कालरात्रि माता की कथा | Kalratri Mata Vrat Katha & Puja Vidhi Hindi PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप कालरात्रि माता की कथा | Kalratri Mata Vrat Katha & Puja Vidhi PDF प्राप्त कर सकते हैं । माता कालरात्रि जी का पूजन नवरात्रि के सातवें दिन किया जाता है । माता कालरात्रि का पूजन जो भी सच्ची श्रद्धा व भक्ति के साथ करता है, माता उसके जीवन मेन आने वाली समस्त विपदाओं को हर लेती हैं ।
माता कालरात्रि के आशीर्वाद से कोई भी बाधा उनके भक्तों का अहित नही कर सकती । यदि आप भी माता रानी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि का विधि – विधान से पूजन करें तथा कालरात्रि माता की व्रत कथा का भी पाठ करें । कथा के पाठ के उपरांत माँ कालरात्रि की आरती भी करें ।
माँ कालरात्रि की कथा / Maa Kalratri Ki Katha or Kahani
पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज जब सभी देवताओं को पराजित कर उनके राज्य को छीन लिया, तब सभी देवता दानवों की शिकायत लेकर महादेव जी के पास गए। भगवान शिव शंकर ने अपने पास आए हुए सभी देवतागण से उनके आने का कारण पूछा। तब देवता ने रक्तबीज के किए गए अत्याचारों को त्रिलोकीनाथ से कह सुनाया।
यह सुनकर भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं। रक्तबीज को वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की हर एक बूँद जो भूमि पर गिरेगी उससे एक और रक्तबीज जन्म ले लेगा। जब मां दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थीं, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना रक्त भूमि पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे। तब देवी पार्वती ने वहां साधना की।
माता के साधना की तेज से कालरात्रि उत्पन्न हुई। तब माँ पार्वती ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया। जब माता ने उसका वध किया तो उसका सारा रक्त पी गईं और रक्त की एक बूँद भी भूमि पर गिरने नहीं दी। इसीलिये माता के इस रूप मे उनकी जीभ रक्त रंजित लाल है । इस तरह से मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी।
इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया। मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है। कालरात्रि दो शब्दों को मिला कर बना है, एक शब्द है काल जिसका अर्थ है “मृत्यु” यह दर्शाता है वह है जो अज्ञानता को नष्ट करती है। और एक शब्द है रात्रि, माता को रात के अंधेरे के गहरे रंग का प्रतीक दर्शाया है। कालरात्रि का रूप दर्शाता है कि एक करूणामयी माँ अपनी सन्तान की सुरक्षा के लिए आवश्यकता होने पर अत्यंत हिंसक और उग्र भी हो सकती है।
माँ कालरात्रि की पूजा विधि / Kalratri Mata Puja Vidhi
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- माँ की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- माँ को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को लाल रंग पसंद है।
- माँ को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
- माँ को रोली कुमकुम लगाएं।
- माँ को मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें।
- माँ कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
- माँ कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- माँ की आरती भी करें।
कालरात्रि माता आरती / Kalratri Mata Ki Aarti
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
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