पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं PDF के रूप में प्राप्त कर सकते हैं। पुरापाषाण काल मानव इतिहास का एक अभिन्न एवं महत्वपूर्ण भाग है। पुरापाषाण काल के दौरान होने वाली उन्नति के कारण मानव जीवन बहुत अधिक विशेष रूप से प्रभावित हुआ था। इतिहासकारों के अनुसार हैण्ड-ऐक्स (कुल्हाड़ी) ,क्लीवर और स्क्रेपर आदि पुरापाषाण काल के दौरान उपयोग किए जाने वाले विशिष्ट उपकरण हैं। पुरापाषाण काल को मुख्यतः तीन भागों मे बाटां गया हैं जिनका आधार पत्थर के औजारों, हथियारों के प्रकारों तथा जलवायु परिवर्तन माना गया है।
अतः इस युग मे मनुष्य कृषि कार्य नहीं करता था अपितु पत्थरों का प्रयोग से शिकार करके अपना भरण पोषण करता था। इस समयावधि में मानव गुफाओं मे निवास करते थे। विद्वानों को जो साक्ष्य इस काल के संबंध में प्राप्त हुये हैं उनके अनुसार इस युग का मानव चित्रकारी भी करता था। 25_20 लाख साल से 12000 साल पूर्व तक। भारत में इसके अवशेष सोहन, बेलन तथा नर्मदा नदी घाटी में प्राप्त हुए हैं। भोपाल के पास स्थित भीमबेटका नामक चित्रित गुफाएं, शैलाश्रय तथा अनेक कलाकृतियां प्राप्त हुई हैं।
पुरापाषाण काल की प्रमुख विशेषताएं PDF
मानव ने अपनी आवश्यकता के अनुरूप औजार बनाने की प्रक्रिया संभवत: लकड़ी तथा अन्य कार्बनयुक्त पदार्थ के औजार बनाने से शुरू की जो आज उपलब्ध नहीं है। परन्तु जब उसने पाषाण उपकरण बनाने शुरू किए तब से हमें पुरातात्विक प्रमाण उपलब्ध होने लगे। ये उपकरण मानव ने अपनी जरूरतों के अनुसार तथा उनके कार्य के अनुरूप निर्मित किए थे। जैसे मांस काटने तथा छीलने के लिए चॉपर (Chapper) तथा खुरचंनी (Scrapers) का निर्माण किया पुरापाषाण काल को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया गया है:-
- निम्न पुरा पाषाण काल
- मध्य पुरापाषाण काल
- मध्यपाषाण काल
निम्न पुरा पाषाण काल
मानव द्वारा निर्मित प्राचीनतम उपकरण हमें इस काल में प्राप्त होते हैं, जब मानव ने सर्वप्रथम पत्थर का स्वयं फलकीकरण कर अपनी आवश्यकतानुसार औजार बनाए। प्राचीनतम औजार वे हैं जिनमें पैबुॅल (Pebble) के एकतरफ फलक उतार कर चापर औजार बनाए गए। ये प्राचीन उपकरण हमें सर्वप्रथम मोरोक्को तथा मध्य अफ्रीका में ओल्डुवई गर्ज के सबसे प्रथम तह से प्राप्त होते है। प्रथम स्थान पर इनके साथ विल्लफ्रैन्चिय (Villafranchian) प्रकार के पशुओं की हड्डियाँ भी मिलती है, जो नूतनकाल (Plestocene) से पहले काल के जानवर थे जो अभी भी बचे रह गए थे। इनमें बडे़-बडे़ दांतो वाले हाथी (Tusks), बडे़ -बडे़ नुकीले दांतो वाले चीते, लकड़बग्घा इत्यादि शामिल थे। इस काल में मानव भोजन के लिए शिकार करता था। मानव ने मध्य और अभिनूतन काल में चापर और चापिंग औजारों का निर्माण किया, इसमें चॉपर में एक तरफ से फलकीकरण करके औजार बनाए गए। इन्हीं औजारों से बाद में प्राग् हस्त कुठारों का निर्माण किया गया और कालान्तर में इन्हीं से सुन्दर हस्त कुल्हाडियां निर्मित हुई।
