गुरुवार को हल्दी के टोटके | Guruwar Ko Haldi Ke Upay PDF Hindi

गुरुवार को हल्दी के टोटके | Guruwar Ko Haldi Ke Upay Hindi PDF Download

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गुरुवार को हल्दी के टोटके | Guruwar Ko Haldi Ke Upay Hindi - Description

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप गुरुवार को हल्दी के टोटके PDF / Guruwar Ko Haldi Ke Upay PDF प्राप्त कर सकते हैं । हिन्दू वैदिक ज्योतिष के अनुसार गुरुवार के दिन को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है । गुरुवार के दिन का प्रतिनिधित्व देवगुरु बृहस्पति जी करते हैं । अतः यह दिन अनेक प्रकार के उपायों के लिए उपयुक्त होता है ।
यदि आपके जीवन में अनेक प्रकार की विवाह संबंधी समस्याएँ आ रही हैं अथवा विवाह होने में विलंब हो रहा है तो आपको निम्नलिखित उपाय अवश्य करने चाहिए जो हमने यहाँ पीडीएफ़ फ़ाइल में दिये हैं । गुरुदेव बृहस्पति को पीला रंग एवं पीले वस्तुएं अत्यधिक प्रिय होती हैं , इसीलिए यहाँ हमने गुरुवार को हल्दी के टोटके दिये हैं ।

गुरुवार को हल्दी के टोटके PDF | Guruwar Ko Haldi Ke Upay PDF

  • गुरुवार के दिन अगर किसी काम से आपको बाहर जाना पड़ रहा है, तो इस दिन प्रातः गणेश वंदना करने के बाद उन्हें हल्दी का तिलक लगाएं. साथ ही अपने माथे पर भी हल्दी का तिलक लगाकर घर से बाहर निकलें. ऐसा करने से आपको कार्य में सफलता मिलेगी.
  • कहते हैं कि घर में वास्तु दोष होने पर घर के कौने में हल्दी का छिड़काव करने से वास्तु दोषों से छुटकारा मिलता है.
  • अगर रात में बुरे सपने आपका पीछा नहीं छोड़ रहे हैं, तो हल्दी की गांठ पर कलवा या मोली बांधें. इसके बाद इसे अपने सिरहाने पर रखकर सोएं. आपको फर्क खुद नजर आने लगेगा.
  • अगर आप आर्थिक तंगी से परेशान रहते हैं, तो गुरुवार के दिन हल्दी और अक्षत लेकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और कृपा प्रदान करते हैं. ऐसा करने से आर्थिक संकट से छुटकारा मिलता है.
  • 5. धन की कमी दूर करने के लिए गुरुवार के दिन 5 साबुत हल्दी को किसी कपड़े में बांध लें. फिर इन्हें लॉकर, अलमारी, तिजोरी या जहां भी पैसे रखते हैं वहां रख दें. ऐसा करने से धन की कमी दूर होती है.

बृहस्पति देव की आरती PDF | Brihaspati Dev Ki Aarti PDF

जय वृहस्पति देवा,

ऊँ जय वृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,

कदली फल मेवा ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर,

तुम सबके स्वामी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल,

सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक,

कृपा करो भर्ता ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर,

जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर,

आकर द्घार खड़े ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि,

भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता,

भव बंधन हारी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक,

सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ,

संतन सुखकारी ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

जो को‌ई आरती तेरी,

प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर,

सो निश्चय पावे ॥

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

सब बोलो विष्णु भगवान की जय ।

बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय ॥

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