राम रक्षा स्तोत्र | Ram Raksha Stotra Hindi - Description
दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आएं हैं राम रक्षा स्तोत्र PDF / Ram Raksha Stotra PDF भगवान् शिव ने महर्षि बुध कौशिक को स्वपन में राम रक्षा स्तोत्र पाठ सुनाया था और उनके आदेश का पालन कर ऋषि ने इस स्तोत्र को लिखा। राम रक्षा स्तोत्र हिंदी गीता प्रेस पीडीएफ का पाठ करने से घर में सुख समृद्धि आती हैं तथा घर में लक्ष्मी का बास होता है। राम रक्षा स्तोत्र में बताया है कि श्रीराम, दाशरथी, शूर, लक्ष्मणानुच, बली, काकुत्स्थ, पुरुष, पूर्ण, कौसल्येय, रघुतम, वेदान्त्वेघ, यज्ञेश,पुराण पुरूषोतम , जानकी वल्लभ, श्रीमान, अप्रमेय, पराक्रम आदि नामों का नित्य श्रद्धा भक्ति भाव से जप करने वाले व्यक्ति को अश्वमेध यज्ञ से भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
भगवान् के दिव्य नामों से स्तुति करने वाला नर जीवन मृत्यु के चक्र से पार हो जाता है। इस पोस्ट में हमने आपके लिए Ram Raksha Stotra Hindi PDF / राम रक्षा स्तोत्र हिंदी PDF डाउनलोड करने के लिए डायरेक्ट लिंक भी दिया हैं।
राम रक्षा स्तोत्र PDF | Ram Raksha Stotra PDF
ॐ अस्य श्री रामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य बुधकौशिक ऋषिः,
श्री सीतारामचन्द्रोदेवता, अनुष्टुप् छन्दः, सीताशक्तिः,
श्रीमद्हनुमान कीलकम् श्रीसीतरामचन्द्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।।
अर्थ:- इस राम रक्षा स्तोत्र मंत्र के रचयिता बुध कौशिक ऋषि हैं, सीता और रामचंद्र देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, सीता शक्ति हैं, हनुमान जी कीलक है तथा श्री रामचंद्र जी की प्रसन्नता के लिए राम रक्षा स्तोत्र के जप में विनियोग किया जाता हैं।
॥ अथ ध्यानम् ॥
ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं ।
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं ।
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥
अर्थ:- जो धनुष बाण धारण किये हुए हैं, बद्ध पद्मासन की मुद्रा में विराजित हैं और पीताम्बर पहने हुए हैं, जिनके आलोकित नेत्र नए कमल दलों से स्पर्धा करते हैं (अर्थात जो कमल दलों से भी सुन्दर हैं), जो प्रसन्नचित्त हैं, जिनके बाएं अङ्क में बैठी सीता के मुख कमल से मिले हुए हैं तथा जिनका रंग बादलों की तरह श्याम है, उन अजानबाहु, विभिन्न आभूषणों से विभूषित जटाधारी श्री राम का (मैं) ध्यान करता हूँ।
॥ इति ध्यानम् ॥
श्री राम रक्षा स्तोत्र:
चरितं रघुनाथस्य शतकोटिप्रविस्तरम् ।
एकैकमक्षरं पुंसां महापातकनाशनम् ॥१॥
अर्थ:- श्री रघुनाथजी का चरित्र सौ करोड़ विस्तार वाला हैं। उसका एक-एक अक्षर महापातकों को नष्ट करने वाला (करता) है।
ध्यात्वा नीलोत्पलश्यामं रामं राजीवलोचनम् ।
जानकीलक्ष्मणॊपेतं जटामुकुटमण्डितम् ॥२॥
अर्थ:- नीले कमल के श्याम वर्ण वाले, कमल नेत्र वाले , जटाओं के मुकुट से सुशोभित, जानकी तथा लक्ष्मण सहित ऐसे भगवान श्री राम का स्मरण करके,
सासितूणधनुर्बाणपाणिं नक्तं चरान्तकम् ।
स्वलीलया जगन्नातुमाविर्भूतमजं विभुम् ॥३॥
अर्थ:- जो अजन्मा (जिनका जन्म न हुआ हो, अर्थात जो प्रकट हुए हों), एवं सर्वव्यापक, हाथों में खड्ग, तुणीर, धनुष-बाण धारण किए राक्षसों के संहार तथा अपनी लीलाओं से जगत रक्षा हेतु अवतीर्ण श्रीराम का स्मरण करके,
रामरक्षां पठेत्प्राज्ञः पापघ्नीं सर्वकामदाम् ।
शिरो मे राघवः पातु भालं दशरथात्मजः॥४॥
अर्थ:- मैं सभी कामनाओं की पूर्ति करने वाले और समस्त पापों का नाश करने वाले राम रक्षा स्तोत्र का पाठ करता हूँ। राघव मेरे सिर की और दशरथ के पुत्र मेरे ललाट की रक्षा करें।
कौसल्येयो दृशौ पातु विश्वामित्रप्रिय: श्रुती ।
घ्राणं पातु मखत्राता मुखं सौमित्रिवत्सल: ॥५॥
अर्थ:- कौशल्या नंदन मेरे नेत्रों की, विश्वामित्र के प्रिय मेरे कानों की, यज्ञ रक्षक मेरे घ्राण (नाक) की और सुमित्रा के वत्सल मेरे मुख की रक्षा करें।
जिह्वां विद्यानिधिः पातु कण्ठं भरतवंदितः ।
स्कन्धौ दिव्यायुधः पातु भुजौ भग्नेशकार्मुकः ॥६॥
अर्थ:- मेरी जिह्वा की विधानिधि रक्षा करें, भरत-वन्दित मेरे कंठ की रक्षा करें, कंधों की दिव्यायुध और भुजाओं की महादेव का धनुष तोड़ने वाले भगवान श्रीराम रक्षा करें।
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् ।
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥७॥
अर्थ:- मेरे हाथों की सीता पति श्रीराम रक्षा करें, हृदय की जमदग्नि ऋषि के पुत्र (परशुराम) को जीतने वाले, मध्य भाग की खर (राक्षस) के वधकर्ता और नाभि की जांबवान के आश्रयदाता रक्षा करें।
