मंगल गायत्री मंत्र | Mangal Gayatri Mantra PDF

मंगल गायत्री मंत्र | Mangal Gayatri Mantra PDF Download

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मंगल गायत्री मंत्र | Mangal Gayatri Mantra - Description

नमस्कार पाठकों, यहां आप मंगल गायत्री मंत्र / Mangal Gayatri Mantra PDF निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। मंगल गायत्री मंत्र का जाप करने से न केवल मंगल देव प्रसन्न होते हैं बल्कि हनुमान जी की भी कृपा प्राप्त होती है। जो लोग बहुत लम्बे समस्य से कर्ज में दबे हुए हैं तथा बहुत प्रयास करने पर भी कर्ज से छुटकारा नहीं मिल पा रहा है तो इस मंत्र के जाप से शीघ्र ही कर्ज उतारने में सहयता होती है।
यह बहुत ही सिद्ध मंत्र है जिसका पाठ पवित्रता से करना चाहिए तथा इस मंत्र का उच्चारण करते हुए किसी भी प्रकार की गलती नहीं करनी चाहिए अन्यथा इसका पूर्ण प्रभाव नहीं होता है तथा आपको सम्पूर्ण लाभ नहीं प्राप्त हो पाता है। यदि आप भी अपने जीवन में आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं तथा उससे शीघ्र छुटकारा पाना चाहते हैं, तो इस मंत्र का पाठ अवश्य करें।

Mangal Gayatri Mantra PDF

हिन्दू धार्मिक ग्रंथों में विभिन्न देवी – देवताओं को समर्पित गायत्री मंत्र का वर्णन मिलता है। मंगल गायत्री मंत्र इस प्रकार है –

ॐ अंगारकाय विद्महे शक्तिहस्ताय धीमहि तन्नो भोम: प्रचोदयात् ।।

मंगलवार की आरती | Mangalvar Aarti Lyrics in Hindi

मंगल मूरति जय जय हनुमंता, मंगल-मंगल देव अनंता।
हाथ व्रज और ध्वजा विराजे, कांधे मूंज जनेऊ साजे।
शंकर सुवन केसरी नंदन, तेज प्रताप महा जगवंदन।
लाल लंगोट लाल दोऊ नयना, पर्वत सम फारत है सेना।
काल अकाल जुद्ध किलकारी, देश उजारत क्रुद्ध अपारी।
रामदूत अतुलित बलधामा, अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।
महावीर विक्रम बजरंगी, कुमति निवार सुमति के संगी।
भूमि पुत्र कंचन बरसावे, राजपाट पुर देश दिवावे।
शत्रुन काट-काट महिं डारे, बंधन व्याधि विपत्ति निवारे।
आपन तेज सम्हारो आपै, तीनों लोक हांक ते कांपै।
सब सुख लहैं तुम्हारी शरणा, तुम रक्षक काहू को डरना।
तुम्हरे भजन सकल संसारा, दया करो सुख दृष्टि अपारा।
रामदण्ड कालहु को दण्डा, तुम्हरे परसि होत जब खण्डा।
पवन पुत्र धरती के पूता, दोऊ मिल काज करो अवधूता।
हर प्राणी शरणागत आए, चरण कमल में शीश नवाए।
रोग शोक बहु विपत्ति घराने, दुख दरिद्र बंधन प्रकटाने।
तुम तज और न मेटनहारा, दोऊ तुम हो महावीर अपारा।
दारिद्र दहन ऋण त्रासा, करो रोग दुख स्वप्न विनाशा।
शत्रुन करो चरन के चेरे, तुम स्वामी हम सेवक तेरे।
विपति हरन मंगल देवा, अंगीकार करो यह सेवा।
मुद्रित भक्त विनती यह मोरी, देऊ महाधन लाख करोरी।
श्रीमंगलजी की आरती हनुमत सहितासु गाई।
होई मनोरथ सिद्ध जब अंत विष्णुपुर जाई।
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