श्री राम स्तुति | Ram Stuti PDF in Hindi

श्री राम स्तुति | Ram Stuti Hindi PDF Download

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श्री राम स्तुति | Ram Stuti Hindi PDF Summary

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप श्री राम स्तुति PDF / Ram Stuti PDF प्राप्त कर सकते हैं। श्री राम जी हिन्दू धर्म में पूजे जाने वाले मुख्य देवी – देवताओं में से एक हैं। श्री रामजी को भारत सहित समूचे विश्वभर में बहुत ही धूमधाम से पूजा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को श्री राम जी के आदर्शों का पालन करना चाहिए। इस पोस्ट से आप बड़ी आसानी से सिर्फ एक क्लिक में राम स्तुति अर्थ सहित PDF / Ram Stuti Lyrics PDF in Hindi डाउनलोड कर सकते हैं।
यदि आप भी अपने जीवन में भगवान् श्री रामजी का आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन को परवर्तित करना चाहते हैं तथा भगवान् श्री राम जी की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो श्री राम स्तुति का पाठ अवश्य करें। यह बहुत ही सुन्दर स्तुति है जिसके गायन से केवल भगवान् श्री राम जी प्रसन्न होते हैं अपितु श्री हनुमान जी भी अपनी कृपा करते हैं।

श्री राम स्तुति PDF | Ram Stuti PDF

श्री राम चंद्र कृपालु भजमन, हरण भाव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

।।सोरठा।।

जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

राम स्तुति अर्थ सहित PDF | Ram Stuti in Hindi PDF

हे मन ! कृपालु (कृपा करनेवाले, दया करनेवाले) श्रीरामचंद्रजी का भजन कर, वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण (कठोर, भीषण) भय को दूर करने वाले है । उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है । मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥
उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित (असंख्य, अनगिनत) कामदेवो से बढ़कर है । उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है । पीताम्बर मेघरूप शरीर मानो बिजली के समान चमक रहा है । ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हूँ ॥२॥
हे मन ! दीनों के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी, दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले, आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर ॥३॥
जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानों में कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है । जिनकी भुजाएँ घुटनों तक लम्बी है । जो धनुष-बाण लिये हुए है, जिन्होने संग्राम में खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥
तुलसीदास प्रार्थना करते हैं कि जो शिव, शेषजी और मुनियों के मन को प्रसन्न करने वाले और काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं का नाश करने वाले हैं । वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल में सदा निवास करे ॥५॥
जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर साँवला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेंगे । वह करुणा निधान (दया का खजाना) और सुजान (सर्वग्य, सब जाननेवाला) है, शीलवान है । तुम्हारे स्नेह को जानता है ॥६॥
इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखियाँ ह्रदय मे हर्षित हुई । तुलसीदासजी कहते हैं- भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली ॥७॥
गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय में जो हर्ष हुआ वह कहा नही जा सकता । सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे ॥८॥
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