Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF Hindi

Rishi Panchami Vrat Katha Book Hindi PDF Download

Free download PDF of Rishi Panchami Vrat Katha Book Hindi using the direct link provided at the bottom of the PDF description.

DMCA / REPORT COPYRIGHT

Rishi Panchami Vrat Katha Book Hindi - Description

Friends, today we are going to upload the ऋषि पंचमी व्रत कथा PDF / Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF with you. The Panchami of Shukla Paksha of Bhadrapada month is celebrated as Rishi Panchami. This year Rishi Panchami Vrat has come on 1st September 2022. The fast of Rishi Panchami is fruitful for everyone. This fast is celebrated with reverence and devotion. On this day, listening to the story by worshiping the sages with complete rituals is of great importance. This fast is the destroyer of sins and best fruitful.
हिंदू धर्म में ऋषि पंचमी का विशेष महत्व माना गया है। मान्यता है कि इस दिन विधि पूर्वक सप्त ऋषियों की पूजा करने से जीवन में सुख शांति का वास होता है। इस दिन व्रत रखने की भी परंपरा है। इस दिन व्रत रखने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पंचांग के अनुसार 1 सितंबर, गुरुवार का दिन पूजा पाठ और धार्मिक कार्यों के लिए बहुत ही उत्तम है। इसी दिन ऋषि पंचमी का व्रत रखा जाएगा।

ऋषि पंचमी व्रत कथा PDF | Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF

सतयुग में विदर्भ नगरी में श्येनजित नामक राजा हुए थे। वह ऋषियों के समान थे। उन्हीं के राज में एक कृषक सुमित्र था। उसकी पत्नी जयश्री अत्यंत  पतिव्रता थी।
एक समय वर्षा ऋतु में जब उसकी पत्नी खेती के कामों में लगी हुई थी, तो वह रजस्वला हो गई। उसको रजस्वला होने का पता लग गया फिर भी वह घर के कामों में लगी रही। कुछ समय बाद वह दोनों स्त्री-पुरुष अपनी-अपनी आयु भोगकर मृत्यु को प्राप्त हुए। जयश्री तो कुतिया बनीं और सुमित्र को रजस्वला स्त्री के सम्पर्क में आने के कारण बैल की योनी मिली, क्योंकि ऋतु दोष के अतिरिक्त इन दोनों का कोई अपराध नहीं था।
इसी कारण इन दोनों को अपने पूर्व जन्म का समस्त विवरण याद रहा। वे दोनों कुतिया और बैल के रूप में उसी नगर में अपने बेटे सुचित्र के यहां रहने लगे। धर्मात्मा सुचित्र अपने अतिथियों का पूर्ण सत्कार करता था। अपने पिता के श्राद्ध के दिन उसने अपने घर ब्राह्मणों को भोजन के लिए नाना प्रकार के भोजन बनवाए।
जब उसकी स्त्री किसी काम के लिए रसोई से बाहर गई हुई थी तो एक सर्प ने रसोई की खीर के बर्तन में विष वमन कर दिया। कुतिया के रूप में सुचित्र की मां कुछ दूर से सब देख रही थी। पुत्र की बहू के आने पर उसने पुत्र को ब्रह्म हत्या के पाप से बचाने के लिए उस बर्तन में मुंह डाल दिया। सुचित्र की पत्नी चन्द्रवती से कुतिया का यह कृत्य देखा न गया और उसने चूल्हे में से जलती लकड़ी निकाल कर कुतिया को मारी।
बेचारी कुतिया मार खाकर इधर-उधर भागने लगी। चौके में जो झूठन आदि बची रहती थी, वह सब सुचित्र की बहू उस कुतिया को डाल देती थी, लेकिन क्रोध के कारण उसने वह भी बाहर फिकवा दी। सब खाने का सामान फिकवा कर बर्तन साफ करके दोबारा खाना बना कर ब्राह्मणों को खिलाया।
रात्रि के समय भूख से व्याकुल होकर वह कुतिया बैल के रूप में रह रहे अपने पूर्व पति के पास आकर बोली, हे स्वामी! आज तो मैं भूख से मरी जा रही हूं। वैसे तो मेरा पुत्र मुझे रोज खाने को देता था, लेकिन आज मुझे कुछ नहीं मिला। सांप के विष वाले खीर के बर्तन को अनेक ब्रह्म हत्या के भय से छूकर उनके न खाने योग्य कर दिया था। इसी कारण उसकी बहू ने मुझे मारा और खाने को कुछ भी नहीं दिया।
तब वह बैल बोला, हे भद्रे! तेरे पापों के कारण तो मैं भी इस योनी में आ पड़ा हूं और आज बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी कमर टूट गई है। आज मैं भी खेत में दिनभर हल में जुता रहा। मेरे पुत्र ने आज मुझे भी भोजन नहीं दिया और मुझे मारा भी बहुत। मुझे इस प्रकार कष्ट देकर उसने इस श्राद्ध को निष्फल कर दिया।
अपने माता-पिता की इन बातों को सुचित्र सुन रहा था, उसने उसी समय दोनों को भरपेट भोजन कराया और फिर उनके दुख से दुखी होकर वन की ओर चला गया। वन में जाकर ऋषियों से पूछा कि मेरे माता-पिता किन कर्मों के कारण इन नीची योनियों को प्राप्त हुए हैं और अब किस प्रकार से इनको छुटकारा मिल सकता है। तब सर्वतमा ऋषि बोले तुम इनकी मुक्ति के लिए पत्नीसहित ऋषि पंचमी का व्रत धारण करो तथा उसका फल अपने माता-पिता को दो।
भाद्रपद महीने की शुक्ल पंचमी को मुख शुद्ध करके मध्याह्न में नदी के पवित्र जल में स्नान करना और नए रेशमी कपड़े पहनकर अरूधन्ती सहित सप्तऋषियों का पूजन करना। इतना सुनकर सुचित्र अपने घर लौट आया और अपनी पत्नीसहित विधि-विधान से पूजन व्रत किया। उसके पुण्य से माता-पिता दोनों पशु योनियों से छूट गए। इसलिए जो महिला श्रद्धापूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत करती है, वह समस्त सांसारिक सुखों को भोग कर बैकुंठ को जाती है।

Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF – पूजन विधि

  • व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए।
  • फिर घर के पूजा ग्रह की अच्छे से सफाई कर लें।
  • इसके बाद हल्दी से चौकोर मंडल बनाएं। फिर उस पर सप्त ऋषियों की स्थापना कर व्रत करने का संकल्प लें।
  • इसके बाद सप्त ऋषियों की सच्चे मन से पूजा करें।
  • पूजा स्थल पर एक मिट्टी के कलश की स्थापना करें।
  • सप्तऋषि के समक्ष दीप, धूप जलाएं और गंध, पुष्प नैवेद्य आदि अर्पित कर व्रत की कथा सुनें।

तत्पश्चात निम्न मंत्र से अर्घ्य दें-
कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः॥

  • व्रत कथा सुनने के बाद आरती करें और सप्तऋषि को मीठे पकवान का भोग लगाएं।
  • इस व्रत में केवल एक बार रात के समय भोजन किया जाता है।
  • ध्यान रखें कि व्रत रखने वाले लोगों को इस दिन पृथ्वी में पैदा हुए शाकादि आहार ही लेना चाहिए।

ऋषि पंचमी व्रत पूजा सामग्री लिस्ट

इस दिन सप्त ऋषि बनाकर दूध, दही, घी, शहद और जल से अभिषेक करें. रोली, चावल, धूप, दीप आदि से पूजन करें. इसके बाद कथा सुनने के बाद घी से होम करें।

Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF – पूजा मुहूर्त

पंचांग के अनुसार ऋषि पंचमी पूजन का शुभ मुहूर्त 1 सितंबर को प्रात: 11 बजकर 5 मिनट से दोपहर 1 बजकर 37 मिनट तक है।
नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर के आप ऋषि पंचमी व्रत कथा PDF / Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF डाउनलोड कर सकते हैं।

Download Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF using below link

REPORT THISIf the download link of Rishi Panchami Vrat Katha Book PDF is not working or you feel any other problem with it, please Leave a Comment / Feedback. If Rishi Panchami Vrat Katha Book is a copyright material Report This by sending a mail at [email protected]. We will not be providing the file or link of a reported PDF or any source for downloading at any cost.

RELATED PDF FILES

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *