हवन पद्धति पुस्तक Hindi - Description
दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आये हैं हवन पद्धति पुस्तक PDF / Havan Paddhati Pushtak PDF in Hindi जिसमे आपको वैदिक हवन के बारे में पूरी जानकारी मिलेगी। दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं की आज महानवमी है तो आज के दिन माता दुर्गा के भक्त अपने-अपने घरों में हवन करते हैं। ये हवन माँ दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस पुष्तक में आपको हर प्रकार के हवन की विधि व् मंत्र मिलेंगे। इस बुक के द्वारा आप अपने घर पर हर प्रकार का हवन बड़ी आसानी से कर सकते हैं वो भी पुरे विधि विधान के साथ। हवन हमारे ओर पास के सरे विकारों को नष्ट कर देता है तथा एक स्वच्छ वातावरण भी देता है। इस पोस्ट में दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप हवन पद्धति पुस्तक PDF / Vedic Havan Vidhi Book PDF बड़ी आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं।
वैदिक हिंदू धर्म में, एक होमा जिसे हवन के रूप में भी जाना जाता है, एक हिंदू पुजारी द्वारा विशेष अवसरों पर आमतौर पर एक गृहस्वामी के लिए एक अग्नि अनुष्ठान किया जाता है। गृहस्थ विभिन्न प्रकार की आग रखता है जिसमें एक खाना पकाने, अपने घर को गर्म करने, अन्य उपयोगों के साथ; इसलिए, एक यज्ञ-बलि सीधे अग्नि में की जाती है।
हवन पद्धति पुस्तक PDF | Havan Paddhati Book PDF in Hindi
पहिले पाघा मिट्टी की दो वेदी बनावे । एक हवन की और एक नवग्रह की । नवग्रह की उत्तर में और हवन की दक्षिण में। फिर उन दोनों वेदियों के चारों कोणों में चार केले के खम्ब और चार सरे खड़े करे और उनके चारों ओर आम के पत्तों की बन्दनबार बाँधे,
फिर उन दोनों बेदियों के ऊपर लाल कपड़ा (चन्दोया) ताने तथा उन वेदियों पर चून से चौक पूरे । फिर नीचे लिखे श्लोकों के प्रमाण से नवग्रह की जो वेदी है, उस पर रंग आकार सहित नवग्रह स्थापित करे
अथ नवग्रह- स्थापन विधि
मध्ये तु भास्करं विद्याच्छशिनं पूर्वदक्षिणे ।
लोहितं दक्षिणे विद्याद् बुधं पूर्वे तथोत्तरे ।१।
वेदी के बीच में सूर्य नारायण की स्थापना करे । पूर्व और दक्षिण के कोण में चन्द्रमा । दक्षिण में मंगल । पूर्व और उत्तर के कोण में बुध | 9।
उत्तरेण गुरुं विद्यात् पूर्वेणैव तु भार्गवम् ।
पश्चिमेच शनि विद्याद्राहूं दक्षिण पश्चिमे | २ |
उत्तरं में बृहस्पति, पूर्व में शुक्र, पश्चिम में शनिश्चर, दक्षिण और पश्चिम कोण में राहू |२|
षोडशकोष्ठरूपाः षोडशमातरः ईशाने घट स्थापयेत् ।
ततो घट समीपे दीपं मण्डलाद् दक्षिणे कृष्णसर्पश्च स्थापयेत् ॥
नवग्रह की वेदी से ईशान कोण में क्रम से गणेश, ओंकार, श्रीलक्ष्मी, ६४ योगिनी । वेदी से उत्तर में सोलह कोठे की गौरी आदि सोलह माताएँ बनावे ।
ईशान कोण में फूल का आकार बनावे। उसके ऊपर अन्न धरे, उस अन्न के ऊपर पानी का घड़ा भर कर धरे । उसमे गंगाजल व आम की टहनी गेरे । फिर उस पर पानी का करवा रक्खे ।
उसमें कलाबा बांधे और करने पर लाल कपड़े में लपेट कर या कलावा बांध कर नारियल धरे । उसके पास सतिये का आकार बनावे । उस पर रोली के रंगे हुए। चावल घरे ।
उन पर गणेश जी को स्थापित करे । उनके पास घी की दीवा बाले । मण्डल से दक्षिण में सर्प बनावे । यह ग्रहों के स्थापन करने की विधि है।।
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