श्री गणपति अथर्वशीर्ष | Shri Ganesh Atharvashirsha Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप श्री गणपति अथर्वशीर्ष PDF / Shri Ganesh Atharvashirsha PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। भगवान् श्री गणपति जी को हिन्दू धर्म में बहुत अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। गणेश जी को हिन्दू धर्म में परम पूज्य भी कहा गया है अथार्त किसी भी पूजन एवं मांगलिक कार्य के आरम्भ में भगवान् श्री गणेश जी का पूजन अवश्य करना चाहिए।
यदि आपके जीवन में भी बार – बार विघ्न – बाधाएं उत्पन्न होती हैं तथा आपका कोई भी कार्य ठीक से नहीं हो रहा हैं एवं उसमे सफलता नहीं मिल रही है तो आपको भी नित्य प्रतिदिन भगवान् श्री गणेश जी का पूजन करना चाहिए। यदि आप प्रतिदिन पूजन करने में असमर्थ यहीं तो आप बुधवार के दिन श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ कर सकते हैं।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष PDF – हिन्दी अनुवाद सहित / Ganpati Atharvashirsha PDF in Hindi
ॐ नमस्ते गणपतये ।
त्वमेव प्रत्यक्षन् तत्त्वमसि ।
त्वमेव केवलङ् कर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलन् धर्ताऽसि ।
त्वमेव केवलम् हर्ताऽसि ।
त्वमेव सर्वङ् खल्विदम् ब्रह्मासि ।
त्वं साक्षादात्माऽसि नित्यम् ।।
ऋतं वच्मि । सत्यं वच्मि ।।
ज्ञान कहता हूँ सच्चाई कहता हूँ |
अव त्वम् माम् । अव वक्तारम् ।
अव श्रोतारम् । अव दातारम् ।
अव धातारम् । अवानूचानमव शिष्यम् ।
अव पश्चात्तात् । अव पुरस्तात् ।
अवोत्तरात्तात् । अव दक्षिणात्तात् ।
अव चोध्र्वात्तात् । अवाधरात्तात् ।
सर्वतो माम् पाहि पाहि समन्तात् ।।
अर्थ:-तुम मेरे हो मेरी रक्षा करों, मेरी वाणी की रक्षा करो| मुझे सुनने वालो की रक्षा करों | मुझे देने वाले की रक्षा करों मुझे धारण करने वाले की रक्षा करों | वेदों उपनिषदों एवम उसके वाचक की रक्षा करों साथ उससे ज्ञान लेने वाले शिष्यों की रक्षा करों | चारो दिशाओं पूर्व, पश्चिम, उत्तर, एवम दक्षिण से सम्पूर्ण रक्षा करों |
त्वं वाङ्मयस्त्वञ् चिन्मयः ।
त्वम् आनन्दमयस्त्वम् ब्रह्ममयः ।
त्वं सच्चिदानन्दाद्वितीयोऽसि ।
त्वम् प्रत्यक्षम् ब्रह्मासि ।
त्वम् ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि ।।
अर्थ:- तुम वाम हो, तुम ही चिन्मय हो, तुम ही आनन्द ब्रह्म ज्ञानी हो, तुम ही सच्चिदानंद, अद्वितीय रूप हो , प्रत्यक्ष कर्ता हो तुम ही ब्रह्म हो, तुम ही ज्ञान विज्ञान के दाता हो |
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तो जायते ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वत्तस्तिष्ठति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि लयमेष्यति ।
सर्वञ् जगदिदन् त्वयि प्रत्येति ।
त्वम् भूमिरापोऽनलोऽनिलो नभः ।
त्वञ् चत्वारि वाव्पदानि ||
अर्थ:- इस जगत के जन्म दाता तुम ही हो,तुमने ही सम्पूर्ण विश्व को सुरक्षा प्रदान की हैं सम्पूर्ण संसार तुम में ही निहित हैं पूरा विश्व तुम में ही दिखाई देता हैं तुम ही जल, भूमि, आकाश और वायु हो |तुम चारों दिशा में व्याप्त हो |
त्वङ् गुणत्रयातीतः ।
(त्वम् अवस्थात्रयातीतः ।)
त्वन् देहत्रयातीतः । त्वङ् कालत्रयातीतः ।
त्वम् मूलाधारस्थितोऽसि नित्यम् ।
त्वं शक्तित्रयात्मकः ।
