ऋषि पंचमी व्रत कथा | Rishi Panchami Vrat Katha Book Hindi PDF Summary
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ऋषि पंचमी व्रत कथा PDF | Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF
सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत पतिव्रता थी।
एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था।
इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए।
जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी। पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी।
बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।
रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।
तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया।
अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो।
भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।
ऋषि पंचमी पूजन विधि PDF | Rishi Panchami Puja Vidhi in Hindi PDF
- व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
- फिर घर के पूजा ग्रह की अच्छे से सफाई कर लें।
- इसके बाद हल्दी से चौकोर मंडल बनाएं। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना कर व्रत करने का संकल्प लें।
- इसके बाद सप्त ऋषियों की सच्चे मन से पूजा करें।
- पूजा स्थल पर एक मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
- सप्तऋषि के समक्ष दीप, धूप जलाएं और गंध, पुष्प नैवेद्य आदि अर्पित कर व्रत की कथा सुनें।
तत्पश्चात निम्न मंत्र से अर्घ्य दें-
कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥
- व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें और सप्तऋषि को मीठे पकवान का भोग लगाएं।
- इस व्रत में केवल एक बार रात के समय भोजन किया जाता है।
- ध्यान रखें कि व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि आहार ही लेना चाहिए।
Rishi Panchami Pooja Muhurt in Hindi | ऋषि पंचमी व्रत पूजा मुहूर्त
पंचमी तिथि की शुरुआत 10 सितंबर को रात 09.57 बजे से हो जाएगी और इसकी समाप्ति 11 सितंबर को 07.37 पर होगी। इस दिन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 11.03 बजे से शुरू होकर दोपहर 01.32 बजे तक रहेगा। इस साल ये पर्व 11 सितंबर को मनाया जायेगा।
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