- (Block -on-Anvil Technique):इस विधि द्वारा जिस पत्थर द्वारा औजार का निर्माण करना होता था उसे किसी चट्टान पर प्रहार करके उसका फलक उतारकर औजार बनाये जाते थे। इस विधि द्वारा बडे़ आकार के तथा अनघड़ औजारों का ही निर्माण संभव था।
- Stone Hammer Technique or Block-on-Block Technique: पूर्वपाषाण काल में मानव द्वारा औजार बनाने की सर्वाधिक प्रयोग में लाई जाने वाली विधि थी। इसमें जिस पत्थर का औजार बनाना होता था उसे एक स्थान पर रखकर दूसरे हाथ से एक अन्य पत्थर द्वारा चोट करके फलक उतार कर औजार बनाया जाता था। इस विधि द्वारा मानव bi-ficial (द्धिधारी) औजार भी बना सकता था।
- Step Flacking Techinique: इस तकनीक द्वारा जिस पत्थर का औजार बनाना होता था उस पर दूसरा पत्थर मारते समय जिस प्रकार का औजार बनाना था, उसे ध्यान में रखकर सर्वप्रथम मध्य भाग मे चोट कर उस पत्थर पर एक निशान बना लिया जाता था। बाद में उसी की मदद से Steps (पट्टियों) में फलक उतार कर औजार बनाए जाते थे। इस विधि द्वारा हस्त कुल्हाडियों का निर्माण किया जा सकता था।
- Cylinderical Hammer Technique: इस विधि द्वारा पत्थर का औजार बनाने के लिए एक सिलैंडरनुमा हथौडे का प्रयोग किया जाता था जिससे कि छोटे-छोटे फलक भी उतारे जा सकते थे। इनसे सुन्दर एशुलियन प्रकार की हस्त कुल्हाड़ियां बनाई जाती थी।
- निम्न पुरा पाषाण काल में औजार –
इस काल का मानव कोर (Core) निर्मित औजारों का प्रयोग करता था यानि जिस पत्थर का औजार बनता था उसके फलक (Flake) उतार कर फैंक दिए जाते थे तथा बीच के हिस्से का ही औजार बनता था। इस काल के बने उपकरणों में chapper/ chapping tools (चॉपर/चौंपिग औजार), Hand-axes (हस्त कुल्हाड़ियो), Cleavers (विदारणी), Scrappers (खुरचमियां) इत्यादि प्रमुख थे। इनसे मानव काटने, खाल साफ करने इत्यादि कार्यो के लिए तथा मिट्टी से जड़ें और कन्दमूल आदि निकालने के काम में लाता था।
- निम्न पुरा पाषाण काल का विस्तार क्षेत्र –
इस काल के मानव के प्राचीनतम उपकरण हमें सर्वप्रथम अफ्रीका से प्राप्त हुए। यहां मध्य-पूर्वी अफ्रीका के ओल्डुवई गर्ज की प्रथम तह से ये औजार मिले हैं। इसके अलावा मोरोक्को से भी इनकी प्राप्ति हुई है। यूरोप के लगभग समस्त देशों से ये उपकरण मिले हैं, इनमें फ्रांस के सोम घाटी में स्थित अब्बेविल (Abbeville) जहां से हस्तकुल्हाड़ियों की प्राप्ति हुई। इंग्लैड में थेमस नदी पर स्थित स्वान्सकोम्ब (Swanscombe) फ्रांस का अमीन्स (Amiens), जर्मनी का स्टेनहीम (Steinheim), हंगरी के वर्टिजोलुस गुफा प्रमुख है। एशिया में साइबेरिया को छोड़कर सभी प्रदेशों से इन उपकरणों की प्राप्ति हुई है। चीन में बीजिंग के समीप झाऊ-तेन गुफा में तो उस काल के मानव के उपकरण तथा आग के प्रमाण मिले हैं। भारत उपमहाद्वीप में पाकिस्तान के सोहनघाटी, दक्षिण भारत में तमिलनाडू के साथ-साथ समस्त भारत से इस प्रकार के उपकरण प्राप्त हुए है। दक्षिण-पूर्वी ऐशिया में महत्वपूर्ण है जावा, जहाँ से इस काल के मानव के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
