श्राद्ध विवेक | Shraddha Vivek PDF Summary
श्राद्ध विवेकः एक ऐसी धर्म पुस्तक है जिसमें सम्पूर्ण विस्तृत श्राद्ध कर्म पद्धति वर्णित की गयी है। श्राद्ध विवेकः के मार्गदर्शन द्वारा आप वैदिक विधि द्वारा अपने पितरों का श्राद्ध तरपान कर सकते हैं। वैदिक विधि द्वारा श्राद्ध कर्म करने से पितरों को संतुष्टि प्राप्त होती है तथा वह तृप्त हो जाते हैं। अनेक विद्द्वान श्राद्ध क्रम आदि करने हेतु इसी पुस्तक का प्रयोग करते हैं तथा उन्हके द्वारा इसका सुझाव भी दिया जाता है।
यदि आप इस पुस्तक द्वारा घर श्राद्ध करने में असमर्थ हैं तब भी किस विद्द्वान पण्डित जी द्वारा इसी पुस्तक से के माध्यम से तर्पण करवा सकते हैं। क्योंकि कोई भी पूजन जब तक पुराण विधि विधान से न किया जाए तब तक उसका पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। यदि आपकी कोई विवश्ता है जिसके कारन आप विस्तृत श्राद्ध विधि के अनुसार श्राद्ध नहीं कर सकते तो आप संक्षिप्त विधि के अनुसार भी श्राद्ध कर सकते हैं।
श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं ?
त्रिविधं श्राद्ध मुच्यते के अनुसार मत्स्य पुराण में तीन प्रकार के श्राद्ध बतलाए गए है, जिन्हें नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य श्राद्ध कहते हैं। यमस्मृति में पांच प्रकार के श्राद्धों का वर्णन मिलता है। जिन्हें नित्य, नैमित्तिक, काम्य, वृद्धि और पार्वण के नाम से श्राद्ध है।
पितृ पक्ष कब से लगेंगे?
हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष आरंभ होंगे। पितृ पक्ष अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि से कुल 16 दिनों तक मनाए जाते हैं।
श्राद्ध क्यों मनाते हैं ?
श्राद्ध कर्म पितृ लोक में निवास कर रहे मृत पूर्वजों की तृप्ति हेतु किया जाता है। हिन्दू धर्म में माता-पिता की सेवा को सर्वाधिक महत्व दिया गया है। अतः मृत्यु उपरान्त मनुष्य अपने माता – पिता विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध तर्पण व पिण्डदान करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों की समयावधि को पितृपक्ष कहा जाता है, जिसके अन्तर्गत हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।
श्राद्ध पक्ष 16 दिन ही क्यों मनाया जाता है?
पूर्णिमा से अमावस्या तक की सोलह दिनों की समयावधि को पितृपक्ष कहा जाता है। विभिन्न धर्मशास्त्रों में यह वर्णित है कि प्रत्येक प्राणी की मृत्यु इन सोलह तिथियों में से ही किसी न किसी तिहहि पर होती है। अतः इन्हीं सोलह तिथियों पर सभी अपने पूर्वजों का श्राद्ध – तर्पण आदि करते हैं।
श्राद्ध का क्या अर्थ होता है?
पितरों निमित्त श्रद्धापूर्वक किए गए मुक्ति कर्म को श्राद्ध कहा जाता है तथा उनकी तृप्ति हेतु देवताओं, ऋषियों या पितरों को तंडुल या तिल मिश्रित जल अर्पित करने की क्रिया को तर्पण कहते हैं।
श्राद्ध में क्या खाना बनाना चाहिए?
श्राद्ध के भोजन में निम्नलिखित वस्तुओं का प्रयोग श्राद्ध भोजन सामग्री के रूप में किया जाना चाहिए, आईये जानते हैं श्राद्ध का भोजन कैसा हो ? –
- जौ
- मटर
- सरसों
- पितरों का प्रिय पकवान
- गंगाजल
- दूध
- शहद
- कुश
- तिल
श्राद्ध में कौन सी सब्जी नहीं खानी चाहिए?
यह तो आपने पढ़ लिया कि श्राद्ध के भोजन में किन वस्तुओं का प्रयोग करना उचित है, आईये अब जानते हैं पितृपक्ष में कौन सी सब्जी नहीं खानी चाहिए?
चना
मसूर
उड़द
कुलथी
सत्तू
मूली
काला जीरा
कचनार
खीरा
काला उड़द
काला नमक
लौकी
बड़ी सरसों
काली सरसों की पत्ती
बासी या अखाद्य अन्न, फल तथा मेवे
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