त्वां योगिनो ध्यायन्ति नित्यम् ।
त्वम् ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वम् रुद्रस्त्वम्।
इन्द्रस्त्वम् अग्निस्त्वं वायुस्त्वं सूर्यस्त्वञ चन्द्रमास्त्वम्।
ब्रह्मभूर्भुवः स्वरोम्।
अर्थ:- तुम सत्व,रज,तम तीनो गुणों से भिन्न हो | तुम तीनो कालो भूत, भविष्य और वर्तमान से भिन्न हो | तुम तीनो देहो से भिन्न हो |तुम जीवन के मूल आधार में विराजमान हो | तुम में ही तीनो शक्तियां धर्म, उत्साह, मानसिक व्याप्त हैं |योगि एवम महा गुरु तुम्हारा ही ध्यान करते हैं | तुम ही ब्रह्म,विष्णु,रूद्र,इंद्र,अग्नि,वायु,सूर्य,चन्द्र हो | तुम मे ही गुणों सगुण, निर्गुण का समावेश हैं |
गणादिम् पूर्वमुच्चार्य
वर्णादिन् तदनन्तरम् ।
अनुस्वारः परतरः । अर्धेन्दुलसितम् ।
तारेण ऋद्धम् । एतत्तव मनुस्वरूपम् ।
गकारः पूर्वरूपम् । अकारो मध्यमरूपम् ।
अनुस्वारश्चान्त्यरूपम् ।
बिन्दुरुत्तररूपम् ।
नादः सन्धानम् । संहिता सन्धिः ।
सैषा गणेशविद्या । गणक ऋषिः ।
निचृद्गायत्री छन्दः । गणपतिर्देवता ।
ॐ गँ गणपतये नमः ।।
अर्थ:- “गण” का उच्चारण करके बाद के आदिवर्ण अकार का उच्चारण करें | ॐ कार का उच्चारण करे | यह पुरे मन्त्र ॐ गं गणपतये नम: का भक्ति से उच्चारण करें |
एकदन्ताय विद्महे । वक्रतुण्डाय धीमहि । तन्नो दन्तिः प्रचोदयात्
अर्थ:- एकदंत, वक्रतुंड का हम ध्यान करते हैं | हमें इस सद मार्ग पर चलने की भगवन प्रेरणा दे
एकदन्तञ् चतुर्हस्तम्,
पाशमङ्कुशधारिणम् ।
रदञ् च वरदम् हस्तैर्बिभ्राणम्,
मूषकध्वजम् ।
रक्तं लम्बोदरं,
शूर्पकर्णकम् रक्तवाससम् ।
रक्तगन्धानुलिप्ताङ्गम्,
रक्तपुष्पैःसुपूजितम् ।
भक्तानुकम्पिनन् देवञ्,
जगत्कारणमच्युतम् ।
आविर्भूतञ् च सृष्ट्यादौ,
प्रकृतेः पुरुषात्परम् ।
एवन् ध्यायति यो नित्यं
स योगी योगिनां वरः ||
अर्थ:- भगवान गणेश एकदन्त चार भुजाओं वाले हैं जिसमे वह पाश,अंकुश, दन्त, वर मुद्रा रखते हैं | उनके ध्वज पर मूषक हैं | यह लाल वस्त्र धारी हैं। चन्दन का लेप लगा हैं | लाल पुष्प धारण करते हैं । सभी की मनोकामना पूरी करने वाले जगत में सभी जगह व्याप्त हैं | श्रृष्टि के रचियता हैं | जो इनका ध्यान सच्चे ह्रदय से करे वो महा योगि हैं ।
श्री गणेश अथर्वशीर्ष PDF / Ganapati Atharvashirsha Lyrics PDF in Hindi
नमो व्रातपतये, नमो गणपतये,
नमः प्रमथपतये,
नमस्ते अस्तु लम्बोदराय एकदन्ताय,
विघ्ननाशिने शिवसुताय,
वरदमूर्तये नमः ||
अर्थ:- व्रातपति, गणपति को प्रणाम, प्रथम पति को प्रणाम, एकदंत को प्रणाम, विध्नविनाशक, लम्बोदर, शिवतनय श्री वरद मूर्ती को प्रणाम ।
एतदथर्वशीर्षं योऽधीते ।
स ब्रह्मभूयाय कल्पते ।
स सर्वविघ्नैर्न बाध्यते ।
स सर्वतः सुखमेधते ।
स पञ्चमहापापात् प्रमुच्यते ।
सायमधीयानो दिवसकृतम्
पापन् नाशयति ।
प्रातरधीयानो रात्रिकृतम्
पापन् नाशयति ।
सायम् प्रातः प्रयुञ्जानोऽअपापो भवति ।
सर्वत्राधीयानोऽपविघ्नो भवति ।
धर्मार्थकाममोक्षञ् च विन्दति ।
इदम् अथर्वशीर्षम् अशिष्याय न देयम् ।
यो यदि मोहाद्दास्यति
स पापीयान् भवति ।
सहस्रावर्तनात् ।
यं यङ् काममधीते
तन् तमनेन साधयेत् ।।
