जीवित्पुत्रिका व्रत कथा | Jivitputrika Vrat Katha Hindi PDF Summary
नमस्कार पाठकों, प्रस्तुत लेख में हम अपने पाठकों के लिए जीवित्पुत्रिका व्रत कथा PDF / Jivitputrika Vrat Katha PDF in Hindi प्रस्तुत कर रहे हैं। जिवितपुत्रिका व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इस व्रत को जितिया, जीवित्पुत्रिका या जीमूतवाहन व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत तीन दिनों तक चलता है। इस अवसर पर मातायें संतान प्राप्ति और उसकी लंबी आयु के लिए जीवितपुत्रिका व्रत रखती हैं। इस पोस्ट में दिए गए लिंक पर क्लिक कर के आप Jivitputrika Vrat Katha in Hindi PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
हिन्दू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष आश्विन मास की अष्टमी तिथि को जितिया व्रत का प्रथम दिन अर्थात स्नान होता है। अगले दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। हमने अपने पाठकों के लिए इस लेख के अंत में जीवित्पुत्रिका व्रत कथा इन हिंदी pdf का डाउनलोड लिंक फिया है जिसके माध्यम से आप इस कथा को पढ़ सकते हैं तथा इस व्रत का पालन कर सकते हैं।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा PDF | Jivitputrika Vrat Katha PDF in Hindi
बहुत समय पहले की बात है कि गंधर्वों के एक राजकुमार हुआ करते थे जिनका नाम था जीमूतवाहन। बहुत ही पवित्र आत्मा, दयालु व हमेशा परोपकार में लगे रहने वाले जीमूतवाहन को राज पाट से बिल्कुल भी लगाव न था। लेकिन पिता कब तक संभालते। वानप्रस्थ लेने के पश्चात वे सबकुछ जीमूतवाहन को सौंपकर चलने लगे। लेकिन जीमूतवाहन ने तुरंत अपनी तमाम जिम्मेदारियां अपने भाइयों को सौंपते हुए स्वयं वन में रहकर पिता की सेवा करने का मन बना लिया। अब एक दिन वन में भ्रमण करते-करते जीमूतवाहन काफी दूर निकल आया। उसने देखा कि एक वृद्धा काफी विलाप कर रही है। जीमूतवाहन से कहा दूसरों का दुख देखा जाता था उसने सारी बात पता लगाई तो पता चला कि वह एक नागवंशी स्त्री है और पक्षीराज गरुड़ को बलि देने के लिये आज उसके इकलौते पुत्र की बारी है।
जीमूतवाहन ने उसे धीरज बंधाया और कहा कि उसके पुत्र की जगह पर वह स्वयं पक्षीराज का भोजन बनेगा। अब जिस वस्त्र में उस स्त्री का बालक लिपटा था उसमें जीमूतवाहन लिपट गया। जैसे ही समय हुआ पक्षीराज गरुड़ उसे ले उड़ा। जब उड़ते उड़ते काफी दूर आ चुके तो पक्षीराज को हैरानी हुई कि आज मेरा यह भोजन चीख चिल्ला क्यों नहीं रहा है इसे जरा भी मृत्यु का भय नहीं है। अपने ठिकाने पर पंहुचने के पश्चात उसने जीमूतवाहन का परिचय लिया। जीमूतवाहन ने सारा किस्सा कह सुनाया। पक्षीराज जीमूतवाहन की दयालुता व साहस से प्रसन्न हुए व उसे जीवन दान देते हुए भविष्य में भी बलि न लेने का वचन दिया। मान्यता है कि तभी से ही संतान की लंबी उम्र और कल्याण के ये व्रत रखा जाता है।
Jivitputrika Vrat Katha in Hindi PDF – पूजा विधि
- जिवितपुत्रिका व्रत के दिन प्रातः काल उठकर, स्नान आदि करें।
- भगवान नारायण की मूर्ति को साफ करके, उनका जलाभिषेक करके।
- धूपबत्ती प्रज्ज्वलित करें, आरती करें
- अब भोग लगाकर, हरी नारायण को नमस्कार करें।
- सप्तमी के दिन पूजा करने के बाद जल, भोजन ग्रहण कर लेंगे।
- इसके पश्चात्, अष्टमी के दिन सुबह से निर्जला व्रत धारण किया जाएगा।
- इस व्रत का समापन नवमी तिथि को पूजा के साथ कर दिया जाता है।
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा PDF
चील और सियारिन जीतिया कथा
कहानी कुछ ऐसी है कि एक नगर में किसी वीरान जगह पर पीपल का पेड़ था। इस पेड़ पर एक चील और इसी के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। एक बार कुछ महिलाओं को देखकर दोनों ने जिऊतिया व्रत किया। जिस दिन व्रत था उसी दिन नगर में एक मृत्यु हो गई। उसका शव उसी निर्जन स्थान पर लाया गया।
सियारिन ये देखकर व्रत की बात भूल गई और मांस खा लिया। चील ने पूरे मन से व्रत किया और पारण किया। व्रत के प्रभाव में दोनों का ही अगला जन्म कन्याओं अहिरावती और कपूरावती के रूप में हुआ। जहां चील स्त्री के रूप में राज्य की रानी बनी और छोटी बहन सियारिन कपूरावती उसी राजा के छोटे भाई की पत्नी बनी। चील ने सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कपूरावती के सारे बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। इस बात से जल-भुन कर एक दिन कपूरावती ने सातों बच्चों कि सिर कटवा दिए और घड़ों में बंद कर बहन के पास भिजवा दिया।
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