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: ।
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥८॥
अर्थ:- मेरे कमर की सुग्रीव के स्वामी, हडियों की हनुमान के प्रभु और सभी रघुओं में उत्तम और राक्षसकुल का विनाश करने वाले श्री राम जाँघों की रक्षा करें।
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: ।
पादौ विभीषणश्रीदः पातु रामोऽखिलं वपुः ॥९॥
अर्थ:- सेतु का निर्माण करने वाले मेरे घुटनों की, दशानन का वध करने वाले मेरी अग्रजंघा की, विभीषण को ऐश्वर्य देने वाले मेरे चरणों की और सम्पूर्ण शरीर की श्री राम रक्षा करें।
एतां रामबलोपेतां रक्षां यः सुकृती पठेत्।
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥१०॥
अर्थ:- शुभ कार्य करने वाला जो भक्त भक्ति एवं श्रद्धा के साथ रामबल से संयुक्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करता हैं, वह दीर्घायु, सुखी, पुत्रवान, विजयी और विनयशील हो जाता हैं।
पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥११॥
अर्थ:- जो जीव पाताल, पृथ्वी और आकाश में विचरते रहते हैं अथवा छद्म वेश में घूमते रहते हैं , वे राम नामों से सुरक्षित मनुष्य को देख भी नहीं पाते।
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् ।
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥१२॥
अर्थ:- राम, रामभद्र तथा रामचंद्र आदि नामों का स्मरण करने वाला रामभक्त पापों से लिप्त नहीं होता, इतना ही नहीं, वह अवश्य ही भक्ति और मोक्ष दोनों को प्राप्त करता है।
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् ।
यः कण्ठे धारयेत्तस्तस्य करस्थाः सर्वसिद्धयः ॥१३॥
अर्थ:- जो राम नाम से सुरक्षित जगत पर विजय करने वाले इस मन्त्र को अपने कंठ में धारण करता है, उसे सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं।
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् ।
अव्याहताज्ञः सर्वत्र लभते जयमङ्गलम्। ॥१४॥
अर्थ:- जो मनुष्य वज्रपंजर नामक इस राम कवच का स्मरण करता हैं, उसकी आज्ञा का कहीं भी उल्लंघन नहीं होता तथा उसे सदैव विजय और मंगल की ही प्राप्ति होती हैं।
राम रक्षा स्तोत्र PDF | Ram Raksha Stotra PDF
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥१५॥
अर्थ:- स्वप्न में बुधकौशिक ऋषि को भगवान शिव का आदेश होने पर बुधकौशिक ऋषि ने प्रातः जागने पर इस स्तोत्र को लिखा।
आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् ।
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥१६॥
अर्थ:- जो कल्प वृक्षों के बगीचे के समान विश्राम देने वाले हैं, जो समस्त विपत्तियों को दूर करने वाले हैं (विराम माने थमा देना, किसको थमा देना/दूर कर देना ? सकलापदाम = सकल आपदा = सारी विपत्तियों को) और जो तीनो लोकों में सुंदर (अभिराम + स्+ त्रिलोकानाम) हैं, वही श्रीमान राम हमारे प्रभु हैं।
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ ।
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥१७॥
अर्थ:- जो युवा, सुन्दर, सुकुमार, महाबली और कमल (पुण्डरीक) के समान विशाल नेत्रों वाले हैं, मुनियों की तरह वस्त्र एवं काले मृग का चर्म धारण करते हैं।
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ ।
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥१८॥
अर्थ:- जो फल और कंद का आहार ग्रहण करते हैं, जो संयमी , तपस्वी एवं ब्रह्मचारी हैं , वे दशरथ के पुत्र राम और लक्ष्मण दोनों भाई हमारी रक्षा करें।
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् ।
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥१९॥
अर्थ:- ऐसे महाबली रघुश्रेष्ठ मर्यादा पुरूषोतम समस्त प्राणियों के शरणदाता, सभी धनुर्धारियों में श्रेष्ठ और राक्षसों के कुलों का समूल नाश करने में समर्थ हमारी रक्षा करें।
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग संगिनौ ।
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥२०॥
अर्थ:- संघान किए धनुष धारण किए, बाण का स्पर्श कर रहे, अक्षय बाणों से युक्त तुणीर धारण किये हुए राम और लक्ष्मण मेरी रक्षा करने के लिए मेरे आगे चलें।
संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा ।
गच्छन् मनोरथोऽस्माकं रामः पातु सलक्ष्मणः ॥२१॥
अर्थ:- हमेशा तत्पर, कवचधारी, हाथ में खडग, धनुष-बाण धारण किये युवावस्था वाले भगवान राम लक्ष्मण सहित आगे आगे चलकर हमारी रक्षा करें।
Ram Raksha Stotra PDF in Hindi PDF
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