शनि कवच स्तोत्र | Shani Kavach Hindi PDF Summary
नमस्कार मित्रों, इस लेख के द्वारा आप शनि कवच स्तोत्र PDF / Shani Kavach PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं । शनि कवच भगवान शनि को समर्पित एक असरकारी स्तोत्र है। शनिदेव को न्याय का देवता कहा जाता है। शनि देव समस्त प्रकार के कर्मों के अनुसार व्यक्तियों को कर्मफल देते हैं। शनि देव का पूजन करने से आप अनेक प्रकार के कष्टों से बच सकते हैं।
शनि देव को आसानी से प्रसन्न करने के लिए आप शनि कवच का पाठ कर सकते हैं। जो लोग शनि देव के कारण होने वाली समस्याओं से पीड़ित हैं तथा आपकी कुंडली में यदि शनि की महादशा व अन्तर्दशा चल रही है तो आप उन सभी समस्याओं से शनि कवच स्तोत्र का नियमित पाठ करने से छुटकारा प्राप्त कर सकते हैं । जो भी भक्तजन शनिदेव की कृपा पाना चाहते हैं उन्हें मन लगाकर शनि की स्तुति करनी चाहिए इसके अलावा शनि सहस्त्रनामावली तथा शनि अष्टक का पाठ करना भी बहुत लाभकारी होता है जो भी मनुष्य सभी कष्टों से मुक्ति पाना चाहते है और अपने जीवन में सुख-शांति का अनुभव करना चाहते है उन्हें हर शनिवार को शनि अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र और शनि देव शाबर मंत्रो का उच्चारण करना चाहिए
शनि कवच हिन्दी PDF | Shani Kavacham PDF in Hindi
अथ श्री शनिकवचम्
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः II
अनुष्टुप् छन्दः II शनैश्चरो देवता II शीं शक्तिः II
शूं कीलकम् II शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः II
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान् ।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।1।।
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महत् ।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम् ।।2।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम् ।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम् ।।3।।
ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन: ।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज: ।।4।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा ।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज: ।।5।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद: ।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता ।।6।।
नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा ।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा ।।7।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल: ।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन: ।।8।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य: ।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज: ।।9।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा ।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि: ।।10।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे ।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ।।11।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु: ।।12।।
शनि देव की आरती PDF | Shani Dev Ki Aarti PDF in Hindi
जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।
सूर्य पुत्र प्रभु छाया महतारी॥
जय जय श्री शनि देव….
श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।
नी लाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥
जय जय श्री शनि देव….
क्रीट मुकुट शीश राजित दिपत है लिलारी।
मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी॥
जय जय श्री शनि देव….
मोदक मिष्ठान पान चढ़त हैं सुपारी।
लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी॥
जय जय श्री शनि देव….
देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी।
विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी॥
जय जय श्री शनि देव भक्तन हितकारी।।
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