- निम्न पुरा पाषाण काल के मानव –
- निम्न पुरा पाषाण काल में जीवन –
- निम्न पुरा पाषाण काल का उद्भव एंव तिथिक्रम –
तिथिक्रम के हिसाब से मानव के अवशेषों को मध्यअभिनूतन काल में रखा जा सकता है। ये अवशेष द्वितीय इन्टर ग्लेशियल काल या इससे भी प्राचीन काल के हैं। जिन्हें हम कम से कम पाँच लाख वर्ष से 1,25000 लाख वर्ष के बीच निर्धारित कर सकते हैं।पूर्वपाषाकालीन संस्कृति का प्रांरभ अफ्रीका में ओल्डुवई गर्ज तथा मोरोक्को से देखने को मिलता है यहीं से इस काल के मानव में विभिन्न क्षेत्रों मे जाकर इस संस्कृति का विकास किया। कुछ विद्वानों का मत है कि इस काल में अफ्रीका भारत से जुड़ा हुआ था, इसलिए इस काल का मानव स्थल मार्ग से भारत पहुँचा। परन्तु महाद्वीप तो इस काल से बहुत पहले ही अलग हो चुके थे। इस प्रकार वह उत्तरी अफ्रीका से होता हुआ मांऊट कार्मल के रास्ते एक शाखा यूरोप मे उत्तर की ओर चली गई तथा दूसरी पूर्व होती हुई भारत तथा दक्षिणी पूर्व एशिया की ओर गई तथा वहां इस संस्कृति का विकास किया।
मध्य पुरापाषाण काल
(Medium Paleolithic Period) इस काल में मियडरस्थल मानव के अवशेष मिलने शुरू हुए और इन्होंने अपनी संस्कृति का विकास किया। पूर्व पुरापाषाणकाल के औजार कोर निर्मित थे, जिसमें फलकों का प्रयोग औजारों में नही किया गया था। लेकिन इस काल के मियंडर स्थल मानव ने अपने उपकरणों को फलक पर बनाना प्रांरभ किया, जो अपेक्षाकृत आकार में छोटे थे जो अच्छे बने हुए थे। निर्मित औजारों में बोरर (Borers) स्क्रेपर (Scrapper) औजार प्रचुर मात्रा में प्रयुक्त हुए थे। इनके अलावा फलक निर्मित औजारों में हस्तकुठार, बेधक, कुल्हाड़ियाँ और विदारणी प्रमुख थे।
- मध्य पुरापाषाण काल में औजार बनाने की तकनीक –
- मध्य पुरापाषाण काल का विस्तार क्षेत्र-
सर्वप्रथम इस संस्कृति के प्रमाण 1869 में फ्रांस के एक स्थल ली मौरित्यर (le Moustier) से प्राप्त होते हैं इसलिए इसे Moustarian (मौस्तिरयन) संस्कृति का नाम दिया गया। यहाँ सर्वप्रथम अशूलियन प्रकार के मौस्तिरयन उपकरण प्राप्त हुए जिनमें हस्तकुल्हाडियाँ, खुरचनियाँं और छिद्रयुक्त चाकू प्रमुख हैं। कालांतर में हस्त-कुल्हाडियों की संख्या में कमी आई और खुरचनियों तथा लवलवा प्रकार के उपकरणों की मात्रा में वृद्धि हुई। जिनमें End Scrapers, Side Scrapers, burins, borers इत्यादि प्रमुख हैं।इस संस्कृति का प्रसार उन सभी क्षेत्रों तक मिलता है जहँं पूर्वपुरापाषाण काल के उपकरण प्राप्त हुए है। इसके अलावा सर्वप्रथम साइबेरिया प्रवेश दे पर मानव ने इसी काल में निवास शुरू किया।
- मध्य पुरापाषाण काल का काल –
- मध्य पुरापाषाण काल के निवास स्थल –
- मध्य पुरापाषाण काल में धर्म का प्रारंभ –
