मंगला गौरी व्रत कथा | Mangla Gauri Vrat Katha Hindi PDF Summary
दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आएं हैं मंगला गौरी व्रत कथा PDF / Mangla Gauri Vrat Katha PDF in Hindi हिंदी भाषा में। मंगला गौरी व्रत हिन्दुओं का त्यौहार है। श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को मंगला गौरी व्रत किया जाता है। भविष्यपुराण और नारदपुराण में इस व्रत का जिक्र किया गया है। इस दिन देवी पार्वती की पूजा गौरी स्वरूप में की जाती है। हिन्दू धर्मानुसार जिन जातकों की कुंडली में विवाह-दोष या जिनकी शादी में देरी हो रही हो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इस व्रत को बेहद अहम माना जाता है। इस पोस्ट में हमने आपके लिए Mangla Gauri Vrat Katha Hindi PDF डाउनलोड करने के लिए डायरेक्ट लिंक भी दिया हैं।
हिन्दू धर्मानुसार जिन जातकों की कुंडली में विवाह-दोष या जिनकी शादी में देरी हो रही हो उन्हें यह व्रत अवश्य करना चाहिए। सुखी वैवाहिक जीवन के लिए भी इस व्रत को बेहद अहम माना जाता है।
मंगला गौरी व्रत कथा PDF | Mangla Gauri Vrat Katha PDF in Hindi
कथा- एक समय की बात है, एक शहर में धरमपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी काफी खूबसूरत थी और उसके पास काफी संपत्ति थी। लेकिन उनके कोई संतान नहीं होने के कारण वे काफी दुखी रहा करते थे। ईश्वर की कृपा से उनको एक पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वह अल्पायु था। उसे यह श्राप मिला था कि 16 वर्ष की उम्र में सांप के काटने से उसकी मौत हो जाएगी। संयोग से उसकी शादी 16 वर्ष से पहले ही एक युवती से हुई जिसकी माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी।
परिणामस्वरूप उसने अपनी पुत्री के लिए एक ऐसे सुखी जीवन का आशीर्वाद प्राप्त किया था जिसके कारण वह कभी विधवा नहीं हो सकती थी। इस वजह से धरमपाल के पुत्र ने 100 साल की लंबी आयु प्राप्त की। इस कारण से सभी नवविवाहित महिलाएं इस पूजा को करती हैं तथा गौरी व्रत का पालन करती हैं तथा अपने लिए एक लंबी, सुखी तथा स्थायी वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं। जो महिला उपवास का पालन नहीं कर सकतीं, वे भी कम से कम इस पूजा तो करती ही हैं।
इस कथा को सुनने के बाद विवाहित महिला अपनी सास तथा ननद को 16 लड्डू देती है। इसके बाद वे यही प्रसाद ब्राह्मण को भी देती है। इस विधि को पूरा करने के बाद व्रती 16 बाती वाले दीये से देवी की आरती करती है। व्रत के दूसरे दिन बुधवार को देवी मंगला गौरी की प्रतिमा को नदी या पोखर में विसर्जित कर दी जाती है। अंत में मां गौरी के सामने हाथ जोड़कर अपने समस्त अपराधों के लिए एवं पूजा में हुई भूल-चूक के लिए क्षमा मांगें। इस व्रत और पूजा को परिवार की खुशी के लिए लगातार 5 वर्षों तक किया जाता है।
अत: शास्त्रों के अनुसार यह मंगला गौरी व्रत नियमानुसार करने से प्रत्येक मनुष्य के वैवाहिक सुख में बढ़ोतरी होकर पुत्र-पौत्रादि भी अपना जीवन सुखपूर्वक गुजारते हैं, ऐसी इस व्रत की महिमा है।
Mangla Gauri Vrat Katha Hindi PDF – व्रत विधि
शास्त्रों के अनुसार श्रावण माह के प्रत्येक मंगलवार को प्रातः स्नान कर मंगला गौरी की फोटो या मूर्ति को सामने रखकर अपनी कामनाओं को मन में दोहराना चाहिए। आटे से बने दीपक में 16 बत्तियां जलाकर देवी के सामने रखना चाहिए।
इसके साथ ही सोलह लड्डू,पान, फल, फूल, लौंग,इलायची तथा सुहाग की निशानियों को देवी के सामने रखकर उसकी पूजा करनी चाहिए। पूजा समाप्त होने पर सभी वस्तुएं ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए साथ ही गौरी प्रतिमा को नदी या तालाब में बहा देना चाहिए।
इस दिन यह अवश्य ध्यान रखें कि इस पूजा में उपयोग की जाने वाली सभी वस्तुएं सोलह की संख्या में होनी चाहिए। पांच वर्ष तक मंगला गौरी व्रत करने के बाद पांचवे वर्ष के श्रावण माह के अंतिम मंगलवार को इस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
Mangla Gauri Vrat Katha PDF in Hindi – पूजा विधि
- इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठें।
- निवृत्त होकर साफ-सुधरे वस्त्र धारण करें।
- इस दिन एक ही बार अन्न ग्रहण करके पूरे दिन माता पार्वती की अराधना करनी चाहिए।
- चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर मां मंगला यानी माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करें।
- अब विधि-विधान से माता पार्वती की पूजा करें।
मंगला गौरी व्रत फल
मान्यता के अनुसार इस व्रत को पूरे विधा- विधान से करने सुहागिन स्त्रियों को मां गौरी अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं। इसके अलावा यह व्रत सुखी जीवन तथा लंबी आयु के लिए भी शुभ फलदायी माना जाता है।
मंगला गौरी व्रत कथा PDF – व्रत महत्त्व
मंगला गौरी व्रत को ज्यादातर सुहागिनें रखती हैं। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही पति को दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार, इस व्रत को शुरू करने के बाद कम से कम पांच तक रखा जाता है। हर साल सावन में 4 या 5 मंगलवार पड़ते हैं। सावन के आखिरी मंगला गौरी व्रत को उद्यापन का विधान है।
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