माता का आँचल | Mata Ka Anchal Summary PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप माता का आँचल PDF / Mata Ka Anchal Summary PDF प्राप्त कर सकते हैं। माता का आँचल एक अत्यधिक प्रभावशाली एवं संदेशप्रद कहानी है जिसके माध्यम से लेखक माँ के आँचल के महत्व को समझने तथा उसे चित्रित करने का प्रयास किया है तथा वह इसमे अत्यंत सफल भी रहे हैं।
यह कहानी अपने मुख्य चरित्र भोलानाथ के समानान्तर चलती है तथा हम देखते हैं कि कैसे भोलानाथ को अपने दैनिक जीवन में माता – पिता दोनों का ही प्रेम पर्याप्त रूप से प्राप्त होता है किन्तु जब वह किसी सर्प को देखकर भयभीत होता है तो वह अपने पिता की ओर नहीं अपितु अपनी माता के आँचल में जाकर शरण लेता है।
“माता का आंचल” की रचना शिवपूजन सहाय जी ने की है जो कि हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, कहानीकार, सम्पादक और पत्रकार थे। माता का आँचल कहानी शिवपूजन सहाय जी द्वारा लिखे हुये एक प्रसिद्ध उंपन्यास का एक भाग है जिसका नाम “देहाती दुनिया” है। यह उपन्यास 1926 में प्रकाशित हुआ था।
माता का आँचल PDF पाठ का सारांश / Mata Ka Anchal Summary PDF
इस कहानी में लेखक ने माता पिता के वात्सल्य , दुलार व प्रेम , अपने बचपन , ग्रामीण जीवन तथा ग्रामीण बच्चों द्वारा खेले जाने वाले विभिन्न खेलों का बड़े सुंदर तरीके से वर्णन किया है। साथ में बात-बात पर ग्रामीणों द्वारा बोली जाने वाली लोकोक्तियों का भी कहानी में बड़े खूबसूरत तरीके से इस्तेमाल किया गया है। यह कहानी मातृ प्रेम का अनूठा उदाहरण है।
यह कहानी हमें बताती है कि एक नन्हे बच्चे को सारी दुनिया की खुशियां , सुरक्षा और शांति की अनुभूति सिर्फ मां के आंचल तले ही मिलती है। कहानी की शुरुवात कुछ इस तरह से होती हैं। शिवपूजन सहाय के बचपन का नाम “तारकेश्वरनाथ” था मगर घर में उन्हें “भोलानाथ” कहकर पुकारा जाता था।
भोलानाथ अपने पिता को “बाबूजी” व माता को “मइयाँ ” कहते थे। बचपन में भोलानाथ का अधिकतर समय अपने पिता के सानिध्य में ही गुजरता था। वो अपने पिता के साथ ही सोते , उनके साथ ही जल्दी सुबह उठकर स्नान करते और अपने पिता के साथ ही भगवान की पूजा अर्चना करते थे।
वो अपने बाबूजी से अपने माथे पर तिलक लगवाकर खूब खुश होते और जब भी भोलानाथ के पिताजी रामायण का पाठ करते , तब भोलानाथ उनके बगल में बैठ कर अपने चेहरे का प्रतिबिंब आईने में देख कर खूब खुश होते। पर जैसे ही उनके बाबूजी की नजर उन पर पड़ती तो , वो थोड़ा शर्माकर , थोड़ा मुस्कुरा कर आईना नीचे रख देते थे।
उनकी इस बात पर उनके पिता भी मुस्कुरा उठते थे। पूजा अर्चना करने के बाद भोलानाथ राम नाम लिखी कागज की पर्चियों में छोटी -छोटी आटे की गोलियां रखकर अपने बाबूजी के कंधे में बैठकर गंगा जी के पास जाते और फिर उन आटे की गोलियां को मछलियों को खिला देते थे। उसके बाद वो अपने बाबूजी के साथ घर आकर खाना खाते।
भोलानाथ की मां उन्हें अनेक पक्षियों के नाम से निवाले बनाकर बड़े प्यार से खिलाती थी। भोलानाथ की माँ भोलानाथ को बहुत लाड -प्यार करती थी। वह कभी उन्हें अपनी बाहों में भर कर खूब प्यार करती , तो कभी उन्हें जबरदस्ती पकड़ कर उनके सिर पर सरसों के तेल से मालिश करती । उस वक्त भोलानाथ बहुत छोटे थे। इसलिए वह बात-बात पर रोने लगते।
इस पर बाबूजी भोलानाथ की मां से नाराज हो जाते थे। लेकिन भोलानाथ की मां उनके बालों को अच्छे से सवाँर कर , उनकी एक अच्छी सी गुँथ बनाकर उसमें फूलदाऱ लड्डू लगा देती थी और साथ में भोलानाथ को रंगीन कुर्ता व टोपी पहना कर उन्हें “कन्हैया” जैसा बना देती थी। भोलानाथ अपने हमउम्र दोस्तों के साथ खूब मौजमस्ती और तमाशे करते।
