श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा | Navratri Vrat Katha PDF in Hindi

श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा | Navratri Vrat Katha Hindi PDF Download

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श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा | Navratri Vrat Katha Hindi PDF Summary

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा PDF / Navratri Vrat Katha PDF in Hindi भाषा में प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म में नवरात्रि उत्सव के सुअवसर पर दुर्गा पूजन का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि के समय देवी दुर्गा के नौ रूपों का पूजन करने से देवी माँ की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा जीवन में आने वाली अनेक प्रकार की विपत्तियों से सुरक्षा होती है। नवरात्रि के नौ दिनों में माता के अनेक भक्तगण उनकी साधना करते हुये कठिन व्रत का पालन करते हैं।

इस व्रत को करने से माता अपने भक्तों के जीवन में आने वाले प्रत्येक संकट हर लेती हैं। नवरात्रि के नौ दिनों में सम्पूर्ण भारत माता की भक्ति के एक नए रंग से रंग जाता है। दसों दिशाओं में हर्षोल्लाष का वातावरण होता है। ऐसा कहा जाता है  देवी माँ की सम्पूर्ण कृपा प्राप्त करने के हेतु नवरात्रि व्रत के समय नवरात्रि व्रत कथा का पाठ pdf अवश्य करना चाहिए। देवी माँ की महिमा के बारे में जानने के लिए यह कथा एक सर्वोत्तम साधन है। यदि आप यह व्रत कर रहे हैं, तो इस कथा को अवश्य पढ़ें तथा औरों को भी सुनाएँ इससे आपको देवी माँ की कृपा अवश्य प्राप्त करें।

श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा PDF / Navratri Vrat Katha PDF in Hindi

बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण। आप अत्यन्त बुद्धिमान, सर्वशास्त्र और चारों वेदों को जानने वालों में श्रेष्ठ हो। हे प्रभु! कृपा कर मेरा वचन सुनो। चैत्र, आश्विन और आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? हे भगवान! इस व्रत का फल क्या है? किस प्रकार करना उचित है? और पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहो? बृहस्पति जी का ऐसा प्रश्न सुनकर ब्रह्मा जी कहने लगे कि हे बृहस्पते! प्राणियों का हित करने की इच्छा से तुमने बहुत ही अच्छा प्रश्न किया। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेवी, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं, यह नवरात्र व्रत सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है।

इसके करने से पुत्र चाहने वाले को पुत्र, धन चाहने वाले को धन, विद्या चाहने वाले को विद्या और सुख चाहने वाले को सुख मिल सकता है। इस व्रत को करने से रोगी मनुष्य का रोग दूर हो जाता है और कारागार हुआ मनुष्य बन्धन से छूट जाता है। मनुष्य की तमाम आपत्तियां दूर हो जाती हैं और उसके घर में सम्पूर्ण सम्पत्तियां आकर उपस्थित हो जाती हैं। बन्ध्या और काक बन्ध्या को इस व्रत के करने से पुत्र उत्पन्न होता है। समस्त पापों को दूूर करने वाले इस व्रत के करने से ऐसा कौन सा मनोबल है जो सिद्ध नहीं हो सकता। जो मनुष्य अलभ्य मनुष्य देह को पाकर भी नवरात्र का व्रत नहीं करता वह माता-पिता से हीन हो जाता है अर्थात् उसके माता-पिता मर जाते हैं और अनेक दुखों को भोगता है। उसके शरीर में कुष्ठ हो जाता है और अंग से हीन हो जाता है उसके सन्तानोत्पत्ति नहीं होती है। इस प्रकार वह मूर्ख अनेक दुख भोगता है। इस व्रत को न करने वला निर्दयी मनुष्य धन और धान्य से रहित हो, भूख और प्यास के मारे पृथ्वी पर घूमता है और गूंगा हो जाता है। जो विधवा स्त्री भूल से इस व्रत को नहीं करतीं वह पति हीन होकर नाना प्रकार के दुखों को भोगती हैं।

यदि व्रत करने वाला मनुष्य सारे दिन का उपवास न कर सके तो एक समय भोजन करे और उस दिन बान्धवों सहित नवरात्र व्रत की कथा करे। हे बृहस्पते! जिसने पहले इस व्रत को किया है उसका पवित्र इतिहास मैं तुम्हें सुनाता हूं। तुम सावधान होकर सुनो। इस प्रकार ब्रह्मा जी का वचन सुनकर बृहस्पति जी बोले- हे ब्राह्मण! मनुष्यों का कल्याण करने वाले इस व्रत के इतिहास को मेरे लिए कहो मैं सावधान होकर सुन रहा हूं। आपकी शरण में आए हुए मुझ पर कृपा करो। ब्रह्मा जी बोले- पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्राह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सम्पूर्ण सद्गुणों से युक्त मनो ब्रह्मा की सबसे पहली रचना हो ऐसी यथार्थ नाम वाली सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर पुत्री उत्पन्न हुई। वह कन्या सुमति अपने घर के बालकपन में अपनी सहेलियों के साथ क्रीड़ा करती हुई इस प्रकार बढ़ने लगी जैसे शुक्लपक्ष में चन्द्रमा की कला बढ़ती है। उसका पिता प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम करता था।