अर्थ:- इस अथर्वशीष का पाठ करता हैं वह विघ्नों से दूर होता हैं । वह सदैव ही सुखी हो जाता हैं वह पंच महा पाप से दूर हो जाता हैं । सन्ध्या में पाठ करने से दिन के दोष दूर होते हैं । प्रातः पाठ करने से रात्रि के दोष दूर होते हैं |हमेशा पाठ करने वाला दोष रहित हो जाता हैं और साथ ही धर्म, अर्थ, काम एवम मोक्ष पर विजयी बनता हैं । इसका 1 हजार बार पाठ करने से उपासक सिद्धि प्राप्त कर योगि बनेगा ।
अनेन गणपतिमभिषिञ्चति ।
स वाग्मी भवति ।
चतुथ्र्यामनश्नन् जपति
स विद्यावान् भवति ।
इत्यथर्वणवाक्यम् ।
ब्रह्माद्यावरणम् विद्यात् ।
न बिभेति कदाचनेति ।।
अर्थ:- जो इस मन्त्र के उच्चारण के साथ गणेश जी का अभिषेक करता हैं उसकी वाणी उसकी दास हो जाती हैं | जो चतुर्थी के दिन उपवास कर जप करता हैं विद्वान बनता हैं | जो ब्रह्मादि आवरण को जानता है वह भय मुक्त होता हैं |
यो दूर्वाङ्कुरैर्यजति ।
स वैश्रवणोपमो भवति ।
यो लाजैर्यजति, स यशोवान् भवति ।
स मेधावान् भवति ।
यो मोदकसहस्रेण यजति ।
स वाञ्छितफलमवाप्नोति ।
यः साज्यसमिद्भिर्यजति
स सर्वं लभते, स सर्वं लभते ।।
अर्थ:- जो दुर्वकुरो द्वारा पूजन करता हैं वह कुबेर के समान बनता हैं जो लाजा के द्वारा पूजन करता हैं वह यशस्वी बनता हैं मेधावी बनता हैं जो मोदको के साथ पूजन करता हैं वह मन: अनुसार फल प्राप्त करता हैं । जो घृतात्क समिधा के द्वारा हवन करता हैं वह सब कुछ प्राप्त करता हैं।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग्ग्राहयित्वा,
सूर्यवर्चस्वी भवति ।
सूर्यग्रहे महानद्याम् प्रतिमासन्निधौ
वा जप्त्वा, सिद्धमन्त्रो भवति ।
महाविघ्नात् प्रमुच्यते ।
महादोषात् प्रमुच्यते ।
महापापात् प्रमुच्यते ।
स सर्वविद् भवति, स सर्वविद् भवति ।
य एवम् वेद ।।
अर्थ:- जो आठ ब्राह्मणों को उपनिषद का ज्ञाता बनाता हैं वे सूर्य के सामान तेजस्वी होते हैं । सूर्य ग्रहण के समय नदी तट पर अथवा अपने इष्ट के समीप इस उपनिषद का पाठ करे तो सिद्धी प्राप्त होती हैं । जिससे जीवन की रूकावटे दूर होती हैं पाप कटते हैं वह विद्वान हो जाता हैं यह ऐसे ब्रह्म विद्या हैं ।
शान्तिमन्त्र
ॐ भद्रङ् कर्णेभिः शृणुयाम देवाः ।
भद्रम् पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ।
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः
व्यशेम देवहितं यदायुः ।।
अर्थ:-हे ! गणपति हमें ऐसे शब्द कानो में पड़े जो हमें ज्ञान दे और निन्दा एवम दुराचार से दूर रखे |हम सदैव समाज सेवा में लगे रहे था बुरे कर्मों से दूर रहकर हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहें |हमारे स्वास्थ्य पर हमेशा आपकी कृपा रहे और हम भोग विलास से दूर रहें । हमारे तन मन धन में ईश्वर का वास हो जो हमें सदैव सुकर्मो का भागी बनाये यही प्रार्थना हैं ।
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः ।
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ।
स्वस्ति नस्ताक्ष्र्योऽअरिष्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ।।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ।।
अर्थ:-चारो दिशा में जिसकी कीर्ति व्याप्त हैं वह इंद्र देवता जो कि देवों के देव हैं उनके जैसे जिनकी ख्याति हैं जो बुद्धि का अपार सागर हैं जिनमे बृहस्पति के सामान शक्तियाँ हैं जिनके मार्गदर्शन से कर्म को दिशा मिलती हैं जिससे समस्त मानव जाति का भला होता हैं।
श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ विधि / Shri Ganesh Atharvashirsha Path Vidhi :