इन तमाशों में तरह-तरह के नाटक शामिल होते थे। कभी चबूतरे का एक कोना ही उनका नाटक घर बन जाता तो , कभी बाबूजी की नहाने वाली चौकी ही रंगमंच बन जाती। और उसी रंगमंच पर सरकंडे के खंभों पर कागज की चांदनी बनाकर उनमें मिट्टी या अन्य चीजों से बनी मिठाइयों की दुकान लग जाती जिसमें लड्डू , बताशे , जलेबियां आदि सजा दिये जाते थे।
और फिर जस्ते के छोटे-छोटे टुकड़ों के बने पैसों से बच्चे उन मिठाइयों को खरीदने का नाटक करते थे। भोलानाथ के बाबूजी भी कभी-कभी वहां से खरीदारी कर लेते थे। ऐसे ही नाटक में कभी घरोंदा बना दिया जाता था जिसमें घर की पूरी सामग्री रखी हुई नजर आती थी। तो कभी-कभी बच्चे बारात का भी जुलूस निकालते थे जिसमें तंबूरा और शहनाई भी बजाई जाती थी।
दुल्हन को भी विदा कर लाया जाता था। कभी-कभी बाबूजी दुल्हन का घूंघट उठा कर देख लेते तो , सब बच्चे हंसते हुए वहां से भाग जाते थे। बाबूजी भी बच्चों के खेलों में भाग लेकर उनका आनंद उठाते थे। बाबूजी बच्चों से कुश्ती में जानबूझ कर हार जाते थे । बस इसी हँसी – खुशी में भोलानाथ का पूरा बचपन मजे से बीत रहा था।
एक दिन की बात है सारे बच्चे आम के बाग़ में खेल रहे थे। तभी बड़ी जोर से आंधी आई। बादलों से पूरा आकाश ढक गया और देखते ही देखते खूब जम कर बारिश होने लगी। काफी देर बाद बारिश बंद हुई तो बाग के आसपास बिच्छू निकल आए जिन्हें देखकर सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। संयोगवश रास्ते में उन्हें मूसन तिवारी मिल गए।
भोलानाथ के एक दोस्त बैजू ने उन्हें चिढ़ा दिया। फिर क्या था बैजू की देखा देखी सारे बच्चे मूसन तिवारी को चिढ़ाने लगे। मूसन तिवारी ने सभी बच्चों को वहाँ से खदेड़ा और सीधे पाठशाला चले गए। पाठशाला में उनकी शिकायत गुरु जी से कर दी। गुरु जी ने सभी बच्चों को स्कूल में पकड़ लाने का आदेश दिया।
सभी को पकड़कर स्कूल पहुंचाया गया। दोस्तों के साथ भोलानाथ को भी जमकर मार पड़ी। जब बाबूजी तक यह खबर पहुंची तो , वो दौड़े-दौड़े पाठशाला आए। जैसे ही भोलानाथ ने अपने बाबूजी को देखा तो वो दौड़कर बाबूजी की गोद में चढ़ गए और रोते-रोते बाबूजी का कंधा अपने आंसुओं से भिगा दिया। गुरूजी की मान मिनती कर बाबूजी भोलानाथ को घर ले आये।
भोलानाथ काफी देर तक बाबूजी की गोद में भी रोते रहे लेकिन जैसे ही रास्ते में उन्होंने अपनी मित्र मंडली को देखा तो वो अपना रोना भूलकर मित्र मंडली में शामिल हो गए। मित्र मंडली उस समय चिड़ियों को पकड़ने की कोशिश कर रही थी। भोलानाथ भी चिड़ियों को पकड़ने लगे। चिड़ियाँ तो उनके हाथ नहीं आयी। पर उन्होंने एक चूहे के बिल में पानी डालना शुरू कर दिया।
उस बिल से चूहा तो नहीं निकला लेकिन सांप जरूर निकल आया। सांप को देखते ही सारे बच्चे डर के मारे भागने लगे। भोलानाथ भी डर के मारे भागे और गिरते-पड़ते जैसे-तैसे घर पहुंचे। सामने बाबूजी बैठ कर हुक्का पी रहे थे। लेकिन भोलानाथ जो अधिकतर समय अपने बाबूजी के साथ बिताते थे , उस समय बाबूजी के पास न जाकर सीधे अंदर अपनी मां की गोद में जाकर छुप गए।
डर से काँपते हुए भोलानाथ को देखकर मां घबरा गई । माँ ने भोलानाथ के जख्मों की धूल को साफ कर उसमें हल्दी का लेप लगाया। डरे व घबराए हुए भोलानाथ को उस समय पिता के मजबूत बांहों के सहारे व दुलार के बजाय अपनी मां का आंचल ज्यादा सुरक्षित व महफूज लगने लगा ।
माता का आँचल PDF Question Answer
- लेखक भोलानाथ को पूजा में अपने साथ क्यों बैठाते थे?
