कामदा एकादशी व्रत कथा | Kamada Ekadashi Vrat Katha Hindi PDF Summary
नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको कामदा एकादशी व्रत कथा PDF / Kamada Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi के लिए डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकादशी कहा जाता है। इस बार यह एकादशी 12 अप्रैल को पद रही है।कामदा एकादशी के दिन प्रात:काल स्नानादि करके घर के पूजा स्थल को साफ-स्वच्छ करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इस पोस्ट में आप कामदा एकादशी व्रत की पूरी जानकारी पढ़ सकते हैं जैसे की- कामदा एकादशी की कथा, विधि, नियम और लाभ।
कामदा एकादशी वाले दिन भगवान विष्णु का पूजन किया जाता है और विधि-विधान से भगवान का पूजन करने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस दिन व्रत रखने वालों को एकादशी कथा कहना या सुनना बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। पुराणों में इस बात का उल्लेख है कि बिना व्रत कथा कहे-सुने ये व्रत संपूर्ण नहीं माना जाता।
कामदा एकादशी व्रत कथा PDF | Kamada Ekadashi Vrat Katha PDF in Hindi
यह कथा भोगीपुर नाम के एक नगर की है, जिसके राजा थे पुण्डरीक. भोगीपुर नगर में अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व रहते थे. इसी नगर में अत्यंत वैभवशाली स्त्री पुरुष ललिता और ललित रहते थे. उन दोनों के बीच इतना स्नेह था कि वह कुछ देर के लिए भी एक दूसरे से अलग नहीं रह पाते थे।
ललित राजा के दरबार में एक दिन गंधर्वों के साथ गान करने पहुंचा. लेकिन गाते-गाते उसे ललिता की याद आ गई और उसका सुर बिगड़ गया. इस पर क्रोधित राजा पुण्डरीक ने ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया और उसी क्षण ललित विशालकाय राक्षस बन गया. उसका शरीर आठ योजन का हो गया।
उसकी पत्नी ललिता को इस बारे में मालूम हुआ तो वह बहुत दुखी हो गई और कोई रास्ता निकालने की कोशिश करने लगी. पति के पीछे-पीछे घूमती ललिता विन्ध्याचल पर्वत जा पहुंची. वहां उसे श्रृंगी ऋषि मिले. ललिता ने सारा हाल बताया और श्रृंगी ऋषि से कुछ उपाय बताने का आग्रह किया. श्रृंगी ऋषि ने ललिता को कहा कि चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है. इसका व्रत करने से मनुष्य के सब कार्य सिद्ध होते हैं. यदि तू कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को दे तो वह शीघ्र ही राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा और राजा का श्राप भी अवश्यमेव शांत हो जाएगा।
मुनि की यह बात सुनकर ललिता ने चैत्र शुक्ल एकादशी व्रत करना शुरू कर दिया. द्वादशी के दिन वह ब्राह्मणों को भोजन कराती और दान देती. एकादशी व्रत का फल अपने पति को देती हुई भगवान से इस प्रकार प्रार्थना करने लगी- हे प्रभो! मैंने जो यह व्रत किया है, इसका फल मेरे पतिदेव को प्राप्त हो जाए, जिससे वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएं.
एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ. फिर अनेक सुंदर वस्त्राभूषणों से युक्त होकर ललिता के साथ विहार करने लगा. उसके पश्चात वे दोनों विमान में बैठकर स्वर्गलोक को चले गए.वशिष्ठ मुनि कहने लगे कि हे राजन्! इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पाप नाश हो जाते हैं और राक्षस आदि की योनि भी छूट जाती है. संसार में इसके बराबर कोई और दूसरा व्रत नहीं है. इसकी कथा पढ़ने या सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
कामदा एकादशी मंत्र
ॐ नमो नारायण। श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।।
ऊं नमो नारायणाय नम:।
ऊं ह्रीं ह्रीं श्रीं श्रीं लक्ष्मी वासुदेवाय नमः।
ऊं विष्णवे नमः।
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