श्री विश्वकर्मा चालीसा | Shri Vishwakarma Chalisa Hindi PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप श्री विश्वकर्मा चालीसा PDF / Shri Vishwakarma Chalisa PDF Hindi भाषा में प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म ग्रन्थों में श्री विश्वकर्मा भगवान को देवशिल्पी के रूप में जाना जाता है। अथार्त यदि आज के युग की भाषा में कहें तो वह देवताओं के सिविल इंजीनीयर हैं।
हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति को भवन संबंधी सुख न मिल रहा हो अथवा उसके भवन निर्माण के कार्य में अनेक प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ रहा हो, तो उस व्यक्ति को पूर्ण भक्तिभाव से श्री विश्वकर्मा जी की पूजा अर्चना करनी चाहिए। देवशिल्पी विश्वकर्मा जी को प्रसन्न करने हेतु आप विश्वकर्मा चालीसा का पाठ भी कर सकते हैं।
हालांकि, आपको शीघ्र परिणाम प्राप्त करने हेतु आपको प्रतिदिन श्री विश्वकर्मा चालीसा का श्रद्धापूर्वक पाठ करना चाहिए किन्तु यदि आप किसी विशेष कारण से ऐसा करने में असमर्थ हैं, तो आपको प्रतिदिन विश्वकर्मा मंत्र का जाप करते हुये उनके नाम से एक दीप प्रज्वलित करना चाहिए। ऐसा करने से आपको विशेष लाभ होगा।
विश्वकर्मा चालीसा pdf / Shree Vishwakarma Chalisa PDF Hindi
॥ दोहा ॥
श्री विश्वकर्म प्रभु वन्दऊं, चरणकमल धरिध्यान ।
श्री, शुभ, बल अरु शिल्पगुण, दीजै दया निधान ॥
॥ चौपाई ॥
जय श्री विश्वकर्म भगवाना । जय विश्वेश्वर कृपा निधाना ॥
शिल्पाचार्य परम उपकारी । भुवना-पुत्र नाम छविकारी ॥
अष्टमबसु प्रभास-सुत नागर । शिल्पज्ञान जग कियउ उजागर ॥
अद्भुत सकल सृष्टि के कर्ता । सत्य ज्ञान श्रुति जग हित धर्ता ॥ ४ ॥
अतुल तेज तुम्हतो जग माहीं । कोई विश्व मंह जानत नाही ॥
विश्व सृष्टि-कर्ता विश्वेशा । अद्भुत वरण विराज सुवेशा ॥
एकानन पंचानन राजे । द्विभुज चतुर्भुज दशभुज साजे ॥
चक्र सुदर्शन धारण कीन्हे । वारि कमण्डल वर कर लीन्हे ॥ ८ ॥
शिल्पशास्त्र अरु शंख अनूपा । सोहत सूत्र माप अनुरूपा ॥
धनुष बाण अरु त्रिशूल सोहे । नौवें हाथ कमल मन मोहे ॥
दसवां हस्त बरद जग हेतु । अति भव सिंधु मांहि वर सेतु ॥
सूरज तेज हरण तुम कियऊ । अस्त्र शस्त्र जिससे निरमयऊ ॥ १२ ॥
चक्र शक्ति अरू त्रिशूल एका । दण्ड पालकी शस्त्र अनेका ॥
विष्णुहिं चक्र शूल शंकरहीं । अजहिं शक्ति दण्ड यमराजहीं ॥
इंद्रहिं वज्र व वरूणहिं पाशा । तुम सबकी पूरण की आशा ॥
भांति-भांति के अस्त्र रचाए । सतपथ को प्रभु सदा बचाए ॥ १६ ॥
अमृत घट के तुम निर्माता । साधु संत भक्तन सुर त्राता ॥
लौह काष्ट ताम्र पाषाणा । स्वर्ण शिल्प के परम सजाना ॥
विद्युत अग्नि पवन भू वारी । इनसे अद्भुत काज सवारी ॥
खान-पान हित भाजन नाना । भवन विभिषत विविध विधाना ॥ २० ॥
विविध व्सत हित यत्रं अपारा । विरचेहु तुम समस्त संसारा ॥
द्रव्य सुगंधित सुमन अनेका । विविध महा औषधि सविवेका ॥
