माता कुष्मांडा की कथा | Kushmanda Mata Vrat Katha Hindi - Description
नमसकर पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप माता कुष्मांडा की कथा PDF / Kushmanda Mata Ki Vrat Katha PDF Hindi भाषा में प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते हिन्दू धर्म में देवी आदि शक्ति की विभिन्न रूपों में पूजा – अर्चना की जाती है। नवरात्रि के चतुर्थ दिवस पर माता कूष्माण्डा की आराधना की जाती है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सृष्टि के आरंभ में माता की एक मुस्कान से इस संसार का “अण्ड” स्वरूप में प्रादुर्भाव हुआ था जिसके कारण देवी माता के इस स्वरूप को माता कूष्माण्डा के नाम से जाना जाता है। एक अन्य मतानुसार माता को कुम्हाड़े (पेठा अथवा कद्दू) की बलि भेंट की जाती है जिसके कारण उनका यह नाम प्रचलित हुआ। यदि आप भी नवरात्रि के दौरान देवी माता का पूजन कर उनकी विशेष कृपा के पात्र बनना चाहते हैं तो आपको नवरात्रि उत्सव के चतुर्थ दिवस के अवसर पर पूर्ण विधि – विधान से देवी माँ का पूजन अवश्य करना चाहिए तथा यहाँ दी गयी माता कुष्मांडा की कथा का वाचन व श्रवण भी अवश्य करना चाहिए।
माता कुष्मांडा की कथा PDF | Kushmanda Mata Ki Vrat Katha Hindi PDF
नवरात्रि के चौथे दिन देवी माता के कूष्माण्डा रूप की पूजा अर्चना की जाती है। माता की मंद – मंद (हल्की) हंसी के द्वारा “अण्ड” अथार्त ब्रह्मांड उत्पन्न होने के कारण उन्हें देवी कूष्माण्डा के नाम से सुशोभित किया गया है। जब यह सृष्टि नहीं थी तथा दशों दिशाओं में अंधकार ही अंधकार व्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने दिव्य हास्य से इस ब्रह्मांड की रचना की थी।
अतः इन्हें सृष्टि की आदिस्वरूपा व आदिशक्ति कहा गया है। कूष्माण्डा देवी की आठ भुजाएं हैं, इसलिए अष्टभुजा कहलाईं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है। इस देवी का वाहन सिंह है और इन्हें कुम्हड़े की बलि प्रिय है। संस्कृति में कुम्हड़े को कूष्माण्ड कहते हैं इसलिए इस देवी को कूष्माण्डा।
इस देवी का वास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में रहने की शक्ति क्षमता केवल इन्हीं में है। इसीलिए इनके शरीर की कांति और प्रभा सूर्य की भांति ही दैदीप्यमान है। इनके ही तेज से दसों दिशाएं आलोकित हैं। ब्रह्मांड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में इन्हीं का तेज व्याप्त है। अचंचल और पवित्र मन से नवरात्रि के चौथे दिन इस देवी की पूजा-आराधना करना चाहिए। इससे भक्तों के रोगों और शोकों का नाश होता है तथा उसे आयु, यश, बल और आरोग्य प्राप्त होता है।
ये देवी अत्यल्प सेवा और भक्ति से ही प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं। सच्चे मन से पूजा करने वाले को सुगमता से परम पद प्राप्त होता है। विधि-विधान से पूजा करने पर भक्त को कम समय में ही कृपा का सूक्ष्म भाव अनुभव होने लगता है। ये देवी आधियों-व्याधियों से मुक्त करती हैं और उसे सुख-समृद्धि और उन्नति प्रदान करती हैं। अंततः इस देवी की उपासना में भक्तों को सदैव तत्पर रहना चाहिए।
कूष्माण्डा माता व्रत पूजा विधि / Kushmanda Mata Vrat Puja Vidhi in Hindi PDF
- सर्वप्रथम कलश और उसमें उपस्थित देवी-देवता की पूजा करें।
- तत्पश्चात अन्य देवी देवता तथा उनकी प्रतिमा के दोनों ओर विराजमान देवी-देवताओं का पूजन करें।
- इनकी पूजा के पश्चात देवी कूष्मांडा की पूजा करें।
- पूजा की विधि आरंभ करने से पूर्व हाथों में पुष्प लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें।
‘सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा शुभदास्तु मे।’
- माता को मालपुए अथवा कुम्हाड़े (कद्दू) से बने पेठे का भोग लगाएँ।
- अब माता की कथा सुनें।
- तत्पश्चात शप्तशती मंत्र, उपासना मंत्र, कवच और अंत में आरती करें।
- आरती करने के बाद देवी मां से क्षमा प्रार्थना करना न भूलें
- माँ कूष्माण्डा को हरे रंग का भोग अति प्रिय है।
- हरे रंग के फल जैसे मौसमी, अंगूर, सीताफल तथा हरे केले का भोग माता को अर्पित किया जाता है।
- माता को नारियल भी अवश्य भेंट करें।
- मान्यताओं के अनुसार जो व्यक्ति माता को नारियल भेंट करता है उसकी समस्त मनोकामनाएँ देवी माता की कृपा से पूर्ण हो जाती हैं।
- कूष्माण्डा देवी मंत्र:
ऐं ह्री देव्यै नम: वन्दे वाञ्छित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्विनीम्॥
कुष्मांडा माता की आरती / Kushmanda Mata Ki Aarti Lyrics in Hindi
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥
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