राज्य के नीति निर्देशक तत्व PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप राज्य के नीति निर्देशक तत्व PDF के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। जैसा की आप जानते हैं ही हैं कि भारत एक स्वतंत्र देश है तथा यहाँ प्रत्येक व्यक्ति के अपने मौलिक अधिकार हैं। राज्य के नीति निर्देशक तत्व संवैधानिक विकास की दिशा में नवीन तत्व हैं। अतः यह सुनश्चित किया जाता है कि राष्ट्र के निर्माण में स्त्री व पुरुष दोनों वर्गों की समान सहभागिता रहे।
संविधान के चतुर्थ भाग में राज्य के नीति निर्देशक तत्व वर्णित हैं। इन तत्वों को सामाजिक व आर्थिक उद्देश्यों को सिद्ध करने हेतु प्रायोजित किया गया है। यदि आप एक अभ्यर्थी हैं तथा किसी प्रकार की सरकारी अथवा प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने जा रहे हैं तो आपसे राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से संबन्धित प्रश्न पूछे जा सकते हैं।
इसलिए, यहाँ दी गयी पीडीएफ़ आपके लिए अवश्य सहायक सिद्ध होगी। यहाँ हमने इन तत्वों का आर्थिक एवं सामाजिक, गांधीवादी, अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा तथा विविध प्रावधान इत्यादि चार भागों में वर्गिकरण भी किया गया है। हम आशा करते हैं इस विषय में दी गयी विस्तृत जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व PDF
भारतीय संविधान के नीति-निर्देशक तत्त्व |
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अनुच्छेद |
विवरण |
36 | राज्य की परिभाषा का वर्णन किया गया है |
37 | इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना अनिवार्य है |
38 | राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा |
39 | राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व |
39क | समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता |
40 | ग्राम पंचायतों का संगठन |
41 | कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार |
42 | काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबंध |
43 | कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि |
43क | उद्योगों के प्रबंध में कार्मकारों का भाग लेना |
44 | नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता |
45 | बालकों के लिए नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध |
46 | अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि |
47 | पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य को सुधार करने का राज्य का कर्तव्य |
48 | कृषि और पशुपालन का संगठन |
48क | पर्यावरण का संरक्षण और संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा |
49 | राष्ट्रीय महत्व के संस्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण देना |
50 | कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण |
51 | अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि |
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत PDF
संविधान कुछ राज्य के नीति निर्देशक तत्व निर्धारित करता है, यद्यपि ये न्यायालय में कानूनन न्यायोचित नहीं ठहराए जा सकते, परन्तु देश के शासन के लिए मौलिक हैं, और कानून बनाने में इन सिद्धान्तों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है। ये निर्धारित करते हैं कि राज्य यथासंभव सामाजिक व्यवस्था जिसमें-सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय की व्यवस्था राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाओं में कायम करके जनता नीतियों को ऐसी दिशा देगा ताकि सभी पुरुषों और महिलाओं को जीविकोपार्जन के पर्याप्त साधन मुहैया कराए जाएं। समान कार्य के लिए समान वेतन और यह इसकी आर्थिक क्षमता एवं विकास के भीतर हो, कार्य के अधिकार प्राप्त करने के लिए प्रभावी व्यवस्था करने, बेरोजगार के मामले में शिक्षा एवं सार्वजनिक सहायता, वृद्धावस्था, बीमारी एवं असमर्थता या अयोग्यता की आवश्यकता के अन्य मामले में सहायता करना। राज्य कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, कार्य की मानवीय स्थितियों, जीवन का शालीन स्तर और उद्योगों के प्रबंधन में कामगारों की पूर्ण सहभागिता प्राप्त करने के प्रयास करेगा।
आर्थिक क्षेत्र में राज्य को अपनी नीति इस तरह से बनानी चाहिए ताकि सार्वजनिक हित के निमित सहायक होने वाले भौतिक संसाधनों का वितरण का स्वामित्व एवं नियंत्रण हो, और यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर्थिक प्रणाली कार्य के फलस्वरूप धन का और उत्पादन के साधनों का जमाव सार्वजनिक हानि के लिए नहीं हो।
कुछ अन्य महत्वपूर्ण निर्देशक तत्व बच्चों के लिए अवसरों और सुविधाओं की व्यवस्था से संबंधित हैं ताकि उनका विकास अच्छी तरह हो, 14 वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों के लिए मुक्त एवं अनिवार्य शिक्षा, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य कमजोर वर्गों के लिए शिक्षा और आर्थिक हितों का संवर्धन ग्राम पंचायतों का संगठन; कार्यपालिका से न्यायपालिका को अलग करना; पूरे देश के लिए एक समान सिविल कोड लागू करना, राष्ट्रीय स्मारकों की रक्षा करना, समान अवसर के आधार पर न्याय का संवर्धन करना, मुक्त कानूनी सहायता की व्यवस्था, पर्यावरण की रक्षा और उन्नयन और देश के वनों एवं वन्य जीवों की रक्षा करना; अंतरराष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा का विकास, राष्ट्रों के बीच न्याय और सम्मानजनक संबंध, अंतरराष्ट्रीय कानूनों संधि बाध्यताओं का सम्मान करना, मध्यवर्ती द्वारा अंतरराष्ट्रीय विवादों का निपटान करना।
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