Shab E Qadr Ki Nafil Namaz Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप Shab E Qadr Ki Nafil Namaz PDF in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। शब-ए-क़द्र को लैलतुल-क़द्र के नाम से भी जाना जाता है । मुस्लिम समुदाय में रमजान के महीने की एक रात को शब-ए-क़द्र के नाम से मनाया जाता है। मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार शब-ए-क़द्र की रात जिबरील नाम के फ़रिशते के द्वारा पैगम्बर मुहम्मद पर नाज़िल की शुरुआत हुई थी।
माना जाता है की शब-ए-क़द्र की रात में मुस्लिम समुदाय के के लोग अपने द्वारा किए गए ज्ञात – अज्ञात पाप कर्मों का प्र्यश्चित अल्लाह के समक्ष करते हैं तथा उनसे यह प्रार्थना करते हैं कि जो भी पाप कर्म उनसे जाने – अनजाने में हो चुके हैं उनके लिए उन्हें माफी देदी जाए। बहुत से लोग इस रात से अगले 10 दिनों तक रह कर मस्जिद में उपासना करते हैं ।
शब् इ क़द्र की नमाज़ का तरीक़ा PDF / Shab e Qadr Ki Nafil Namaz in Hindi PDF
नियत करके अल्लाह हू अकबर कहकर हाथ बांध लेना है ! फिर सना पढ़ना है !
सना के अल्फाज़ इस तरह है
*सुबहाना कल्ला हुम्मा व बिहम्दिका व तबारा कस्मुका व त’आला जद्दुका वला इलाहा गैरुका*
इसके बाद *अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम. बिस्मिल्लाही र्रहमानिर रहीम.* पढ़े !
फिर सूरए फातिहा के बाद
सूरए क़द्र तीन मर्तबा
और कुल हुवल्लाहु शरीफ़ पचास मर्तबा पढे !
दूसरी रकअत में भी सूरए फातिहा के बाद सूरए क़द्र तीन मर्तबा
और कुल हुवल्लाहु शरीफ़ पचास मर्तबा पढे !
दो रकअत पूरी होने के बाद – क़अदा ऊला में तशह्हुद पढे ! और दुरूद व दुआ पढ कर खडे हो जाए !
फिर सना से तीसरी रकअत शुरू करे, यानी की तीसरी रकअत में पहले
*सुबहाना कल्ला हुम्मा व बिहम्दिका व तबारा कस्मुका व त’आला जद्दुका वला इलाहा गैरुका* पढ़े !
फिर सूरह फातिहा पढ़े ! उसके बाद जैसे पहली दो रकअत नमाज़ अदा
की उसी तरह बची हुई दो रकअत अदा करेंगे !
इसी तरह से 4 चारो रकअत में सूरए फातिहा के बाद सूरए क़द्र तीन मर्तबा
और कुल हुवल्लाहु शरीफ़ पचास मर्तबा पढेंगे !
फिर एक बार ये तस्बीह पढ़े
शब ए क़द्र अर्थ एवं नामकरन
- शबे क़द्र के नाम से उर्दू, हिंदी और फ़ारसी में प्रसिद्ध ये रात इस्लाम में ‘सर्वश्रेष्ट रात’ अपने असल अरबी भाषा में लैलतुल-क़द्र का अर्थ क़दर और ताज़ीम (सम्मान,शान) वाली रात है. लैल का अर्थ “रात” और क़द्र का अर्थ “महान”, अर्थात जो भी इस रात जाग कर इबादत (उपासना) करेगा वो क़दर-ओ-शान वाला होगा।
- इस्लाम में इस रात को रुतबा हासिल हुआ है क्योंकि इस में नुज़ूल क़ुरआन हुआ है, क़ुरआन-ए-मजीद किताबों में अज़मत-ओ-शरफ़ वाली किताब है और पैग़म्बर पर ये किताब नाज़िल हुई वो तमाम पैग़म्बरों पर अज़मत-ओ-शरफ़ रखते है। इस किताब को लाने वाले जिब्रील भी सब फ़रिश्तों पर अज़मत-ओ-शरफ़ अर्थात बड़ा सम्मान और रुतबा रखते हैं तो ये रात लैलतुल-क़द्र बन गई।
- इस रात को की गई अल्लाह की इबादत को हज़ारों महीनों की इबादतों से बेहतर माना जाता है. इस रात की इबादत का सवाब (पुण्य) 83 साल 4 महीने की इबादत (उपासना) के बराबर है।
- लैलतुल-क़द्र को क़दर वाली रात इसलिए भी कहते हैं कि इस रात फ़रिश्तों की कसरत की वजह से ज़मीन तंग हो जाती है, यानी क़दर तंगी के मअनी में है जैसा कि अल्लाह-तआला का फ़रमान है कि:
- और जब अल्लाह इसे आज़माईश में डालता है तो इस पर उस के रिज़्क़ को तंग कर देता है। (क़ुरआन,89:16)
- तो यहां पर क़दर शब्द का अर्थ है कि इस का रिज़्क़ तंग कर दिया जाता है।
कौनसी रात है? शब-ए-क़द्र
शब-ए-क़द्र हर साल ही किसी एक तय रात में नहीं होती बल्कि बदलती रहती है। क़द्र की रात के निर्धारण करने के बारे में विद्वानों ने कई कथनों पर मतभेद किया है, परन्तु सही होने के सबसे निकट कथन यह है कि वह रात रमज़ान की अंतिम दस रातों की विषम (ताक़) संख्या वाली रातों (21,23,25,27,29) में से कोई एक है।
शिया और सुन्नी मान्यता
अहल-ए-तशीअ अर्थात शिया मुसलमानों के अनुसार ये उन्नीसवीं, इक्कीसवीं या तएसवीं रात है और सत्ताईसवें रात और पंद्रह शाबान(शबे बरात) की रात के बारे में भी शब-ए-क़द्र का हो सकना माना जाता है। शिया और सुन्नी मुसलमानों में रमज़ान की सत्ताईसवें रात को शबे क़द्र होने को अधिक मानते हैं।
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