संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF | Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Hindi PDF Summary
हेलो दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आये हैं संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF / Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF in Hindi आपकी चतुर्थी की पूजा के लिए । गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत करने से सारे दुखो का निवारण हो जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है और गणेश की पूजा करने से हमे मन चाहा फल प्राप्त होता है। जो लोग रोजाना गणेश वंदना का जाप करते हैं भगवान उनके जीवन से उनके सारे दुखो को दूर कर देता देते है तथा उन्हें एक सुख और समृद्ध जीवन जीने का आशीर्वाद देते हैं। इस पोस्ट से आप Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha in Hindi PDF बड़ी आसानी से डाउनलोड कर सकते हैं।
हर साल माघ मास की चतुर्थी तिथि को सकट चौथ व्रत रखा जाता है। इस दिन महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र और सुखी जीवन की भगवान गणेश से प्रार्थना करती हैं। ये व्रत निर्जला रखा जाता है यानी कि इसमें जल और अन्न कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता। साल में वैसे को 12 संकष्टी चतुर्थी व्रत आते हैं लेकिन सभी में माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी का खास महत्व माना गया है।`
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संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF | Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha PDF in Hindi – पूजा विधि
- गणेश चतुर्थी की पूजा के प्रारंभ में आपको हथेली में जल, अक्षत एवं पुष्प लेकर स्वास्तिक बनाकर गणेश भगवान् एवं अन्य देवताओ को स्मरण करना होगा।
- इसके बाद पुष्प एवं अक्षत को चौकी पर समर्पित करना होगा।
- उसके पश्चात एक सुपारी में मौली लपेटकर चौकी पर स्थापित करें।
- इसके बाद गणेश भगवान् का आह्वाहन करे एवं कलस स्थापना करे।
- स्मरण रहे की कलश उत्तर-पूर्व दिशा अथवा चौकी की बाईं ओर स्थापित किया जाए।
- उसके पश्चात डीप प्रज्वलित करे।
- उसके बाद पंचोपचार के अनुसार गणेश पूजन करें। जिसकी विधि इस प्रकार है।
- सबसे पूर्व आह्वान प्रक्रिया सम्पन्न करे।
- इसके बाद स्थान ग्रहण करे।
- हथेली में जल लेकर गणेश मंत्र पढ़ते हुए गणेश भगवान् के चरणों में अर्पित करे।
- चन्द्रमा को मंत्र पढ़ते हुए 3 बार जल चढ़ाएं।
- पान के पत्ते के द्वारा पानी लेकर छींटें मारें।
- सिलेसिलाए वस्त्र, एवं कलावा चढ़ाएं. मालाएं, पगड़ी, जनेऊ, हार, आदि अर्पण करे।
- फूल, धूप, दीप, पान के पत्ते पर फल, मिठाई, मेवे आदि अर्पित करे।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत विधि
पर्व के दिन प्रातकाल सुबह उठकर स्नान करने के पूर्व भगवान् गणेश की पूजा करने के हेतु उनकी मूर्ती उत्तर दिशा में एक चौकी में स्थापित करे। इसके बाद आसान ग्रहण करके पूजन मंत्र के साथ गणेश भगवान् की पूजा करे। पूजा के पूर्व भगवान् गणेश को फूल, फल, रोली, पंचामृत, आदि अर्पण करे। दीप एवं धुप के साथ भगवान् गणेश की पूजा करे| भगवान् गणेश की मूर्ती या चित्र को मोदक या लड्डू का भोग लगाए। इसके बाद ऊं सिद्ध बुद्धि महागणपति नमः का जाप करे। शाम के समय व्रत पूजा करने के पूर्व आपको संकष्टी व्रत कथा का पाठ करना होगा। संकष्टी व्रत कथा का पाठ शुभ मूहर्त में करना शुभ माना जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन यह मूहर्त 4 बजकर 53 मिनट से शुरु होकर चन्द्रमा के अर्घ्य देने के बाद आप व्रत समाप्त कर सकते है।
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा PDF | Sankashti Ganesh Chaturthi Vrat Katha Hindi PDF
पहली कथा :-
पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने
भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ
कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया।
इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।
भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।
तब गणेश ने कहा – ‘माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।’ यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।
गणेश चतुर्थी व्रत की दूसरी कथा :-
एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।
उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की।
दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई।
इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।
तीसरी कथा :-
एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेश जी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।
विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।
इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।
होना क्या था कि इतने में गणेश जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेश जी कहने लगे कि
विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।
अब तो गणेश जी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।
तब तो नारद जी ने कहा- आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?
पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले ‘श्री गणेशाय नम:’ कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।
तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।
हे गणेश जी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।
चौथी कथा : –
श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा
माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- ‘बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?’
उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया।
यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।
बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- ‘यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।’ यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।
एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- ‘हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।’
तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।
तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।
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