कालरात्रि माता की आरती | Kalratri Mata Ki Aarti Hindi PDF Summary
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप कालरात्रि माता की आरती PDF / Kalratri Mata Ki Aarti PDF प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते ही होंगे नवरात्रि के सातवें दिन माँ कालरात्रि की पूजा – अर्चना की जाती है। माता कालरात्रि के स्वरूप को देवी माँ का एक उग्र स्वरूप माना जाता है । यूं तो माता रानी का यह रूप देखने में उग्र एवं विभत्स्य है
किन्तु वह अपने भक्तों के लिए सदैव कल्याणकारी एवं कृपामयी ही रहेंगी। यदि आप भी माता कालरात्रि की कृपा प्रपात करना चाहते हैं तो नवरात्रि के सातवें दिन माता का विधिवत पूजन अवश्य करें तथा कालरात्रि माता की कथा व आरती का पाठ अवश्य करें । हिन्दू धर्म ग्रन्थों में माता कालरात्रि को समस्त शत्रुओं का संहार करने वाली देवी कहा गया है।
नवरात्रि में हर दिन अलग-अलग माताओं की पूजा-अर्चना की जाती हैं। नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री माता की आराधना की जाती है तो दुसरा दिन ब्रह्मचारिणी माता की पूजा का होता है। वहीं नवरात्रि का तीसरा दिन को चंद्रघंटा माता समर्पित होता है। नवरात्रि के चौथे दिन माँ कुष्मांडा देवी आराधना की जाती है। नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता का ध्यान करते हुए उनका के साथ जाप किया जाता है।
नवरात्रि के छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना की जाती है। नवरात्रि के सातवें दिन कालरात्रि माता का विधिवत पूजन अवश्य करें तथा कालरात्रि माता की कथा व आरती भी अवश्य गायें। नवरात्रि के आठवें दिन पूर्ण विधि – विधान से महागौरी माता का पूजन करना चाहिए। सिद्धिदात्री माता जी का पूजन नवरात्रि के नवें अथवा अंतिम दिन किया जाता है।
माँ कालरात्रि की आरती / Maa Kalratri Aarti Lyrics PDF
कालरात्रि जय-जय-महाकाली।
काल के मुह से बचाने वाली॥
दुष्ट संघारक नाम तुम्हारा।
महाचंडी तेरा अवतार॥
पृथ्वी और आकाश पे सारा।
महाकाली है तेरा पसारा॥
खडग खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली॥
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा॥
सभी देवता सब नर-नारी।
गावें स्तुति सभी तुम्हारी॥
रक्तदंता और अन्नपूर्णा।
कृपा करे तो कोई भी दुःख ना॥
ना कोई चिंता रहे बीमारी।
ना कोई गम ना संकट भारी॥
उस पर कभी कष्ट ना आवें।
महाकाली माँ जिसे बचाबे॥
तू भी भक्त प्रेम से कह।
कालरात्रि माँ तेरी जय॥
माँ कालरात्रि की कथा / Kalratri Mata Katha in Hindi
- पौराणिक कथा के अनुसार रक्तबीज जब सभी देवताओं को पराजित कर उनके राज्य को छीन लिया, तब सभी देवता दानवों की शिकायत लेकर महादेव जी के पास गए। भगवान शिव शंकर ने अपने पास आए हुए सभी देवतागण से उनके आने का कारण पूछा। तब देवता ने रक्तबीज के किए गए अत्याचारों को त्रिलोकीनाथ से कह सुनाया।
- यह सुनकर भगवान शिव शंकर ने माता पार्वती से अनुरोध किया कि हे देवी तुम तुरंत उस राक्षस का संहार करके देवताओं को उनके राजभोग वापस दिलाओं। तब देवी पार्वती ने वहां साधना किया। माता के साधना की तेज से कालरात्रि उत्पन्न हुई।
- जब मां दुर्गा रक्तबीज का वध कर रहे थी, उस वक्त रक्तबीज के शरीर से जितना खून धरती पर गिरता था, उससे वैसे ही सैकड़ों दानव उत्पन्न हो जाते थे। तब मां दुर्गा ने कालरात्रि से उन राक्षसों को खा जाने का निवेदन किया।
- तब मां कालिका ने रक्तबीज के रक्त को जमीन पर गिरने से पहले ही उसे अपने मुंह में लेना शुरू कर दिया। इस तरह से मां कालिका रणभूमि में असुरों का गला काटते हुए गले में मुंड की माला पहनने लगी। इस तरह से रक्तबीज युद्ध में मारा गया। मां दुर्गे का यह स्वरूप कालरात्रि कहलाता है।
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