मानवाधिकार Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप मानवाधिकार pdf in Hindi प्राप्त कर सकते हैं। मानवाधिकार सामाजिक ढांचे के लिए अत्यधिक अवश्यक हैं। मानवाधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जिनके माध्यम से ये सुनिश्चित किया जाता है कि प्रत्येक मानव को समान अधिकार, उत्तरदायित्व तथा अवसर प्राप्त हों।
मानवाधिकार सामाजिक भेदभाव को मिटाने में एक अहम योगदान तो देते ही हैं साथ ही साथ किसी भी मनुष्य पर किसी भी प्रकार की क्रूरता को होने से भी रोकते हैं । मनवाधिकारों की समीक्षा करने हेतु एक मानव अधिकार आयोग भी होता है जो यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति के मूलभूत अधिकारों का हनन न हो तथा अपने अधिकारों से वंचित न रहे।
भारत में मानव अधिकारों की उत्पत्ति बहुत पहले हुई थी। इसे बौद्ध धर्म, जैन धर्म के सिद्धांतों से आसानी से पहचाना जा सकता है। हिंदू धार्मिक पुस्तकों और धार्मिक ग्रंथों जैसे गीता, वेद, अर्थशत्र और धर्मशास्त्र में भी मानव अधिकारों के प्रावधान शामिल थे। अकबर और जहाँगीर जैसे मुस्लिम शासकों को उनके अधिकारों और न्याय के लिए बहुत सराहना मिली। शुरुआती ब्रिटिश युग के दौरान, लोगों को कई अधिकारों का बड़ा उल्लंघन करना पड़ा और इसके कारण भारत में आधुनिक मानवाधिकार न्यायशास्त्र का जन्म हुआ।
मानवाधिकार pdf in Hindi / मानवाधिकार की परिभाषा PDF
- ‘‘अधिकार सामाजिक जीवन की वे परिस्थितियाँ है जिसके बिना आमतौर पर कोई व्यक्ति पूर्ण आत्म-विकास की आशा नहीं कर सकता।’’ – हैराल्ड लास्की
- ‘‘कुछ विशेष कार्यो के करने की स्वतंत्रता की विवेकपूर्ण माँग को अधिकार कहा जाता है।’’ बोसांके के शब्दो में, ‘‘अधिकार वह माँग है जिसे समाज स्वीकार करता है और राज्य लागू करता है।’’ – वाइल्ड
आर.जे. विसेंट का मत है कि ‘‘मानव अधिकार वे अधिकार है जो प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के कारण प्राप्त है। इन अधिकारों का आधार मानव स्वभाव में निहित है।’’ |
ए.ए. सईद के अनुसार, ‘‘मानव अधिकारों का सम्बन्ध व्यक्ति की गरिमा से है एवं आत्म-सम्मान का भाव जो व्यक्तिगत पहचान को रेखांकित करता है तथा मानव समाज को आगे बढाता है।’’ |
डेविड सेलवाई का विचार है कि ‘‘मानव अधिकार संसार के समस्त व्यक्तियों को प्राप्त है, क्योंकि ये स्वयं में मानवीय है वे पैदा नही किये जा सकते, खरीद या संविदावादी प्रक्रियाओं से मुक्त होते है।’’ |
डी.डी. बसु का मत है कि ‘‘मानव अधिकार वे अधिकार है जिन्हें प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के मानव परिवार का सदस्य होने के कारण राज्य तथा अन्य लोक सेवक के विरूद्ध प्राप्त होने चाहिए।’’ |
प्लानों तथा ओल्टन की परिभाषा सर्वाधिक संतुलित है, ‘‘मानव अधिकार वे अधिकार है जो मनुष्य के जीवन, उसके अस्तित्व एवं व्यक्तित्व के विकास के लिए अनिवार्य है।’’ सभी लेखकों का जोर मुख्यत: तीन बातों पर है, पहला मानव स्वभाव, दूसरा मानव गरिमा तथा तीसरा समाज का अस्तित्व। |
मानव अधिकार के प्रकार
- प्राकृतिक अधिकार
- नैतिक अधिकार
- कानूनी अधिकार
- नागरिक अधिकार
- मौलिक अधिकार
आधुनिक समय में प्रत्येक सभ्य राज्य संविधान बनाते समय उसमें मूल अधिकारों का प्रावधान करते है। जनतंत्र में व्यक्ति का महत्व होता है। संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख होने से स्वतंत्रता का दायरा स्पष्ट होता है तथा राजनीतिक मतभेदों से इन्हें ऊपर उठा दिया जाता है। व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए इन अधिकारो को अपरिहार्य माना गया है।
- आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकार
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह समाज में सबके साथ मिलकर रहना चाहता है। समाज का भाग होने के कारण वह कई आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं का सदस्य भी होता है ओर उनकी गतिविधियों में भाग लेता है।
मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 PDF
मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 की धारा 2 के अनुसार ”मानव अधिकारों” का अर्थ है संविधान के अंतर्गत गांरटित अथवा अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में सम्मिलित तथा भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा व्यक्ति की गरिमा से संबंधित अधिकार। ”अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं” का अर्थ है 16 दिसम्बर 1966 को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अंगीकृत सिविल एवं राजनैतिक अधिकारों संबंधी अंतराष्ट्रीय प्रसंविदा तथा आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों संबंधी अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदा।
अधिनियम के अंतर्गत आयोग को कार्य :
आयोग निम्नलिखित सभी कार्य अथवा इनमे से कोई भी कार्य करेगा :-
1. स्वयं पहल करके अथवा किसी पीड़ित या उनकी ओर से अन्य व्यक्ति द्वारा दी गई याचिका पर, इन शिकायतों की जांच करेगा –
- मानव अधिकारों का हनन अथवा दुरूत्साहित करना
- अथवा लोक सेवक द्वारा इस प्रकार के हनन की रोकथाम में लापरवाही
2. न्यायालय के समक्ष लंबित मानव अधिकारों के हनन के किसी आरोप से संबंधित किसी कार्यवाही में उस न्यायालय की मंजूरी के साथ हस्तक्षेप करना
3. राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन किसी जेल अथवा किसी अन्य संस्थान, जहां लोगों को उपचार, सुधार अथवा संरक्षण के उद्देश्य से कैद अथवा बंद रखा जाता है, का वहां के संवासियों के जीवनयापन की दशाओं का अध्ययन करने तथा उनके संबंध में संस्तुतियाँ करने के लिए राज्य सरकार को सूचित करते हुए, दौरा करना।
4. मानव अधिकारों के संरक्षण के लिए इसके द्वारा अथवा संविधान के अंतर्गत अथवा कुछ समय के लिए लागू किसी कानून के सुरक्षोपायों की समीक्षा करना
5. उन तथ्यों की समीक्षा करना, जिसमें आतंकवादी गतिविधियां शामिल हैं जो मानव अधिकारों के उपयोग को रोकती हैं तथा उचित उपचारी उपायों की संस्तुति करना
6. मानव अधिकारों से संबंधित संधियां एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों का अध्ययन करना तथा उनके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु संस्तुतियां करना
7. मानव अधिकारों के क्षेत्र में अनुसंधान कार्य करना तथा उनको बढ़ावा देना
8. समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार शिक्षा का प्रसार करना तथा प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनार तथा अन्य उपलब्ध साधनों से इन अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षोपायों की जागरूकता को बढ़ाना
9. गैर सरकारी संगठनों एवं मानव अधिकार के क्षेत्र में कार्यरत संस्थानों के प्रयास को बढ़ावा देना
10. मानव अधिकारों के संवर्ध्दन हेतु आवश्यक समझे जाने वाले इसी प्रकार के अन्य कार्य।
जांच के बाद आयोग के कदम
जांच के बाद आयोग क्या कदम उठा सकता है ?
जांच पूरी होने पर आयोग निम्नलिखित में से कोई भी कदम उठा सकता है :-
1. जहां जांच से मानव अधिकार के हनन होने अथवा लोक सेवक द्वारा मानव अधिकारों के हनन को रोकने में लापरवाही का पता चले, वहाँ आयोग संबद्ध सरकार अथवा प्राधिकरण को अभियोजन हेतु कार्रवाई प्रारंभ करने अथवा संबद्ध व्यक्तियों के विरुद्ध, आयोग जैसा भी ठीक समझे, अन्य कार्रवाई करने की संस्तुति कर सकता है
2. उच्चतम न्यायलय अथवा संबंधित उच्च न्यायालय से इस प्रकार के निदेशों, आदेशों अथवा रिट जैसा भी वह न्यायालय आवश्यक समझे, के लिए संपर्क कर सकता है
3. पीड़ित अथवा उसके परिवार के सदस्यों के लिए, जैसा भी आयोग आवश्यक समझे, तत्काल अंतरिम राहत की स्वीकृति हेतु, संबद्ध सरकार अथवा प्राधिकारी के लिए संस्तुतियाँ कर सकता है।
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