इस काल में मानव के धार्मिक विश्वासों की जानकारी मिलनी शुरू होती है। इस काल में पुर्नजन्म में विश्वास हुआ इसलिए मानव ने मृतकों को अपनी गुफाओं के नीचे ही दबाया। डोरडोगन के La ferrassie (ला फ्रेसी) नामक स्थान से 2 व्यस्कों तथा एक बच्चे को दफनाने के प्रमाण मिले है। शवों के सिर का बचाव करने के लिए पत्थर रखा जाता था शव को लम्बवत् लिटाकर दबाने के प्रमाण क्रिमिया में की-कोबा नामक स्थल तथा फिलिस्तीन में मांऊट करमल से भी प्राप्त हुए है। पूर्वी उजबेकिस्तान की एक गुफा तेशिक ताश से एक बच्चे के शव के साथ उसके सिर के पास 6 जोड़े बकरी के सींग रखे मिलते है। इन साक्ष्यों से पता चलता है कि मानव सामाजिक रूप से संयुक्त निवास करते थे और आपस में प्रेमभावना विकसित हो चुकी थी।
- मध्य पुरापाषाण काल में उद्भव –
इस संस्कृति का उद्भव भी सर्वप्रथम अफ्रीका के ओल्ॅडवई गर्ज में हुआ। यहीं से मियंडस्थल मानव ने माऊंट कार्मल के रास्ते यूरोप तथा एशिया के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर इस संस्कृति का विकास किया।
- मध्य पुरापाषाण काल की तिथिक्रम –
यह संस्कृति ऊपरी अभिनूतन काल की है तथा बूॅम हिमयुग के निचले काल में इसका तिथिक्रम निर्धारित किया जा सकता है, यानि इस काल को 1,25,000 ई0पू0 से 40,000 ई0पू0 के बीच माना जा सकता है।
मध्यपाषाण काल
लगभग 10000 वर्ष पूर्व अभिनूतन काल का अंत हो गया और जलवायु भी आजकल के समान हो गई। हिमयुग के दौरान जमी बर्फ की पर्त पिघलने लगी तथा अधिकतर निचले इलाकों में पानी भर गया। पानी के जमाव के साथ जमी मिट्टी की तहों की गिनती से स्कन्डेनेनिया में इस काल की शुरूआत 7900 ई0पू0 रखी जा सकती है जबकि रेडियों कार्बन तिथि से हिम युग काल का अंत 8300 ई0 पू0 निर्धारित किया जा सकता है। बर्फ पिघलने से समुद्र के जलस्तर में बढोतरी हुई जिस कार उतरी समुद्र में अधिक पानी फैल गया। जलवायु में हुए परिवर्तन का असर वनस्पति तथा पशु-पक्षियों पर भी हुआ। यूरोप में चौड़ी पत्ती वाले पेड़-पौधे होने लगे और साथ ही रेडियर, घोड़े, बिसन आदि के स्थान पर हिरण, जंगली सूअर, बारहसींगा इत्यादि पशु अधिक पाए जाने लगे। पश्चिमी एशिया के क्षेत्रों में इस प्रकार की वनस्पति के पौधे पाए गए जो आजकल के गेंहू और जौ के जंगली प्रकार थे। इस प्रकार की वनस्पति को प्रयोग में लाने तथा शिकार में जानवरों को मारने के लिए उस काल के मानव को अपने औजारों में भी परिवर्तन करना पड़ा।
इस काल में अत्यंत सूक्ष्म पाषाण औजारों का निर्माण किया गया। ये औजार इतने सूक्ष्म थे कि इन्हें अकेले प्रयोग में नहीं लाया जा सकता था बल्कि किसी अन्य चीज के साथ जोड़कर ही वन औजारों को प्रयोग किया जा सकता था। इन उपकरणों में प्वांइट, तीर का अग्र भाग, सूक्ष्म ब्यूरिन, खुरचनियां, हस्त कुल्हाडियां, ित्राकोण, ट्रॉपे, चन्द्राकार और अर्द्धचन्द्रकार इत्यादि प्रमुख है। ये उपकरण दो भागों में बांटे जा सकते है। दोनों प्रकार के औजारों को प्रकार के आधार पर बांटा गया है।