शंभु विरंचि विष्णु सुरपाला । वरुण कुबेर अग्नि यमकाला ॥
तुम्हरे ढिग सब मिलकर गयऊ । करि प्रमाण पुनि अस्तुति ठयऊ ॥ २४ ॥
भे आतुर प्रभु लखि सुर-शोका । कियउ काज सब भये अशोका ॥
अद्भुत रचे यान मनहारी । जल-थल-गगन मांहि-समचारी ॥
शिव अरु विश्वकर्म प्रभु मांही । विज्ञान कह अंतर नाही ॥
बरनै कौन स्वरूप तुम्हारा । सकल सृष्टि है तव विस्तारा ॥ २८ ॥
रचेत विश्व हित त्रिविध शरीरा । तुम बिन हरै कौन भव हारी ॥
मंगल-मूल भगत भय हारी । शोक रहित त्रैलोक विहारी ॥
चारो युग परताप तुम्हारा । अहै प्रसिद्ध विश्व उजियारा ॥
ऋद्धि सिद्धि के तुम वर दाता । वर विज्ञान वेद के ज्ञाता ॥ ३२ ॥
मनु मय त्वष्टा शिल्पी तक्षा । सबकी नित करतें हैं रक्षा ॥
पंच पुत्र नित जग हित धर्मा । हवै निष्काम करै निज कर्मा ॥
प्रभु तुम सम कृपाल नहिं कोई । विपदा हरै जगत मंह जोई ॥
जै जै जै भौवन विश्वकर्मा । करहु कृपा गुरुदेव सुधर्मा ॥ ३६ ॥
इक सौ आठ जाप कर जोई । छीजै विपत्ति महासुख होई ॥
पढाहि जो विश्वकर्म-चालीसा । होय सिद्ध साक्षी गौरीशा ॥
विश्व विश्वकर्मा प्रभु मेरे । हो प्रसन्न हम बालक तेरे ॥
मैं हूं सदा उमापति चेरा । सदा करो प्रभु मन मंह डेरा ॥ ४० ॥
॥ दोहा ॥
करहु कृपा शंकर सरिस, विश्वकर्मा शिवरूप ।
श्री शुभदा रचना सहित, ह्रदय बसहु सूर भूप ॥
Shri Vishwakarma Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi PDF / जय श्री विश्वकर्मा आरती PDF
ॐ जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का,सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर,दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥
विश्वकर्मा स्तोत्र PDF / Vishwakarma Stotram PDF in Hindi
विश्वकर्म ध्यानम् ।
न भूमिर्न जलञ्चैव न तेजो न च वायवः
नाकाशं च न चित्तञ्च न बुद्धीन्द्रियगोचराः
न च ब्रह्मा न विष्णुश्च न रुद्रश्च तारकाः
सर्वशून्या निरालम्बा स्वयम्भूता विराटसत्
सदापरात्मा विश्वात्मा विश्वकर्मा सदाशिवः ॥
श्रितमध्यतमध्यस्तं ब्रह्मादिसुरसेवितम् ।
लोकाध्यक्षं भजेऽहं त्वां विश्वकर्माणमव्ययम् ॥
प्राकादिदिङ्मुखोत्पन्नो सनकश्च सनातनः ।
अभुवनस्य प्रत्नस्य सुपर्णस्य नमाम्यहम् ॥
अखिलभुवनबीजकारणम् ।
प्रणवतत्त्वं प्रणवमयं नमामि ॥
पञ्चवक्त्रं जटाधरं पञ्चदशविलोचनम् ।
सद्योजाताननं श्वेतं च वामदेवन्तु कृष्णकम् ॥
अघोरं रक्तवर्णं च तत्पुरुषं हरितप्रभम् ।
ईशानं पीतवर्णं च शरीरं हेमवर्णकम् ॥
दशबाहुं महाकायं कर्णकुण्डलशोभितम् ।
पीताम्बरं पुष्पमालं नागयज्ञोपवीतिनम् ॥
रुद्राक्षमालासंयुक्तं व्याघ्रचर्मोत्तरीयकम् ।
पिनाकमक्षमालाञ्च नागशूलवराम्बुजम् ॥
वीणां डमरुकं बाणं शङ्खचक्रधरं तथा ।
कोटिसूर्यप्रतीकाशं सर्वजीवदयापरम् ॥
विश्वेशं विश्वकर्माणं विश्वनिर्माणकारिणम् ।
ऋषिभिः सनकाद्यैश्च संयुक्तं प्रणमाम्यहम् ॥
इति विश्वकर्मस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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