मत्स्य द्वादशी व्रत कथा व पूजा विधि | Matsya Dwadashi Vrat Katha Puja Vidhi Hindi PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप मत्स्य द्वादशी व्रत कथा व पूजा विधि / Matsya Dwadashi Vrat Katha Puja Vidhi PDF के प्रारूप में प्राप्त कर सकते हैं। मत्स्य द्वादशी को हिन्दु धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यदि आप अपने जीवन में भगवान श्री हरी विष्णु जी की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं तो मत्स्य द्वादशी का व्रत अवश्य पालन करें।
मत्स्य द्वादशी का व्रत भगवान श्री हरी विष्णु के मत्स्यावतार से संबन्धित हैं। भगवान विष्णु समय – समय पर अपने भक्तों के उद्धार एवं दुष्टों के संहार हेतु भिन्न – भिन्न अवतारों के रूप में पृथ्वीलोक पर आते रहते हैं। मत्स्यावतार भी उनके विभिन्न महत्वपूर्ण अवतारों में से एक है। यदि आप भी आनंदपूर्ण जीवन चाहते हैं इस व्रत का पुण्यलाभ अवश्य लें।
मत्स्य द्वादशी व्रत कथा व पूजा विधि / Matsya Dwadashi Vrat Katha Puja Vidhi PDF
कलपात के पूर्व में एक पुण्यत्मा राजा तप कर रहे थे उस राजा का नाम सत्यव्रत था। जो बड़े ही दानी व उदान व पुण्य आत्मा थे। एक दिन सूर्योदय के समय राजा सत्यव्रत कृतमाला नदीं में स्नान करके जब तर्पण के लिए अजंली (दोनो हाथों में) में जल लिऐ तो उसमें एक छोटी से मछली आ गई। जिसके बाद राजा सत्यव्रत ने उस मछली को जल में छोड़ दिया।
इस पर मछली बोली हे राजन जल में बड़े-बड़े जीव छोटे-छोटे जीवो को खा जाते है। और इसी तरह मुझे भी कोई मारकर खा जाएगा। कृपा करके मेरे प्राणों की रक्षा किजिऐ। राजा के मन में उस मछली के प्रति दया उत्पन्न हो गई और उस मछली को अपने कमण्डल में डाल लिया। और अपने महलो में ले जाकर रख दिया और मछली से कहा की तुम रहा आराम से रह सकती हो। तुम्हे यहा पर कोई खतरा नही है।
तब बड़े ही आर्श्चय की बात हुई वह मछली एक रात में ही दुगनी बड़ी हो गई अर्थात अब वह उस कमण्डल में नही समा रही थी। तब उस मछली ने राजा से कहा हे राजन मेरे रहने के लिए कोई दूसरा स्थान ढूढिऐ। क्योकिं मेरा शरीर बड़ गया है। मुझे घूमने-फिरने में कष्ट हो रहा है। राजा ने उस मछली को कमण्डल से निकालकर एक पानी के मटके में डाल दिया। यहा भी उस मछली का शरीर रातभर में ही दुगना हो गया और मटका भी उसके रहने के लिए छोटा पड़ गया।
मछली पुन: राजा से बोली हे राजन मेरे रहने के लिए कोई और स्थान चुनिऐ। क्योकि यह घंडा भी कमण्डल की तरह छोटा पड़ रहा है। जिसके बाद राजा सत्यव्रत ने उस मछली को मटके से निकालकर एक सरोवर में डाल दिया। किन्तु आर्श्चय की बात सरोवर भी मछली के रहने के लिए छोटा पड़ गया। जिसके बाद राजा ने उस मछली को नदी में डाला किन्तु वहा भी आकार में बड़ी हाे गई जिसके बाद राजा ने मछली को समुद्र में डाल दिया।
अब तो राजा सत्यव्रत और भी ज्यादा आर्श्चय में पड़ गया क्योकि मछली को समुद्र में डालने के बाद उसका आकार इतना बड़ गया। मछली के रहने के लिए वह बहुत छोटा पड़ गया। अत: वह मछली पुन: राजा से बोली हे राजा सत्यव्रत यह समुद्र भी मेरे रहने के योग्य नही है। मेरे रहने की व्यव्स्था की ओर करे। अब राजा सोच में पड़ गया क्योकि उसने आज तक ऐसी कोई मछली नहीं देखी थी।
