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शिव रुद्राष्टकम | Shiv Rudrashtakam Sanskrit - Description
Hello Friends! here we have uploaded the शिव रुद्राष्टकम संस्कृत PDF / Shiva Rudrashtakam Sanskrit PDF for you. Many mantras, praises and sources have been composed to please Lord Shiva. Lord Shiva is very pleased by chanting and singing them. “Shri Shiva Rudrashtak Stotra” – Shiva Rudrashtakam Stotra is also one of these. If Shiva Rudrashtak is recited daily, then all kinds of problems are automatically resolved. Also the blessings of Lord Shiva are obtained. In this post we have given the download link for शिव रुद्राष्टकम संस्कृत PDF / Shiva Rudrashtakam PDF in Sanskrit.
शिव अष्टोत्तर तथा शिवाष्टक स्तोत्र का पाठ करने से शिवजी अपनी कृपा हम पर बरसाते हैं। जो भी सच्चे मन से शिव स्तुति करते है भोले जी उनकी हर मनोकामना पूरा करते है। भक्तों को सुबह शिव पूजा करने से पहले शिव नमस्कार अवश्य करना चाहिए। शिव रुद्राष्टकम एक ऐसा पाठ है जो हमारे सभी संकटों को टाल देता है। रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र एक ऐसा स्तोत्र है जो भगवन शिव को प्रशन्न करने के लिए रावण द्वारा गाया गया था। यह एक दिव्य स्तोत्र है जो भी भक्त इसका पठन करते है उनसे भगवान शिव अतिप्रशन्न हो जाते है।
शिव रूद्राष्टकम स्तोत्र संस्कृत | Shiva Rudrashtakam Stotra Sanskrit PDF
‘ॐ नमः शिवायः’
नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम् ।
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम् ॥
निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम् ।
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम् ॥
तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम् ।
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥
चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम् ।
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि ॥
प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम् ।
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम् ॥
कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी ॥
न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम् ।
न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं ॥
न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम् ।
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो ॥
रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।
॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥> >
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