उस समय वह भी नियम से वहां उपस्थित होती थी। एक दिन वह सुमति अपनी सखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मैं किसी कुष्ठी और दरिद्री मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूंगा। इस प्रकार कुपित पिता के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुख हुआ और पिता से कहने लगी कि हे पिताजी! मैं आपकी कन्या हूं। मैं आपके सब तरह से आधीन हूं। जैसी आपकी इच्छा हो वैसा ही करो। राजा कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो पर होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है मेरा तो इस पर पूर्ण विश्वास है। मनुष्य जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है पर होता वही है जो भाग्य में विधाता ने लिखा है जो जैसा करता है उसको फल भी उस कर्म के अनुसार मिलता है, क्यों कि कर्म करना मनुष्य के आधीन है। पर फल दैव के आधीन है। जैसे अग्नि में पड़े तृणाति अग्नि को अधिक प्रदीप्त कर देते हैं उसी तरह अपनी कन्या के ऐसे निर्भयता से कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राह्मण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ- जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो।

देखें केवल भाग्य भरोसे पर रहकर तुम क्या करती हो? इस प्रकार से कहे हुए पिता के कटु वचनों को सुनकर सुमति मन में विचार करने लगी कि – अहो! मेरा बड़ा दुर्भाग्य है जिससे मुझे ऐसा पति मिला। इस तरह अपने दुख का विचार करती हुई वह सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयावने कुशयुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की। उस गरीब बालिका की ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगीं कि हे दीन ब्राह्मणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूं, तुम जो चाहो वरदान मांग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूं। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्राह्मणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुई हैं, वह सब मेरे लिए कहो और अपनी कृपा दृष्टि से मुझ दीन दासी को कृतार्थ करो। ऐसा ब्राह्मणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं आदिशक्ति हूं और मैं ही ब्रह्मविद्या और सरस्वती हूं मैं प्रसन्न होने पर प्राणियों का दुख दूर कर उनको सुख प्रदान करती हूं। हे ब्राह्मणी! मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूं। (पूरी कथा पढ़ने के लिए श्री दुर्गा नवरात्रि व्रत कथा PDF डाउनलोड करें। )

नवरात्रि व्रत में क्या करें? / Navratri Vrat Puja Vidhi PDF

  • इस व्रत में उपवास या फलाहार आदि का कोई विशेष नियम नहीं।
  • प्रातः काल उठकर स्नान करके, मन्दिर में जाकर या घर पर ही नवरात्रों में दुर्गा जी का ध्यान करके यह कथा पढ़नी चाहिए।
  • कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष फलदायक है।
  • श्री जगदम्बा की कृपा से सब विघ्न दूर होते हैं। कथा के अन्त में बारम्बार ‘दुर्गा माता तेरी सदा ही जय हो’ का उच्चारण करें।
  • नवरात्र के नौ दिन देवी दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है।
  • नवरात्र व्रत की शुरूआत प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना से की जाती है।
  • नवरात्र के नौ दिन प्रात:, मध्याह्न और संध्या के समय भगवती दुर्गा की पूजा करनी चाहिए।
  • श्रद्धानुसार अष्टमी या नवमी के दिन हवन और कुमारी पूजा कर भगवती को प्रसन्न करना चाहिए।

नवरात्रि के नौ रंग 2022 / Navratri Nine Colors of Nine Days

नवरात्रि के समय हर दिन का एक रंग तय होता है। मान्यता है कि इन रंगों का उपयोग करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

तिथि

रंग

प्रतिपदा- पीला
द्वितीया- हरा
तृतीया- भूरा
चतुर्थी- नारंगी
पंचमी- सफेद
षष्टी- लाल
सप्तमी- नीला
अष्टमी- गुलाबी
नवमी- बैंगनी

नवरात्रि पूजन सामग्री लिस्ट 2021 PDF / Navratri Puja Samagri list 2021

क्रमांक

सामग्री

1. श्रीदुर्गा की प्रतिमा,
2. सिंदूर,
3. दर्पण,
4. कंघी,
5.  केसर,
6. कपूर,
7. धूप,
8. वस्त्र,
9. बंदनवार आम के पत्तों का,
10. पुष्प,
11. सुपारी साबुत,
12. दूर्वा,
13. मेंहदी,
14. बिंदी,
15. हल्दी की गांठ,
16. पिसी हुई हल्दी, पटरा,
17. आसन,
18. पुष्पहार,
19. बेलपत्र,
20. चौकी,
21. रोली,
22. मौली,
23. कमलगट्टा,
24. दीपक,
25. दीपबत्ती,
26. जायफल,
27. जावित्री,
28. नारियल,
29. नैवेद्य,
30. मधु,
31. शक्कर,
32. पंचमेवा,
33. मिट्टी,
34. पान,
35. लौंग,
36. इलायची,
37. हवन सामग्री,
38.  कलश मिट्टी या पीतल का,
39. पूजन के लिए थाली,
40. सरसों सफेद और पीली,
41. श्वेत वस्त्र,
42.  दूध,
43. दही,
44. ऋतुफल,
45. गंगाजल।

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