कोजागिरी पौर्णिमा व्रत कथा | Kojagari Lakshmi Puja Katha Hindi PDF Summary
हिन्दू धर्म में कोजागिरी पौर्णिमा का बहुत अधिक महत्व है। इस दिन देवी लक्ष्मी की पूजा – आराधना तथा व्रत आदि किया जाता है। देवी लक्ष्मी का महत्व तो आप सभी जानते ही होंगे। उनकी कृपा के बिना व्यक्ति के जीवन में किसी भी प्रकार का भौतिक सुख नहीं रह सकता। देवी लक्ष्मी धन – वैभव आदि को नियंत्रित करती हैं।
जिन लोगों के घर में दुःख – दारिद्य ने डेरा डाल रखा हो, उन्हें कोजागिरी पौर्णिमा का व्रत अवश्य करना चाहिए ताकि वह अपने जीवन को सुचारु रूप से चला सकें तथा जीवन में आने वाली आर्थिक समस्याओं से बच सकें। यदि आप भी अपने घर में इस व्रत का आयोजन कर रहें हैं तो कोजागिरी व्रत कथा का पठन – पाठन अवश्य करें।
कोजागरी व्रत कथा / Kojagari Lakshmi Puja Vrat Katha
पौराणिक कथा के अनुसार एक साहुकार को दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं, लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी और छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। व्रत अधूरा रहने के कारण छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। अपना दुख जब उसने पंडित को बताया तो उन्होंने बताया कि व्रत अधूरा रखने के कारण ऐसा होता है तुम यदि पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है।
इसके बाद उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया और इसके पुण्य से उसे संतान की प्राप्ति हुई, लेकिन वह भी कुछ दिनों बाद मर गया। उसने लड़के को एक पीढ़ा पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया और फिर बड़ी बहन को बुला कर घर ले आई और बैठने के लिए वही पीढ़ा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तेरे ही भाग्य से यह जीवित हो गया। तेरे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तब से ये दिन एक उत्सव के रुप में मनाया जाने लगा और देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।
कोजागरी पूर्णिमा पूजा विधि
इस दिन पीतल, चांदी, तांबे या सोने से बनी देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को कपड़े से ढंककर पूजा की जाती है। सुबह देवी की पूजा करने के बाद रात में चंद्रोदय के बाद फिर से की जाती है। इस दिन रात 9 बजे के बाद चांदी के बर्तन में खीर बना कर चांद के निकलते ही आसमान के नीचे रख देनी चाहिए। इसके पश्चात रात्रि में देवी के समक्ष घी के दीपक जला दें। इसके बाद देवी के मंत्र, आरती और विधिवत पूजन करना चाहिए। कुछ समय बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाकर उसमें से ही ब्राह्मणों को प्रसाद स्वरूप दान देना चाहिए। अगले दिन माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का पारण करना चाहिए।
कोजागिरी पौर्णिमा पूजा मुहूर्त
कोजागर पूजा मंगलवार, अक्टूबर 19, 2021 को
कोजागर पूजा निशिता काल – 11:41 पी एम से 12:31 ए एम, अक्टूबर 20
अवधि – 00 घण्टे 51 मिनट्स
कोजागर पूजा के दिन चन्द्रोदय – 05:20 पी एम
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 19, 2021 को 07:03 पी एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – अक्टूबर 20, 2021 को 08:26 पी एम बजे
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