नैतिक शिक्षा | Naitik Shiksha Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप नैतिक शिक्षा PDF / Naitik Shiksha PDF प्राप्त कर सकते हैं। नैतिक शिक्षा ने केवल भारतीय शिक्षा पद्धिति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है बल्कि वैश्विक शिक्षा में भी बहुत अहम् भूमिका निभाती है। आज ऐसी शिक्षा की आवश्कता है, जो पूरे समाज और देश में नैतिकता उत्पन्न कर सके।
यह नैतिकता नैतिक शिक्षा के द्वारा ही उत्पन्न की जा सकती है। इसका अर्थ होता है ऐसा व्यवहार, जिसके अनुसार अथवा जिसका अनुकरण करने से सबकी रक्षा हो सके । अतः हम कह सकते हैं कि नैतिकता वह गुन है, और नैतिक शिक्षा वह शिक्षा है, जो कि समाज के प्रत्येक व्यक्ति सम्पूर्ण समाज तथा देश का हित कर करती है।
नैतिक शिक्षा PDF / नैतिक शिक्षा की अवधारणा PDF
नैतिक शिक्षा को सामान्यतः व्यापक रूप में ग्रहण किया जाता है। इसके अंतर्गत विभिन्न प्रकार की क्रियाएं समाहित हैं।
- शारीरिक स्वास्थ्य का प्रशिक्षण
- मानसिक स्वास्थ्य
- शिष्टाचार या शुद्ध आचार-विचार
- उपयुक्त सामाजिक आचरण
- धार्मिक प्रशिक्षण के नागरिक अधिकार एवं कर्त्तव्य आदि।
कुछ विचारकों का मत है कि :-
- नैतिक शिक्षा को धार्मिक शिक्षा से पृथक नहीं किया जा सकता है। नैतिक शिक्षा को चारित्रिक विकास के रूप में देखते हैं। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि नैतिक शिक्षा उपयुक्त आचरण तथा आदतों के विकास से संबंधित है।
- बालक का नैतिक विकास सामाजिक जीवन की स्वाभाविक देन है अतः नैतिक विकास सामाजिक विकास से अलग कोई वस्तु नहीं है।
- कुछ विचारकों ने नैतिक प्रशिक्षण को कुछ विशिष्ट सद्गुणों तथा आदतों का विकास माना है। परंतु इससे सिद्धान्त-शिक्षण के विकास की संभावना है।
- कुछ विचारकों का मत है कि नैतिकता को ग्रहण किया जाता है न की पढ़ाया जाता है।
- अतः नैतिक शिक्षा उपयुक्त भावनाओं तथा संवेगों के विकास से संबंधित है। इसमें भावात्मक पक्ष पर बल दिया जाता है। अर्थात इसमें संज्ञानात्मक पक्ष को स्थान नहीं दिया जाता है। वरन भावनात्मक विकास को स्थान दिया जाता है।
- नैतिक शिक्षा द्वारा बच्चों को उन विभिन्न परिस्थितियों में रखा जाए जिनमें वे अपनी संज्ञानात्मक क्षमता के आधार उपयुक्त नैतिक निर्णय बनाने में समर्थ हो सके। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि बालकों के समक्ष विभिन्न परिस्थितियाँ में रखा जाए जिनमें वे अपनी संज्ञानात्मक क्षमता के आधार उपयुक्त नैतिक निर्णय बनाने में समर्थ हो सके।
- दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि बालकों के समक्ष विभिन्न परिस्थितियाँ प्रस्तुत की जायें जिनमें वे अपने स्वयं के नैतिक निर्णय बना सके अर्थात वे स्वयं अपने मूल्यों का निर्माण कर सके।
नैतिक शिक्षा की आवश्यकता
चरित्र का निर्माण – मनुष्य के भाग्य का निर्माण उसका चरित्र करता है। चरित्र ही उसके जीवन में उत्थान और पतन, सफलता और विफलता का सूचक है। अतः बालक को सफल व्यक्ति, उत्तम नागरिक और समाज का उपयोगी सदस्य बनाना चाहते हैं तो उसके चरित्र का निर्माण किया जाना परम आवश्यक है। यह तभी सम्भव है, जब उसके लिए धार्मिक और नैतिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।
उचित मूल्यों का समावेश – पाश्चात्य देशों के समाजों में धार्मिक और नैतिक शिक्षा के अभाव के कारण अनेक गंभीर दोष उत्पन्न हो गए हैं। अतः वहां के अनेक महान विचारकों की यह धारणा बन गई है कि धार्मिक और नैतिक शिक्षा के द्वारा छात्रों में उचित मूल्यों का समावेश किया जाना अनिवार्य है। क्योंकि भारतीय समाज में भी पाश्चात्य समाजों के कतिपय दोष दृष्टिगोचर होने लगे हैं, अतः उनका उन्मूलन करने के लिए पाश्चात्य विचारकों की धारणा के अनुसार यहाँ भी कार्य किया जाना आवश्यक है।
अनंत मूल्यों की प्राप्ति – सत्यम, शिवम और सुंदरम अनंत मूल्य समझे जाते हैं। ये सबसे अधिक मूल्यवान वस्तुएँ हैं जो स्वतः अपना अस्तित्व रखती है और हमारे आदर एवं निष्ठा की पात्र हैं। हम केवल धर्म और नैतिकता के माध्यम से ही इन मूल्यों को खोजकर और प्राप्त करके अपने जीवन को पूर्ण बना सकते हैं।
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