उत्तर : भोलानाथ को पूजा में बैठाने के निम्न कारण हो सकते थे-
- लेखक भोलानाथ से अधिक प्यार करते थे।
- लेखक के पिताजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी यही इच्छा रही होगी कि भोलानाथ में धार्मिक प्रवृत्ति बनी रहे।
- शिशु भोलानाथ पर ईश्वर की कृपा बरसती रहे।
प्रश्न 2 : शिशु का नाम भोलानाथ कैसे पड़ा? .
उत्तर : शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् शिव के भक्त थे। अपने समीप बैठा कर शिशु के माथे पर भभूत लगाकर और त्रिपुण्डाकार में तिलक लगाकर, लम्बी जटाओं के साथ शिशु से कहने लगते कि बन गया भोलानाथ। फिर तारकेश्वर नाथ न कहकर धीरे-धीरे उसे भोलानाथ कहकर पुकारने लगे और फिर हो गया भोलानाथ।
प्रश्न 3 : भोलानाथ पूजा-पाठ में पिताजी के पास बैठा क्या करता रहता था?
उत्तर : पिताजी पूजा-पाठ करते, रामायण का पाठ करते तो उनकी बगल में बैठा भोलानाथ आइने में अपने मुँह निहारा करता था। पिताजी जब भोलानाथ की ओर देखने लगते तो शिशु भोलानाथ लजाकर और कुछ मुस्करा कर आइना को नीचे रख देता था। ऐसा करने पर पिताजी मुस्कुरा पड़ते थे।
प्रश्न 4 : भोलानाथ के पिताजी की पूजा के कौन-कौन से अंग थे?
उत्तर : भोलानाथ के पिताजी की पूजा के चार अंग थे
- भगवान शंकर की विधिवत पूजा करना।
- रामायण का पाठ करना।
- ‘रामनामा बही’ पर राम-राम लिखना।
- इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे कागज पर राम-नाम लिखकर उन कागजों से आटे की गोली बनाकर उन गोलियों को गंगा में फेंककर मछलियों को खिलाना।
प्रश्न 5 : भोलानाथ माँ के साथ कितना नाता रखता था। वह अपने माता-पिता से क्या कहता था?
उत्तर : भोलानाथ का माता के साथ दूध पीने तक नाता था। इसके अतिरिक्त माँ के पास वह जबरदस्ती रहता था क्योंकि माता भोलानाथ के न चाहते हुए जबरदस्ती तेल लगाना तथा उबटन करती थी। जिससे भोलानाथ को माँ के पास रहना पसन्द नहीं था। भोलानाथ अपनी माता को मइयाँ और पिताजी को बाबूजी कहता था।
प्रश्न 6 : भोलानाथ के गोरस-भात खा चुकने के बाद माता और खिलाती थी। क्यों?
उत्तर : भोलानाथ को पिताजी गोरस भात सानकर थोड़ा-थोड़ा करके खिला देते थे, फिर भी माता उसे भर-भर कौर खिलाती थी। कभी तोता के नाम का कौर कभी मैना के नाम का कौर। माँ कहती थी कि बच्चे को मर्दे क्या खिलाना जानें । थोड़ा-थोड़ा खिलाने से बच्चे को लगता है कि बहुत खा चुका और बिना पेट भरे ही खाना बन्द कर देता है।
प्रश्न 7 : भोलानाथ भयभीत होकर बाग से क्यों भागा?
उत्तर : भोलानाथ बाग में अपने दोस्तों की टोली के साथ था। आकाश में बादल आए, बालकों ने शोर मचाया। वर्षा शुरू हुई और थोड़ी देर में ही मूसलाधार वर्षा हुई। बालक पेड़ों के नीचे पेड़ों से चिपक गए। जैसे ही वर्षा थमी, बाग में बिच्छू निकल आए। उनसे डरकर बच्चे भागे। उस भय से डरा हुआ बालक भोलानाथ भी बाग से भागा।
प्रश्न 8 : भोलानाथ को सिसकते हुए देख माँ का स्नेह फूट पड़ा। कैसे?
उत्तर : भोलानाथ भय से सिसकता हुआ, भय से प्रकम्पित भागा-भागा माँ की गोद में छिपा तो माँ भी स्नेहवश डर गई और डर से काँपते हुए भोलानाथ को देखकर जोर से रो पड़ी। सब काम छोड़ अधीर होकर भोलानाथ से भय का कारण पूछने लगी। कभी अंग भरकर दबाने लगी और अंगों को अपने आँचल से पोंछकर चूमने लगी। झटपट हल्दी पीसकर घावों पर लगा दी गई। माँ बार-बार निहारती, रोती और बड़े लाड़-प्यार से उसे गले लगा लेती।
प्रश्न 9 : भयप्रकम्पित भोलानाथ का चित्रण कीजिए।
उत्तर भोलानाथ साँप के भय से मुक्त नहीं हो पा रहा था। अपने हुक्का-गुड़गुड़ाते पिताजी की पुकार को भी अनसुनी कर घर की ओर भाग कर आया। उसकी सिसकियाँ नहीं रुक रही थीं। साँ-साँ करते हुए माँ के आँचल में छिपा जा रहा था। सारा शरीर काँप रहा था। रोंगटे खड़े हो रहे थे। आँखें खोलने पर नहीं खुल रही थीं।
प्रश्न 10 : लेखक किस घटना को याद कर कहता है कि वैसा घोड़मुँहा आदमी हमने कभी नहीं देखा?
उत्तर : लेखक बताता है कि बचपन में हम बच्चों की टोली किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई ओहारदार पालकी देख लेते तो खूब जोर से चिल्लाते थे रहरी में रहरी पुरान रहरी। डोला के कनिया हमार मेहरी। एक बार ऐसा कहने पर बूढ़े वर ने बड़ी दूर तक खदेड़ कर ढेलों से मारा था। उस खूसट-खब्बीस की सूरत को लेखक नहीं भुला पाया। उसे याद कर लेखक कहता था कि न जाने किस ससुर ने वैसा जमाई ढूंढ़ निकाला था। वैसा घोड़मुँहा आदमी कभी नहीं देखा।
प्रश्न 11 : मूसन तिवारी ने बच्चों को क्यों खदेड़ा?
उत्तर : बच्चे बाग में खेल रहे थे, वर्षा हुई तो बाग में बिच्छू निकल आए और बच्चे डरकर भाग उठे। बच्चों की मण्डली में बैजू बालक ढीठ था। संयोग से रास्ते में मूसन-तिवारी मिल गए, जिन्हें कम सूझता था, बैजू ने उन्हें चिढ़ाया ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।’ बैजू के सुर में सबने सुर मिलाया और चिल्लाना शुरू कर दिया। तब मूसन तिवारी ने बच्चों को खदेड़ा।
प्रश्न 12 : गुरुजी ने भोलानाथ की खबर क्यों ली?
उत्तर : मूसन तिवारी हमारे चिढ़ाने पर सीधे पाठशाला शिकायत करने चले गए। वहाँ से गुरुजी ने भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए चार लड़के भेजे। जैसे ही हम घर पहुँचे वैसे ही चारों लड़के घर पहुँचे और भोलानाथ को दबोच लिया और बैजू नौ-दो ग्यारह हो गया और गुरुजी ने भोलानाथ की खबर ली।
प्रश्न 13 : गुरुजी की फटकार से रोता हुआ बालक यकायक कैसे चुप हो गया?
उत्तर : गुरुजी ने मूसन तिवारी को चिढ़ाने की सजा दी। पिताजी को पता चला तो पाठशाला आए। गोद में उठाकर पुचकारन दुलारने लगे। भोलानाथ ने रोते-रोते पिताजी का कन्धा आँसुओं से तर कर दिया। पिताजी बालक को गुरुजी से चिरोरी कर घर ले जा रहे थे। रास्ते में साथियों का झुण्ड मिल गया। वे जोर-जोर से नाच-गा रहे थे-
माई पकाई गरर-गरर पूआ,
हम खाइब पूआ,
ना खेलब जुआ।
बालक भोलानाथ उन्हें देखकर रोना-धोना यकायक भूल गया और हठ करके बाबूजी की गोद से उतर गया और लड़कों की मण्डली में मिलकर वही तान-सुर अलापने लगा।
प्रश्न 14 : बाबूजी और गाँव के लोगों ने ऐसा क्यों कहा कि-“लड़के और बन्दर सचमुच पराई पीर नहीं समझते।”
उत्तर : लड़कों की मण्डली खेत में दाने चुग रही चिड़ियों के झुण्ड को देखकर दौड़-दौड़ कर पकड़ने लगी। एक भी चिड़िया हाथ नहीं आई थी। भोलानाथ खेत से अलग होकर गा रहा था –
राम जी की चिरई, राम जी का खेत,
खा लो चिरई, भर-भर पेट।
बाबूजी और गाँव के लोग तमाशा देख हँस रहे थे कह रहे थे कि
चिड़िया की जान जाए,
लड़कों का खिलौना।
यह दृश्य देखकर उन्होंने कहा था-“लड़के और बन्दर सचमुच पराई पीर नहीं समझते।”
प्रश्न 15 : ‘बाल-स्वभाव‘ पर पाठ के आधार पर विचार प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर : बाल-स्वभाव में कोई भी सुख-दुख स्थायी नहीं होता है। बच्चे अपने मन के अनुकूल स्थितियों को देख बड़े से बड़े दुख को भूल कर सामान्य हो जाते हैं। वे खेल प्रिय होते हैं। वे मात्र अनुकूल स्नेह को पहचानते हैं। भोलानाथ माता के उबटने पर सिसकता है, ऐसे ही गुरु के खबर लेने पर रोता है परंतु तुरन्त ही बालकों की टोली देख उसके सिसकने में एकदम ठहराव आ जाता है और सामान्य होकर खेलने में ऐसे मस्त हो जाता है कि लगता ही नहीं की थोड़ी देर पहले कुछ हुआ हो। अतः बाल-स्वभाव में अन्तर्मन निर्द्वन्द्व, निश्छल होता है।
माता का आँचल पाठ के लेखक शिवपूजन सहाय जी की कृतियाँ
कथा एवं उपन्यास |
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तूती-मैना | |
देहाती दुनिया – | 1943 |
विभूति – | 1935 |
वे दिन वे लोग – | 1965 |
बिम्ब:प्रतिबिम्ब – | 1967 |
मेरा जीवन – | 1985 |
स्मृतिशेष – | 1994 |
हिन्दी भाषा और साहित्य – | 1996 में |
ग्राम सुधार – | 2007 |
शिवपूजन सहाय साहित्य समग्र (१० खंड) – | 2011 |
शिवपूजन रचनावली (४ खंड) | 1956- 59 |
सम्पादन कार्य |
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द्विवेदी अभिनन्दन ग्रन्थ – | 1932 |
जयन्ती स्मारक ग्रन्थ – | 1942 |
अनुग्रह अभिनन्दन ग्रन्थ – | 1946 |
राजेन्द्र अभिननदन ग्रन्थ – | 1950 |
हिंदी साहित्य और बिहार | (खंड १-२, 1960,1963) |
अयोध्या प्रसाद खत्री स्मारक ग्रन्थ – | 1960 |
बिहार की महिलाएं – | 1962 |
आत्मकथा ( ले. डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद) – | 1947 |
रंगभूमि – | 1925 |
संपादित पत्र-पत्रिकाएं |
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मारवाड़ी सुधार – | 1929 |
मतवाला – | 1923 |
माधुरी – | 1924 |
समन्वय – | 1925 |
मौजी – | 1925 |
गोलमाल – | 1925 |
जागरण – | 1932 |
गंगा – | 1931 |
बालक – | 1934 |
हिमालय – | 1946-47 |
साहित्य – | 1950-62 |
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