- मध्यपाषाण काल में औजार बनाने की तकनीक –
- मध्यपाषाण काल का प्रसार तथा जीवन –
इस संस्कृति का प्रसार अधिकतर पश्चिमी एशिया, यूरोप, भारतीय प्रायद्वीप, एशिया तथा अफ्रीका में था। पश्चिमी एशिया के फिलिस्तीन की Mount carmel cowes से हमें इस काल के अवशेष प्राप्त होते हैं। इसके अतिरिक्त सीरिया, लेबनान इत्यादि से भी इसके प्रमाण मिले हैं। यहां यह संस्कृति Natuafian (नस्तूफियन) कहलाती थी। क्योंकि यह फिलिस्तीन के एक स्थल Wadyen-Natuf से सर्वप्रथम प्राप्त हुई थी। गुफाओं की दिवारों पर ये अपनी दैनिक दिनचर्या को चित्रकारी के जरिए दिखाते थे। जो इनके कला प्रेम को दर्शाती है। साधारणत: ये प्राकृतिक चित्रकारी करते थे।इस संस्कृति के उपकरणों में सूक्ष्म पाषाण उपकरण तथा फिलंट (Flint) के Blade तथा Burin भी थे इनके अतिरिक्त अपने मृतकों के अंतिम संस्कार में वे उन्हें Shell, पशुओं के दांत, तथा गहनों के साथ ही दफनाते थे। El-wad नामक स्थल से एक Pendent भी प्राप्त हुआ है। ये Arrow head और Fish-took का प्रयोग मछली पकड़ने के लिए करते थे। इन्होंने कुते को पालना भी शुरू कर दिया था।इस काल के मानव ने जंगली पौधों से दाने निकालकर उन्हें खाने में प्रयोग करना शुरू कर दिया था। इसकी पुष्टि कई क्षेत्रों से प्राप्त सिल-बट्टे करते हैं। इनमें el-wad स्थल प्रमुख है। सीरिया के मुरेयबिट क्षेत्र में जंगली गेंहू और जौ खाते थे। यूरोप में यह संस्कृति एजिलियन संस्कृति के नाम से जानी जाती है। जो कि फ्रांस, बेल्जियम, स्विटजर लैंड से प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त कहीं-कहीं इससे विकसित मध्यपाषाण संस्कृति को Asturian तथा Maglamosean संस्कृति भी कहा जाता है। जो लोग लाल हिरण, से हिरण, जंगली सूअर इत्यादि का शिकार करते थे। मछलियां पकड़ते थे, कुता रखते थे तथा फल-फूल इत्यादि इक्कठा करके खाते थे। इनके अन्य उपकरणों में हड्डी की सूइयां, मछली के कांटे और चमड़े का कार्य करने वाले अन्य उपकरण थे। और पश्चिमी यूरोप में इस प्रकार की संस्कृति का प्रस्तार काल बाल्टिक तथा उतरी समुद्र के आसपास इस संस्कृति को Kitchen-Midden कहा जाता था। जिसमें सामान्यत: कुल्हाडियों की प्राप्ती होती है। कभी-कभी इनके उपकरणों में तीराग्र, बसौले तथ ट्रॉपेज इत्यादि अधिक थे। इस काल में बेल्जियम में इस काल का मानव (Pit dwelling) गड्डे खोदकर निवास करता था। इनकी संस्कृति को Campignian का नाम दिया जाता है।
भारत में इस संस्कृति के प्रमाण लगभग समस्त क्षेत्रों से प्राप्त होते है। लेकिन मुख्यत: तमिलनाडु में टेरी स्थल, गुजरात में लेघनाज, पूर्वी भारत में बीस्मानपुर, मध्य भारत में आजादगढ़ तथा भीममेका की गुफांए, राजस्थान में बागोर, उतरप्रदेश में लेखाडियां, सराय नाहर इत्यादि प्रमुख थे।
- मध्यपाषाण काल के निवास स्थल –
- मध्यपाषाण काल की तिथि –
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