नान्दी श्राद्ध विधि | Nandi Shraddha Vidhi PDF in Hindi

नान्दी श्राद्ध विधि | Nandi Shraddha Vidhi Hindi PDF Download

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नान्दी श्राद्ध विधि | Nandi Shraddha Vidhi Hindi PDF Summary

प्रिय पाठकों, प्रस्तुत लेख में हम आपको नान्दी श्राद्ध विधि pdf के सम्बन्ध में जानकारी उपलब्ध करवा रहे हैं। अपने पितरों के प्रति श्राद्ध करने से दीर्घायु के साथ ही सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। श्राद्ध कर्म अश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या यानी छह अक्टूबर तक तिथि के अनुसार करने चाहिए। आगरा की ज्योतिषाचार्य पूनम वार्ष्णेय ने बताया कि वंश की परंपरा, वंश के प्रति कर्तव्य और उपादान ही श्राद्ध कर्म है। अपने पितरों का स्मरण करना, उनकी परंपराओं का पालन करना और उन्हें सद्गति प्राप्त कराना ही श्रेष्ठ धर्म है। पांच महायज्ञ में श्राद्ध कर्म को विशेष महत्व दिया गया है। पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध को शास्त्रों में पितृ यज्ञ कहा गया है।
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पितृगण तिथि आने पर वायु रूप में घर के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। वह अपने स्वजनों से श्राद्ध की इच्छा रखते हैं। जब उनके पुत्र या कोई सगे संबंधी श्राद्ध कर्म करते हैं तो वे तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं। पितरों की प्रसन्नता से दीर्घायु, संतति, धन, विद्या, राज्य सुख, स्वर्ग तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। शास्त्रों में ऐसा वर्णित है जो ऐसा नहीं करते हैं पितृ उनको श्राप देकर लौट जाते हैं।
 

नान्दीमुख श्राद्ध विधि PDF / Nandimukh Shradh Vidhi PDF

नान्दी श्राद्ध में दूर्वा या डाभ की सत्यवसु नामक विश्व देवों की दो चटें बनावें यानि दूर्वा के गाँठ देकर दोने या पत्तल में रख देवें । इसी प्रकार पितामही :, माता , प्रपितामही , पिता , प्रमातामही , प्रतिमामही की छह छटें बनावें तथा मातामही , प्रमातामही , वृद्ध प्रमातामही , माता मह , प्रमाता मह , वृद्ध प्रमातामह की भी छह चटें बनावें । कुल १२ न बनाना चाहे तो छह ही चटें बना लें । दो विश्वदेवो की अर्थात् कुल आठ बनावें । जो यानि पिता , माता , दादा , दादी आदि जीवित हो तो उनकी न बनावें । सबको पत्तल पर विराजमान कर दें ।
पश्चात्ताम्रपात्रे दधि कुंकुम यवाक्षत दूर्वा जलानि कीकृत्य सव्येनैव संकल्पं कुर्यात् ।
ताम्रपात्र या सराई में दही , रोली , जौ , दूर्वा और फल इकट्‌ठे करके संकल्प करें । एक पाद्य पात्र भी उपरोक्त वस्तुओं का पृथक बना लेवें । यह कर्म सव्य रहकर ही करें । फिर संकल्प करें ।
ॐ तत्सदध मासोत्तमेऽमुकमासे अमुकपक्षे तिथौ वासरे अमुककर्माङ्गीभूतं आभ्युदयिक श्राद्धमहं करिष्यै ।
पात्रस्थ यवदधि दूर्वादीन दूर्वया चालयन् निम्न मन्त्रं ब्रूयात् । यत्र वृद्धि शब्द आगच्छे त्तदा पत्रावल्यां विराजमानेषु विश्वेदेवादिषु जलं त्यजेत् ।
पात्र में जौ , दही , दूर्वा आदि हैं उनको दूर्वा या डाभ से हिलाता जावे और नीचे लिखे मन्त्र बोलता जावे । जहाँ ‘ वृद्धि ’ आवे वहाँ दूर्वाङ्कारों से कुछ जल लेकर पत्तल पर विराजमान विश्वदेवों पर छोडता जावे ।
 
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