श्री गणेश अष्टकम | Ganesh Ashtakam Hindi - Description
नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप श्री गणेश अष्टकम / Ganesh Ashtakam in Hindi PDF प्राप्त कर सकते हैं। श्री गणेश अष्टकम का पाठ करने से गणेश जी बहुत शीघ्र प्रसन्न होते हैं। गणेश भगवान् को बुद्धि – विद्या तथा ज्ञान का देवता माना जाता है। गणेश जी की कृपा से जीवन में आने वाले सभी विघ्नों से मुक्ति मिलती है।
गणेश अष्टकम की रचना मूल रूप से संस्कृत भाषा में की गयी है किन्तु बाद में इसका अनुवाद अन्य भाषाओँ में भी किया गया है ताकि बहरत सहित दुनियाभर में रहने वाले गणेश जी के सभी भक्त इस दिव्य गणेश अष्टकम माध्यम से अपने कष्टों तथा विघ्नो से मुख्यि पाकर विघ्नविनाशक गणपति जी की कृपा प्राप्त कर सकते हैं।
श्री गणेश अष्टक PDF | Ganesh Ashtak Lyrics PDF
चतुःषष्टिकोट्याख्यविद्याप्रदं त्वां सुराचार्यविद्याप्रदानापदानम् ।
कठाभीष्टविद्यार्पकं दन्तयुग्मं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ १॥
स्वनाथं प्रधानं महाविघ्ननाथं निजेच्छाविसृष्टाण्डवृन्देशनाथम् ।
प्रभु दक्षिणास्यस्य विद्याप्रदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ २ ॥
विभो व्यासशिष्यादिविद्याविशिष्टप्रियानेकविद्याप्रदातारमाद्यम् ।
महाशाक्तदीक्षागुरुं श्रेष्ठदं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ३ ॥
विधात्रे त्रयीमुख्यवेदांश्च योगं महाविष्णवे चागमाञ् शङ्कराय ।
दिशन्तं च सूर्याय विद्यारहस्यं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ४ ॥
महाबुद्धिपुत्राय चैकं पुराणं दिशन्तं गजास्यस्य माहात्म्ययुक्तम् ।
निजज्ञानशक्त्या समेतं पुराणं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ५ ॥
त्रयीशीर्षसारं रुचानेकमारं रमाबुद्धिदारं परं ब्रह्मपारम् ।
सुरस्तोमकायं गणौघाधिनाथं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ६ ॥
चिदानन्दरूपं मुनिध्येयरूपं गुणातीतमीशं सुरेशं गणेशम् ।
धरानन्दलोकादिवासप्रियं त्वां कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ७ ॥
अनेकप्रतारं सुरक्ताब्जहारं परं निर्गुणं विश्वसद्ब्रह्मरूपम् ।
महावाक्यसन्दोहतात्पर्यमूर्तिं कविं बुद्धिनाथं कवीनां नमामि ॥ ८ ॥
इदं ये तु कव्यष्टकं भक्तियुक्तात्रिसन्ध्यं पठन्ते गजास्यं स्मरन्तः ।
कवित्वं सुवाक्यार्थमत्यद्भुतं ते लभन्ते प्रसादाद् गणेशस्य मुक्तिम् ॥ ९ ॥
॥ इति वाल्मीकिकृतं गणेशअष्टकम समाप्तम् ॥
श्री गणेश वंदना | Shri Ganesh Vandana PDF
॥ गजाननं भूतगणादि सेवितं, कपित्थ जम्बूफलसार भक्षितम् ॥
॥ उमासुतं शोक विनाशकारणं, नमामि विघ्नेश्वर पादपङ्कजम् ॥
मैं गजानन (जिनका हाथी के समान मुख है) को नमन करता हूं, जिनकी भुत आदि गण सेवा करते है
जो कप्पीथ और जम्बू फल के सार को खाते हैं ,
देवी उमा (पार्वती) पुत्र है और जो जीवन से सभी दुखो का विनाश करते हैं,
मैं उन विघ्नेश्वर (परमेश्वर जो जीवन के सभी विध्नों को ख़तम करते है) के कमल के सामान चरणों को नमस्कार करता हु ।
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