा है।
  • जलविज्ञानीय विज्ञान के भविष्य में उन्नति के लिये निदर्श का आधुनिकीकरण और मूल्यांकन पर्याप्त मात्रा में आंकड़ों की उपलब्धता पर निर्भर करता है। सुदूर संवेदन तकनीक इस दिशा में एक निर्णायक विकास की भूमिका निभा सकता है। अंकीकृत मानचित्र हेतु विशिष्ट आंकड़ों के अनुरूप विभिन्न साधनों से आंकड़े संग्रह केंद्र में एकत्रित करने होंगे। इस तरह के आंकड़े प्राप्त होने से उल्लेखनीय प्रगति होगी।
  • जल संसाधन निदर्शन के अंतर्गत भौगोलिक सूचना तंत्र का सम्मिश्रण करना एक कठिन प्रक्रिया है फिर भी जल संसाधन के शोध में सुविधा के लिये भौगोलिक सूचना तंत्र के कुछ निदर्श शोधकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराये गये हैं।
  • आधुनिक विकास के लिये डी.एस.एस. ने जल संसाधन तंत्र व सिंचाई में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
  • भविष्य के शोध कार्यों के तुलनात्मक अध्ययन के लिये आजकल बाजार में बहुत से जी.आई.एस. पैकेज अभिलक्षणता और सूची के साथ उपलब्ध हैं।

सुदूर संवेदन की अवस्थाएँ

यह पृथ्वी के धरातलीय पदार्थों के तत्त्वों एवं स्वभाव से संबंध्ति सूचनाओं के संग्रहण में इस प्रकार सहायक होते हैं :

  • उर्जा का स्रोत; सूर्य
  •  उर्जा का संचरण; स्रोत से पृथ्वी के धरातल तक
  • पृथ्वी के धरातल के साथ उर्जा की अन्योन्यक्रिया
  • परावर्तित / उत्सर्जित  उर्जा का वायुमंडल से प्रवर्धन
  • परावर्तित / उत्सर्जित उर्जा का संवेदक द्वारा अभिसूचन
  • प्राप्त उर्जा का फोटोग्राफी / अंकीय आँकड़ों के रूप में अभिसारण
  • आँकड़ा उत्पाद से विषयानुरूप सूचना को निकालना
  • मानचित्रो एवं सारणी के रूप में आँकड़ों एवं सूचनाओं का अभिसारण।

सुदूर संवेदन PDF प्राप्त करने हेतु कृपया नीचे दिये गए डाउनलोड बटन पर क्लिक करें। 

Download सुदूर संवेदन PDF using below link

REPORT THISIf the download link of सुदूर संवेदन PDF is not working or you feel any other problem with it, please Leave a Comment / Feedback. If सुदूर संवेदन is a copyright material Report This by sending a mail at [email protected]. We will not be providing the file or link of a reported PDF or any source for downloading at any cost.

RELATED PDF FILES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *