मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा | Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha Hindi PDF Summary
दोस्तों यहाँ हमने आपके लिए Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha PDF in Hindi / मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा PDF अपलोड किया है। माता लक्ष्मी जी का व्रत करने से माता आपके सारे दुखों को मिटा देती हैं तथा आपको आजीवन खुशाल जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं। मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा हिंदी पीडीएफ में आपको लक्ष्मी जी की आरती, पूजा विधि तथा अन्य चीज़े पढ़ने को मिलेंगी। महालक्ष्मी व्रत मां लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए विधिनुसार किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल यह व्रत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से प्रारंभ हो जाते हैं और 16 दिनों तक व्रत रखे जाते हैं। पितृ पक्ष की अष्टमी तिथि में व्रत का समापन होता है। व्रत का फल जातक को तभी प्राप्त होता है जब वह व्रत में गज लक्ष्मी व्रत कथा को सुनता है। इस पोस्ट में आप बड़ी आसानी से Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha PDF in Hindi / मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा हिंदी PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
महालक्ष्मी अष्टकम तथा श्री महालक्ष्मी कवच का ध्यान करने से लक्ष्मी माता अत्यंत प्रशन्न हो जाती है और खूब कृपा बरसाती हैं। भक्तजनों को महालक्ष्मी मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। सच्चे मन से माता की पूजा- अर्चना कर के लक्ष्मी जी की आरती भी अवश्य करनी चाहिए। श्री लक्ष्मी सहस्रनाम स्तोत्र तथा सिद्ध लक्ष्मी स्तोत्र का नियमित पाठ करने से लक्ष्मी जी खुश होकर अपने भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं। जो भी भक्तजन आर्थिक रूप से परेशान है उन्हें वैभव लक्ष्मी का व्रत रखना चाहिए और वैभव लक्ष्मी व्रत कथा सुननी चाहिए ऐसा करने से मैया अपने भक्तों पर खूब धनवर्षा करती हैं।
मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत कथा PDF | Margashirsha Mahalaxmi Vrat Katha PDF in Hindi
एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। वह नियमित रुप से जगत के पालनहार विष्णु भगवान की अराधना करता था। उसकी पूजा-भक्ति से प्रसन्न होकर उसे भगवान श्रीविष्णु ने दर्शन दिए और ब्राह्मण से वर मांगने के लिए कहा। तब ब्राह्मण ने लक्ष्मीजी का निवास अपने घर में होने की इच्छा जाहिर की। तब श्रीविष्णु ने लक्ष्मीजी की प्राप्ति का मार्ग बताया। उन्होंने बताया कि मंदिर के सामने एक स्त्री आती है, जो यहां आकर उपले थापती है, तुम उसे अपने घर आने का आमंत्रण देना। वही देवी लक्ष्मी हैं।
विष्णु जी ने ब्राह्मण से कहा, जब धन की देवी मां लक्ष्मी के तुम्हारे घर पधारेंगी तो तुम्हारा घर धन और धान्य से भर जायेगा। यह कहकर श्रीविष्णु जी चले गए। अगले दिन वह सुबह ही वह मंदिर के सामने बैठ गया। लक्ष्मी जी उपले थापने के लिये आईं तो ब्राह्मण ने उनसे अपने घर आने का निवेदन किया। ब्राह्मण की बात सुनकर लक्ष्मीजी समझ गईं, कि यह सब विष्णुजी के कहने से हुआ है।
लक्ष्मीजी ने ब्राह्मण से कहा कि मैं चलूंगी तुम्हारे घर लेकिन इसके लिए पहले तुम्हें महालक्ष्मी व्रत करना होगा। 16 दिनों तक व्रत करने और 16वें दिन रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देने से तुम्हारा मनोरथ पूरा होगा। ब्राह्मण ने देवी के कहे अनुसार व्रत और पूजन किया और देवी को उत्तर दिशा की ओर मुंह करके पुकारा। इसके बाद देवी लक्ष्मी ने अपना वचन पूरा किया। मान्यता है कि उसी दिन से इस व्रत की परंपरा शुरू हुई थी।
मार्गशीर्ष महालक्ष्मी व्रत पूजा विधि | Margashirsha Mahalaxmi Vrat Pooja Vidhi
यह पूजा गुरुवार के दिन करनी होती है। 1 :- यह व्रत पूजा करने से माता महालक्ष्मी प्रसन्न होती है, तथा सुख शान्ति एवं धन संपत्ति प्राप्त होती है। यह व्रत करने वाले स्त्री तथा पुरुष दोनों मन से स्वस्थ एवं आनंदमय होने चाहिये।इस व्रत को किसी भी महीने के प्रथम गुरुवार ( बृहस्पति वार) से शुरु कर सकते हैं। विधि नियम अनुसार हर गुरुवार को महालक्ष्मी व्रत करे। श्री महालक्ष्मी की व्रतकथा को पढ़ें लगातार आठ गुरुवार को व्रत पालन करने पर अंतिम गुरुवार को समापन करे, वैसे यह व्रत पूजा पूरे वर्षभर भी कर सकते हैं। पुरे वर्ष भर हर गुरुवार के देवी की प्रतिमा या फ़ोटो के सामने बैठकर व्रत कथा को पढ़ें।
2:- शेष गुरुवार के दिन आठ सुहागनों या कुँवारी कन्याओं को आमंत्रित कर उन्हें संमंके साथ पीढा या आसान पर बिठाकर श्री महालक्ष्मी का रूप समझ कर हल्दी कुमकुम लगायें। पूजा की समाप्ति पर फल प्रसाद वितरण करें तथा इस कथा की एक प्रति उन्हें देकर नमस्कार करें। केवल नारी ही नहीं अपितु पुरष भी यह पूजा कर सकते हैं। वे सुहागन या कुमारिका को आमंत्रित कर उन्हें हाथ में हल्दीकुंकुं प्रदान करें तथा व्रत कथा की एक प्रति देकर उन्हें प्रणाम करे। पुरुषो को भी इस व्रत कथा को पढ़ना चाहिये। जिस दिन व्रत हो, उपवास करे , दूध, फलाहार करें। खाली पेट न रहे, रात को भोजन से पहले देवी को भोग लगायें एवं परिवार के साथ भोजन करें।
3:- पदमपुराण में यह व्रत गृहस्तजनों के लिये बताया गया है। इस पूजा को पति पत्नी मिलकर कर सकते हैं। अगर किसी कारण पूजा में बाधा आये तो औरों से पूजा करवा लेनी चाहिये। पर खुद उपवास अवश्य करें। उस गुरुवार को गिनती में न लें।
4 :- अगर किसी दूसरी पूजा का उपवास गुरुवार को आये तो भी यह पूजा की जा सकती है। दिन / रात में भी पूजा की जा सकती है। दिन में उपवास करें तथा रात में पूजा के बाद भोजन करलें। इस व्रत कथा को सुनने के लिये अपने आसपड़ोस के लोगों को, रिश्तेदारो को तथा घर के लोगो को बुलायें व्रत कथा को पढ़ते समय शान्ति तथा एकाग्रता बरतें।
5:- अगहन (मार्गशीष) के पहले गुरुवार को व्रत शुरू करें तथा अंतिम गुरुवार को उसका समापन करे। अगर माह में पाँच गुरुवार आये तो पांचों गुरुवार को ( उस दिन अमावस्या /या पूर्णिमा ) तो भी पूजा करें।
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