- यदि आप इस दिव्य पाठ का नियमित जप करते हैं, तो आप स्वयं ही इससे होने वाले लाभ की अनुभूति कर सकते हैं। किन्तु यदि आप इसका प्रतिदिन पाठ नहीं कर सकते तो प्रति बुधवार आपको पूर्ण विधि विधान से इसका पाठ करना चाहिये।
- सर्वप्रथम नित्यकर्म आदि से निर्वत्त होकर एक पीले आसान पर बैठ जायें।
- अब अपने समक्ष भगवान गणेश की एक मूर्ति या छाया चित्र पीले आसान पर विराजमान करें।
- अब दोनों हाथ जोड़कर गणपति बप्पा का आवाहन करें।
- आवाहन करने के पश्चात गणेश जी का ध्यान करें।
- अब भगवान गणेश को सुगन्ध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि अर्पित करें।
- उपरोक्त पूजन सामग्री अर्पित करने के पश्चात गणपति बप्पा को दूर्वा (दूब घास) अर्पित करें।
- गणपति बप्पा को अब मोदक का भोग लगायें जो कि उन्हें अति प्रिय हैं।
- उपरोक्त पूजनोपरान्त विघ्नहर्ता गणपति के समक्ष निर्मल मन से श्री गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ करें।
- पाठ सम्पूर्ण होने के पश्चात भगवान गणेश की आरती करें।
श्री गणेश अथर्वशीर्ष पाठ का लाभ व महत्व | Shri Ganesh Atharvashirsha Benefits & Significance :
- गणेश अथर्वशीर्ष का प्रतिदिन पूर्ण शुद्धता से पाठ करने से अन्तर्मन की शुद्धि होती है।
- गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ से मनुष्य में निर्णय लेने की क्षमता बढ़ती है।
- मानसिक अशान्ति से पीड़ित जातकों को भी इस दिव्य पाठ के प्रयोग से अत्यधिक लाभ मिलता है।
- इस पाठ के प्रयोग से जातक के मुख पर आभा का उदय होता है।
- गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ नकारात्मकता का नाश कर सकारात्मकता का संचार करता है।
- यदि आप आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो आपको भी यह दिव्य पाठ करना चाहिये।
- जिन बालकों का पढ़ाई में मन नहीं लगता उन्हें भी श्री गणपति अथर्वशीर्ष का नियमित पाठ करने से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है।
- इस वैदिक पाठ के प्रभाव से जातक को भगवान गणपति की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा उसे जीवन में आने वाले विभिन्न प्रकार के संकटों से मुक्ति मिलती है।
श्री गणपति अथर्वशीर्ष PDF / Shri Ganapati Atharvashirsha PDF
मान्यताओं के अनुसार देवगणों में प्रथम पूज्य श्री गणेश को संकट हरने वाला माना गया है। इसलिए जो भी दुख सुख में विघ्नहर्ता गणेशजी के मंत्रों जाप करता है और पूजा करता है उसे सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। इसलिए गणपति जी का अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करते हुए संपूर्ण सामग्री का प्रयोग करना चाहिए।
जिसमें कुछ सामग्री जैसे की सुगंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य आदि शामिल हैं इन्हे पूजन के समय अर्पण करने से गणेश भगवान प्रसन्न होते है इनके साथ ही दुर्वा भी चढ़ा सकते हैं। लाल व सिंदूरी रंग गणपति जी को बहुत प्रिय है लाल रंग के पुष्प से पूजन करें। भगवान गणेश के नाम से ॐ गं गणपतये नम: मन्त्र को का जाप करते हुए विधिवत पूजन करें। भगवान श्री गणेश जी के अथर्वशीर्ष स्त्रोत का पाठ करना चाहिए। इससे घर और जीवन के अमंगल दूर होते हैं।
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