जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 10 PDF Summary
नमस्कार पाठकों , इस लेख के माध्यम से आप जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 10 PDF प्राप्त कर सकते हैं। जयशंकर प्रसाद की प्रारंभिक पढ़ाई वाराणसी में ही संपन्न हुई, किंतु उन्होंने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन घर पर रहकर ही किया उनके प्रारंभिक शिक्षक मोहिनी लाल गुप्त थे। जिनकी प्रेरणा से उन्होंने संस्कृत में पारंगत हासिल कर ली।
जयशंकर प्रसाद का पहला विवाह विध्वंसनीदेवी के साथ 1908 में हुआ था। किंतु इनकी पत्नी को क्षय रोग हो गया और उनकी मृत्यु हो गई। और फिर उनका दूसरा विवाह 1917 में सरस्वती देवी से हुआ किंतु वह भी क्षय रोग के कारण ही जल्द ही चल बसी। अब जयशंकर प्रसाद की इच्छा विवाह करने की नहीं थी किंतु उन्हें अपनी भाभी के लिए तीसरा विवाह कमला देवी के साथ करना पड़ा और उनसे उन्हें एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिनका नाम था रतन शंकर प्रसाद।
जयशंकर प्रसाद का जीवन परिचय कक्षा 10 PDF
नाम | जयशंकर प्रसाद |
जन्म | सन 1890 ईस्वी में |
जन्म स्थान | उत्तर प्रदेश राज्य के काशी में |
पिता का नाम | श्री देवी प्रसाद |
शैक्षणिक योग्यता | अंग्रेजी, फारसी, उर्दू, हिंदी व संस्कृत का स्वाध्याय |
रुचि | साहित्य के प्रति, काव्य रचना, नाटक लेखन |
लेखन विधा | काव्य, कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध |
मृत्यु | 15 नवंबर, 1937 ईस्वी में |
साहित्य में पहचान | छायावादी काव्यधारा के प्रवर्तक |
भाषा | भावपूर्ण एवं विचारात्मक |
शैली | विचारात्मक, अनुसंधानात्मक, इतिवृत्तात्मक, भावात्मक एवं चित्रात्मक। |
साहित्य में स्थान | जयशंकर प्रसाद जी को हिंदी साहित्य में नाटक को नई दिशा देने के कारण ‘प्रसाद युग’ का निर्माणकर्ता तथा छायावाद का प्रवर्तक कहा गया है। |
- महान लेखक और कवि जयशंकर प्रसाद का जन्म – सन् 1889 ई. में हुआ तथा मृत्यु – सन् 1937 ई में हुई।बहुमुखी प्रतिभा के धनी जयशंकर प्रसाद का जन्म वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था| बचपन में ही पिता के निधन से पारिवारिक उत्तरदायित्व का बोझ इनके कधों पर आ गया।
- मात्र आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद स्वाध्याय द्वारा उन्होंने संस्कृत, पाली, हिन्दी, उर्दू व अंग्रेजी भाषा तथा साहित्य का विशद ज्ञान प्राप्त किया। जयशंकर प्रसाद छायावाद के कवि थे। यह एक प्रयोगधर्मी रचनाकार थे। 1926 ईस्वी से 1929 ईस्वी तक जयशंकर प्रसाद के कई दृष्टिकोण देखने को मिलते हैं।
- जयशंकर प्रसाद कवि,कथाकार, नाटककार,उपन्यासकार आदि रहे।इनके आने से ही हिंदी काव्य में खड़ी बोली के माधुर्य का विकास हुआ। यह आनंद वाद के समर्थक थे। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद विद्यानुरागी थे, जिन्हें लोग सुँघनी साहु कहकर बुलाते थे।
- प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा का प्रबंध पहले घर पर ही हुआ। बाद में इन्हें क्वीन्स कॉलेज में अध्ययन हेतु भेजा गया।
- अल्प आयु में ही अपनी मेधा से इन्होंने संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी और अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया था। काव्य रचना के साथ-साथ नाटक, उपन्यास एवं कहानी विधा में भी इन्होंने अपना कौशल दिखाया।
- प्रसाद जी की प्रतिभा बहुमुखी है, किन्तु साहित्य के क्षेत्र में कवि एवं नाटककार के रूप में इनकी ख्याति विशेष है। छायावादी कवियों में ये अग्रगण्य हैं। कामायनी इनका अन्यतम काव्य ग्रन्थ है, जिसकी तुलना संसार के श्रेष्ठ काव्यों से की जा सकती है।
- सत्यं शिवं सुन्दरम् का जीता जागता रूप प्रसाद के काव्य में मिलता है। मानव सौन्दर्य के साथ-साथ इन्होंने प्रकृति सौन्दर्य का सजीव एवं मौलिक वर्णन किया इन्होंने ब्रजमाषा एवं खड़ी बोली दोनों का प्रयोग किया है। इनकी भाषा संस्कृतनिष्ठ है।
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