कालरात्रि माता की कथा | Kalratri Mata Vrat Katha & Puja Vidhi Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप कालरात्रि माता की कथा PDF / Kalratri Mata Vrat Katha & Puja Vidhi PDF प्राप्त कर सकते हैं। हिन्दू धर्म में विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण देवी – देवताओं का वर्णन प्राप्त होता है, देवी कालरात्रि भी हिन्दू धर्म की सर्वाधिक महत्वपूर्ण देवियों में से एक हैं। देवी माता का यह स्वरूप अत्यधिक उग्र एवं तीव्र माना जाता है। माता कालरात्रि के पूजन से व्यक्ति के जीवन में पीड़ा देने वाले समस्त शत्रुओं का नाश हो जाता है। नवरात्रि के पर्व के दौरान माता के जिन नौ रूपों की पूजा – अर्चना की जाती है कालरात्रि माता भी उन्हीं में से एक हैं।
माता कालरात्रि जी का पूजन नवरात्रि के सातवें दिन किया जाता है। माता कालरात्रि का पूजन जो भी सच्ची श्रद्धा व भक्ति के साथ करता है, माता उसके जीवन मेन आने वाली समस्त विपदाओं को हर लेती हैं। माता कालरात्रि के आशीर्वाद से कोई भी बाधा उनके भक्तों का अहित नही कर सकती। यदि आप भी माता रानी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि का विधि – विधान से पूजन करें तथा कालरात्रि माता की व्रत कथा का भी पाठ करें। कथा के पाठ के उपरांत माँ कालरात्रि की आरती भी करें।
माँ कालरात्रि की कथा / Maa Kalratri Ki Katha or Kahani
पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज जब सभी देवताओं को पराजित कर उनके राज्य को छीन लिया, तब सभी देवता दानवों की शिकायत लेकर महादेव जी के पास गए। भगवान शिव शंकर ने अपने पास आए हुए सभी देवतागण से उनके आने का कारण पूछा। तब देवता ने रक्तबीज के किए गए अत्याचारों को त्रिलोकीनाथ से कह सुनाया। यह सुनकर भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं। रक्तबीज को वरदान प्राप्त था की उसके रक्त की हर एक बूँद जो भूमि पर गिरेगी उससे एक और रक्तबीज जन्म ले लेगा।
जब माँ दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थीं, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना रक्त भूमि पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे। तब देवी पार्वती ने वहां साधना की। माता के साधना की तेज से कालरात्रि उत्पन्न हुई। तब माँ पार्वती ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया। जब माता ने उसका वध किया तो उसका सारा रक्त पी गईं और रक्त की एक बूँद भी भूमि पर गिरने नहीं दी। इसीलिये माता के इस रूप मे उनकी जीभ रक्त रंजित लाल है ।
इस तरह से माँ कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी। इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया। माँ दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है। कालरात्रि दो शब्दों को मिला कर बना है, एक शब्द है काल जिसका अर्थ है “मृत्यु” यह दर्शाता है वह है जो अज्ञानता को नष्ट करती है। और एक शब्द है रात्रि, माता को रात के अंधेरे के गहरे रंग का प्रतीक दर्शाया है। कालरात्रि का रूप दर्शाता है कि एक करूणामयी माँ अपनी सन्तान की सुरक्षा के लिए आवश्यकता होने पर अत्यंत हिंसक और उग्र भी हो सकती है।
माँ कालरात्रि की पूजा विधि / Kalratri Mata Puja Vidhi
- सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ- स्वच्छ वस्त्र धारण कर लें।
- माँ की प्रतिमा को गंगाजल या शुद्ध जल से स्नान कराएं।
- माँ को लाल रंग के वस्त्र अर्पित करें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां को लाल रंग पसंद है।
- माँ को स्नान कराने के बाद पुष्प अर्पित करें।
- माँ को रोली कुमकुम लगाएं।
- माँ को मिष्ठान, पंच मेवा, पांच प्रकार के फल अर्पित करें।
- माँ कालरात्रि को शहद का भोग अवश्य लगाएं।
- माँ कालरात्रि का अधिक से अधिक ध्यान करें।
- माँ की आरती भी करें।
माँ कालरात्रि ध्यान मंत्र
करालवन्दना घोरां मुक्तकेशी चतुर्भुजाम्।
कालरात्रिम् करालिंका दिव्याम् विद्युतमाला विभूषिताम्॥
दिव्यम् लौहवज्र खड्ग वामोघोर्ध्व कराम्बुजाम्।
अभयम् वरदाम् चैव दक्षिणोध्वाघः पार्णिकाम् मम्॥
महामेघ प्रभाम् श्यामाम् तक्षा चैव गर्दभारूढ़ा।
घोरदंश कारालास्यां पीनोन्नत पयोधराम्॥
सुख पप्रसन्न वदना स्मेरान्न सरोरूहाम्।
एवम् सचियन्तयेत् कालरात्रिम् सर्वकाम् समृध्दिदाम्॥
माँ कालरात्रि स्तोत्र / Maa Kalratri Stotra
हीं कालरात्रि श्रीं कराली च क्लीं कल्याणी कलावती।
कालमाता कलिदर्पध्नी कमदीश कुपान्विता॥
कामबीजजपान्दा कमबीजस्वरूपिणी।
कुमतिघ्नी कुलीनर्तिनाशिनी कुल कामिनी॥
क्लीं ह्रीं श्रीं मन्त्र्वर्णेन कालकण्टकघातिनी।
कृपामयी कृपाधारा कृपापारा कृपागमा॥
माँ कालरात्रि कवच / Maa Kalratri Kavach
ऊँ क्लीं मे हृदयम् पातु पादौ श्रीकालरात्रि।
ललाटे सततम् पातु तुष्टग्रह निवारिणी॥
रसनाम् पातु कौमारी, भैरवी चक्षुषोर्भम।
कटौ पृष्ठे महेशानी, कर्णोशङ्करभामिनी॥
वर्जितानी तु स्थानाभि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्वाणि मे देवीसततंपातु स्तम्भिनी॥
माँ कालरात्रि प्रार्थना / Maa Kalratri Prarthna
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्त शरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोह लताकण्टकभूषणा।
वर्धन मूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयङ्करी॥
कालरात्रि माता की आरती / Kalratri Mata Ki Aarti pdf
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
माँ कालरात्रि स्तुति / Maa Kalratir Stuti
या देवी सर्वभूतेषु माँ कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
Ya Devi Sarvabhuteshu Ma Kalaratri Rupena Samsthita।
Namastasyai Namastasyai Namastasyai Namo Namah॥
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