जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha PDF Hindi

जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha Hindi PDF Download

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जितिया व्रत कथा | Jitiya Vrat Katha Hindi - Description

नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको जितिया व्रत कथा PDF / Jitiya Vrat Katha PDF in Hindi के लिए डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। भारतीय संस्कृति अपने पर्व त्यौहारों की वजह से ही इतनी फली-फूली लगती है। यहां हर पर्व और त्यौहार का कोई ना कोई महत्व होता ही है। कई ऐसे भी पर्व हैं जो हमारी सामाजिक और पारिवारिक संरचना को मजबूती देते हैं जैसे जीवित्पुत्रिका व्रत, करवा चौथ आदि। इसमें से ही एक है जीवित्पुत्रिका व्रत यानि जीवित पुत्र के लिए रखा जाने वाला व्रत जो पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार,  और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े जोर शोर से मनाया जाता है। इस पोस्ट में दिए गए लिंक पर क्लिक कर के आप Jitiya Vrat Katha in Hindi PDF डाउनलोड कर सकते हैं।

जिवितपुत्रिका एक त्योहार (जिउतिया या जितिया) है जिसमें निर्जला उपवास पूरे दिन और रात में माताओं द्वारा अपने बच्चों की भलाई के लिए किया जाता है। इस साल यह व्रत 18 सितम्बर को मनाया जायगा। जिवितपुत्रिका व्रत पूजा का आरंभ सप्तमी से शुरू हो जाता है।

जितिया व्रत कथा PDF | Jitiya Vrat Katha PDF in Hindi

धार्मिक कथाओं के मुताबिक बताया जाता है कि एक विशाल पाकड़ के पेड़ पर एक चील रहती थी। उसे पेड़ के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। दोनों पक्की सहेलियां थीं, दोनों ने कुछ महिलाओं को देखकर जितिया व्रत करने का संकल्प लिया और भगवान श्री जीऊतवाहन की पूजा और व्रत करने का प्रण ले लिया।

लेकिन जिस दिन दोनों को व्रत रखना था, उसी दिन शहर के एक बड़े व्यापारी की मृत्यु हो गई और उसके दाह संस्कार में सियारिन को भूख लगने लगी थी। मुर्दा देखकर वह खुद को रोक न सकी और उसका व्रत टूट गया। पर चील ने संयम रखा और नियम व श्रद्धा से अगले दिन व्रत का पारण किया।

अगले जन्म में दोनों सहेलियों ने ब्राह्मण परिवार में पुत्री के रूप में जन्म लिया। उनके पिता का नाम भास्कर था। चील, बड़ी बहन बनी और सिया‍रन, छोटी बहन के रूप में जन्‍मीं। चील का नाम शीलवती रखा गया, शीलवती की शादी बुद्धिसेन के साथ हुई। जबकि सियारिन का नाम कपुरावती रखा गया और उसकी शादी उस नगर के राजा मलायकेतु से हुई।

भगवान जीऊतवाहन के आशीर्वाद से शीलवती के सात बेटे हुए। पर कपुरावती के सभी बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। कुछ समय बाद शीलवती के सातों पुत्र बड़े हो गए और वे सभी राजा के दरबार में काम करने लगे। कपुरावती के मन में उन्‍हें देख इर्ष्या की भावना आ गयी, उसने राजा से कहकर सभी बेटों के सर काट दिए।

उन्‍हें सात नए बर्तन मंगवाकर उसमें रख दिया और लाल कपड़े से ढककर शीलवती के पास भिजवा दिया। यह देख भगवान जीऊतवाहन ने मिट्टी से सातों भाइयों के सिर बनाए और सभी के सिरों को उसके धड़ से जोड़कर उन पर अमृत छिड़क दिया। इससे उनमें जान आ गई।

सातों युवक जिंदा हो गए और घर लौट आए, जो कटे सिर रानी ने भेजे थे वे फल बन गए। दूसरी ओर रानी कपुरावती, बुद्धिसेन के घर से सूचना पाने को व्याकुल थी। जब काफी देर सूचना नहीं आई तो कपुरावती स्वयं बड़ी बहन के घर गयी। वहां सबको जिंदा देखकर वह सन्न रह गयी, जब उसे होश आया तो बहन को उसने सारी बात बताई। अब उसे अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था, भगवान जीऊतवाहन की कृपा से शीलवती को पूर्व जन्म की बातें याद आ गईं। वह कपुरावती को लेकर उसी पाकड़ के पेड़ के पास गयी और उसे सारी बातें बताईं। कपुरावती बेहोश हो गई और मर गई, जब राजा को इसकी खबर मिली तो उन्‍होंने उसी जगह पर जाकर पाकड़ के पेड़ के नीचे कपुरावती का दाह-संस्कार कर दिया।

चील और सियारिन जीतिया कथा

कहानी कुछ ऐसी है कि एक नगर में किसी वीरान जगह पर पीपल का पेड़ था। इस पेड़ पर एक चील और इसी के नीचे एक सियारिन भी रहती थी। एक बार कुछ महिलाओं को देखकर दोनों ने जिऊतिया व्रत किया। जिस दिन व्रत था उसी दिन नगर में एक मृत्यु हो गई। उसका शव उसी निर्जन स्थान पर लाया गया।

सियारिन ये देखकर व्रत की बात भूल गई और मांस खा लिया। चील ने पूरे मन से व्रत किया और पारण किया। व्रत के प्रभाव में दोनों का ही अगला जन्म कन्याओं अहिरावती और कपूरावती के रूप में हुआ। जहां चील स्त्री के रूप में राज्य की रानी बनी और छोटी बहन सियारिन कपूरावती उसी राजा के छोटे भाई की पत्नी बनी। चील ने सात बच्चों को जन्म दिया, लेकिन कपूरावती के सारे बच्चे जन्म लेते ही मर जाते थे। इस बात से जल-भुन कर एक दिन कपूरावती ने सातों बच्चों कि सिर कटवा दिए और घड़ों में बंद कर बहन के पास भिजवा दिया।

Jitiya Vrat Katha in Hindi PDF – पूजा विधि

  • जिवितपुत्रिका व्रत के दिन प्रातः काल उठकर, स्नान आदि करें।
  • भगवान नारायण की मूर्ति को साफ करके, उनका जलाभिषेक करके।
  • धूपबत्ती प्रज्ज्वलित करें, आरती करें
  • अब भोग लगाकर, हरी नारायण को नमस्कार करें।
  • सप्तमी के दिन पूजा करने के बाद जल, भोजन ग्रहण कर लेंगे।
  • इसके पश्चात्, अष्टमी के दिन सुबह से निर्जला व्रत धारण किया जाएगा।
  • इस व्रत का समापन नवमी तिथि को पूजा के साथ कर दिया जाता है।

जितिया व्रत कथा PDF

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