शनि अष्टक | Shani Ashtakam PDF Summary
नमस्कार दोस्तों, इस लेख के माध्यम से हम आपको शनि अष्टक PDF / Shani Ashtakam PDF in Hindi के लिए डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। यदि आप भी शनि देव से सम्बन्धित समस्याओं से पीड़ित हैं, तो आज हम आपके लिए एक अचूक उपाय लेकर आये हैं। इस लेख के माध्यम से हम आपको शनि अष्टक के बारे में बताने जा रहे हैं। शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए शनि अष्टक एक बहुत ही अच्छा उपाय हैं । शनि कवच स्तोत्र के गायन से भी सभी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। वैसे भी शनि देव एक न्यायप्रिय देवता हैं। वह सबके साथ न्याय करते हैं और उनके कर्मो के अनुसार उन्हें उनका परिणाम देते हैं। हमें शनि देव के मंत्रो का उच्चारण करते हुए विधि-विधान से शनि पूजा करनी चाहिए।
आपको शनि अष्टक PDF प्राप्त करने के लिए कहीं ओर जाने की आवश्यकता नहीं है। आप नीचे दिए हुए डाउनलोड बटन पर क्लिक करके इस दिव्य शनि अष्टक को प्राप्त कर सकते हैं तथा इसके पाठ से जीवन में सुख – शांति प्राप्त कर सकते हैं। इस लेख हमने शनि अष्टक स्तोत्र का हिंदी में अर्थ भी दिया हुआ है। अतः आप यहाँ शनि अष्टक हिन्दी अर्थ सहित पढ़ सकते हैं। हर शनिवार को शनि देव की चालीसा भी पढनी चाहिए और अंत में शनि देव की आरती भी करनी चाहिए।
शनि अष्टक PDF | Shani Ashtak PDF in Hindi
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च।
नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:।1
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च।
नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते। 2
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:।
नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते। 3
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:।
नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने। 4
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते।
सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च। 5
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते।
नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते। 6
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च।
नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:। 7
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे।
तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्। 8
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:।
त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:। 9
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे।
एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:।10
शनि अष्टक इन हिंदी PDF | Shani Dev Ashtakam in Hindi PDF
जिनके शरीर का रंग भगवान् शंकर के समान कृष्ण तथा नीला है उन शनि देव को मेरा नमस्कार है, इस जगत् के लिए कालाग्नि एवं कृतान्त रुप शनैश्चर को पुनः पुनः नमस्कार है। जिनका शरीर कंकाल जैसा मांस-हीन तथा जिनकी दाढ़ी-मूंछ और जटा बढ़ी हुई है, उन शनिदेव को नमस्कार है, जिनके बड़े-बड़े नेत्र, पीठ में सटा हुआ पेट तथा भयानक आकार वाले शनि देव को नमस्कार है। जिनके शरीर दीर्घ है, जिनके रोएं बहुत मोटे हैं, जो लम्बे-चौड़े किन्तु जर्जर शरीर वाले हैं तथा जिनकी दाढ़ें कालरुप हैं, उन शनिदेव को बार-बार नमस्कार है। हे शनि देव ! आपके नेत्र कोटर के समान गहरे हैं, आपकी ओर देखना कठिन है, आप रौद्र, भीषण और विकराल हैं, आपको नमस्कार है। सूर्यनन्दन, भास्कर-पुत्र, अभय देने वाले देवता, वलीमूख आप सब कुछ भक्षण करने वाले हैं, ऐसे शनिदेव को प्रणाम है। आपकी दृष्टि अधोमुखी है आप संवर्तक, मन्दगति से चलने वाले तथा जिसका प्रतीक तलवार के समान है, ऐसे शनिदेव को पुनः-पुनः नमस्कार है। आपने तपस्या से अपनी देह को दग्ध कर लिया है, आप सदा योगाभ्यास में तत्पर, भूख से आतुर और अतृप्त रहते हैं। आपको सर्वदा सर्वदा नमस्कार है। जिसके नेत्र ही ज्ञान है, काश्यपनन्दन सूर्यपुत्र शनिदेव आपको नमस्कार है। आप सन्तुष्ट होने पर राज्य दे देते हैं और रुष्ट होने पर उसे तत्क्षण क्षीण लेते हैं वैसे शनिदेव को नमस्कार। देवता, असुर, मनुष्य, सिद्ध, विद्याधर और नाग- ये सब आपकी दृष्टि पड़ने पर समूल नष्ट हो जाते ऐसे शनिदेव को प्रणाम। आप मुझ पर प्रसन्न होइए। मैं वर पाने के योग्य हूं और आपकी शरण में आया हूं।
शनि अष्टक पाठ के लाभ | Shani Ashtakam Benefits
इसके बाद शनि देव ने वरदान स्वरूप राजा दशरथ को वचन दिया कि इस स्तोत्र को जो भी मनुष्य, देव अथवा असुर, सिद्ध तथा विद्वान आदि पढ़ेंगा, उसे शनि के कारण कोई बाधा नहीं होगी। जिनकी महादशा या अन्तर्दशा में, गोचर में अथवा लग्न स्थान, द्वितीय, चतुर्थ, अष्टम या द्वादश स्थान में शनि हो वे व्यक्ति यदि पवित्र होकर दिन में तीन बार प्रातः, मध्याह्न और सायंकाल के समय इस स्तोत्र को ध्यान देकर पढ़ेंगे, उनको निश्चित रुप से शनि पीड़ित नहीं करेगा।
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