जिसके बाद राजा सत्यव्रत अपने दोनो हाथ जोड़कर बोले मेरी बुद्धी को विनयसागर में डुबो देने वाले आप कौन है। क्योकि आपका शरीर जिस गती से बड़ रहा है उसे देखते हुऐ बिना किसी सदेंह के कहा जा सकता है आप अवश्य ही परमात्मा है। यदि यह बात सत्य है तो कृपा करके बताइऐ की आपने इस मछली का रूप धारण क्यो किया।
उस मत्स्य के रूप में सचमुच ही भगवान विष्णु जी थे। मत्स्य रूप धारी श्री हरि ने उत्तर दिया हे राजन हयग्रीव नामक एक दैत्य ने वेदों को चुरा लिया है। जिस कारण जगत में चारों ओर अज्ञान व अंधकार फैल गया है। और मैनें हयग्रीव राक्षस को मारने के लिए मत्स्य का रूप धारण किया है। तो आज से सातवें दिन पृथ्वी पृल्य के चक्र में घिर जाएगी और समुद्र उमड़ पडेगा जिस कारण पूरी पृथ्वी पानी में डूब जाएगी। चारो ओर जल-ही जल दिखाई देगा इसके अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देगा।
उसी समय आपके पास एक नाव पहुचेगी आप सभी अनाजो, सदियों, बीजों को लेकर सप्तऋषियों के साथ उस नाव में बैठ जाना। मैं उसी समय आपको पुन: दिखाई दूॅगा और आपको आत्मतत्व का ज्ञान प्रदान करूगा। यह कहकर मत्स्य भगवान वहा से अतर्रध्यान हो गऐ। जिसके बाद राजा उसी दिन पृथ्वी के प्रलय की प्रतीक्षा करने लगे और सातवें दिन पृलय का दृश्य दिखाई दिया चारो ओर पानी ही पानी दिखाई देना लगा। राजा सत्यव्रत को उसी समय एक नाव दिखाई दी राजा सप्तऋषियो के साथ उस नाव में बैठ गऐ।
राजा ने उस नाव के ऊर सभी अनाजों के बीजों को रख लिया और नाव प्रलय के सागर में तैरने लगी। और अचानक राजा सत्यव्रत को भगवान विष्णु जी उस प्रलय के सागर में दिखाई पड़े। राजा सत्यव्रत और सप्तऋषिगण मत्स्य रूपी भगवान की प्रार्थना करने लगे। हे प्रभो आप ही इस सृष्टि की आदि है और आप ही पालक है, और आप ही रक्षक है अत: दया करके हमे अपनी शरण में लीजिऐ।
सप्तऋषियों व राजा सत्यव्रत की प्रार्थना पर भगवान मत्स्य रूपी ने प्रसन्न हो गऐ और अपने वचन के अनुसार राजा सत्यव्रत को आत्मज्ञान प्रदान किया। बताया की सभी प्राणियों में मैं ही निवास करता हॅू ना कोई ऊचा है ना कोई नीचा है। सभी प्राणी एक समान है और यह जगत नश्वर है जिसमें मेरे अतिरिक्त कुछ भी नही है। जो प्राणी मुझे देखते हुए अपना जीवन व्यतीत करता है वह अंत में मुझ में ही मिल जाता है मत्स्य रूपी भगवान से आत्मज्ञान प्राप्त करके राजा सत्यव्रत का जीवन धन्य हो गया और वह जीते जी ही जीवन से मुक्त हो गऐ।
जब प्रृलय का प्रकोप शांत हुआ तो भगवान ने राक्षस हयग्रीव का वध करके वेदों को छुडवाया और ब्रह्मा जी को पुन: वेदों को दे दिया। इस प्रकार भगवान विष्णु जी ने मत्स्य रूप धारण करके वेदों का उद्धार तो किया ही साथ ही संसार के प्राणियो का भी कल्याण किया। भगवान विष्णु जी इसी प्रकार समय-समय पर अवतार लेते है सभी का कल्याण करते है।
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