एक मुखी हनुमान कवच पाठ | Ek Mukhi Hanuman Kavach PDF Hindi

एक मुखी हनुमान कवच पाठ | Ek Mukhi Hanuman Kavach Hindi PDF Download

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एक मुखी हनुमान कवच पाठ | Ek Mukhi Hanuman Kavach Hindi - Description

हनुमान जी को संकटमोचन के नाम से भी जाना जाता है। वह अपने भक्तों के सभी संकटों का नाश करते हैं। यदि आप हनुमान जी सरलता से को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो एक मुखी हनुमान कवच का पाठ अवश्य करें। इस कवच के विधिवत पाठ से हनुमान जी शीघ्र ही कृपा करते हैं। हनुमान जी की कृपा से व्यक्ति भयमुक्त होता है तथा विभिन्न प्रकार के संकटों से मुक्त होता है।
आप इस लेख के द्वारा एक मुखी हनुमान कवच पाठ pdf निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ वैदिक एक मुखी हनुमान कवच दिया गया हुआ है, जिसका पाठ विधि – विधान से किया जाना चाहिए तथा उच्चारण में शुद्धता भी होनी चाहिए। इसके प्रभाव से आप और आपका परिवार सुरक्षित रहता है।
हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद हनुमान चालीसा आरती भी अवश्य करनी चाहिए। उत्तर भारत की तो अधिकांश उत्तर भरतीय क्षेत्रों में हनुमान जयंती का पर्व चैत्र पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। पंचमुखी हनुमान चालीसा का पाठ करते समय पूर्ण पवित्रता का ध्यान रखना चाहिए तभी हमें बजरंगबली की विशेष कृपा मिलती है। जो भी व्यक्ति श्री हनुमान बाहुक का पाठ करता है उस पर श्री हनुमान जी की कृपा के साथ-साथ भगवान् श्री राम जी की कृपा भी बनी रहती है।भक्तजन  हनुमान जी के 108 नाम पढ़ कर उन्हें आसानी से प्रसन्न कर सकते हैं तथा उनकी दया-दृष्टि पाकर अपने जीवन को उत्तम बन सकते हैं। श्री हनुमान वंदना का नियमित पाठ करने से घर में किसी भी प्रकार की भूत-प्रेत की बाधा का निवारण किया जा सकता है। हनुमान सूक्त एक प्रभावशाली स्तोत्र है जिससे गायन से हनुमान जी बहुत ही जल्दी कृपा करते हैं।

Ek Mukhi Hanuman Kavach in Sanskrit PDF

 
श्रीराम उवाच
हनुमान् पूर्वतः पातु दक्षिणे पवनात्मजः ।
प्रतीच्यां पातु रक्षोघ्न उत्तरस्यामब्धिपारगः ॥ १॥
 
उदीच्यामूर्ध्वगः पातु केसरीप्रियनन्दनः ।
अधश्च विष्णुभक्तस्तु पातु मध्ये च पावनिः ॥ २॥
 
अवान्तरदिशः पातु सीताशोकविनाशनः ।
लङ्काविदाहकः पातु सर्वापद्भ्यो निरन्तरम् ॥ ३॥
 
सुग्रीवसचिवः पातु मस्तकं वायुनन्दनः ।
भालं पातु महावीरो भ्रुवोर्मध्ये निरन्तरम् ॥ ४॥
 
नेत्रे छायाऽपहारी च पातु नः प्लवगेश्वरः ।
कपोलकर्णमूले तु पातु श्रीरामकिङ्करः ॥ ५॥
 
नासाग्रे अञ्जनासूनुर्वक्त्रं पातु हरीश्वरः ।
वाचं रुद्रप्रियः पातु जिह्वां पिङ्गललोचनः ॥ ६॥
 
पातु दन्तान् फाल्गुनेष्टश्चिबुकं दैत्यप्राणहृत् ।
var  ओष्ठं रामप्रियः पातु चिबुकं दैत्यकोटिहृत्
पातु कण्ठं च दैत्यारिः स्कन्धौ पातु सुरार्चितः ॥ ७॥
 
भुजौ पातु महातेजाः करौ तु चरणायुधः ।
नखान्नखायुधः पातु कुक्षिं पातु कपीश्वरः ॥ ८॥
 
वक्षो मुद्रापहारी च पातु पार्श्वे भुजायुधः ।
लङ्काविभञ्जनः पातु पृष्ठदेशे निरन्तरम् ॥ ९॥
 
नाभिञ्च रामदूतस्तु कटिं पात्वनिलात्मजः ।
गुह्मं पातु महाप्राज्ञः सृक्किणी च शिवप्रियः ॥ १०॥
 
ऊरू च जानुनी पातु लङ्काप्रासादभञ्जनः ।
जङ्घे पातु महाबाहुर्गुल्फौ पातु महाबलः ॥ ११॥
 
अचलोद्धारकः पातु पादौ भास्करसन्निभः ।
पादान्ते सर्वसत्वाढ्यः पातु पादाङ्गुलीस्तथा ॥ १२॥
 
सर्वाङ्गानि महावीरः पातु रोमाणि चात्मवान् ।
हनुमत्कवचं यस्तु पठेद्विद्वान् विचाक्षणः ॥ १३॥
 
स एव पुरूषश्रेष्ठो भक्तिं मुक्तिं च विन्दति ।
त्रिकालमेककालं वा पठेन्मासत्रयं सदा ॥ १४॥
 
सर्वान् रिपून् क्षणे जित्वा स पुमान् श्रियमाप्नुयात् ।
मध्यरात्रे जले स्थित्वा सप्तवारं पठेद्यदि ॥ १५॥
 
क्षयाऽपस्मारकुष्ठादितापत्रयनिवारणम् ।
आर्किवारेऽश्वत्थमूले स्थित्वा पठतिः यः पुमान् ॥ १६॥
 
अचलां श्रियमाप्नोति सङ्ग्रामे विजयी भवेत् ॥ १७॥
 
यः करे धारयेन्नित्यं स पुमान् श्रियमाप्नुयात् ।
विवाहे दिव्यकाले च द्यूते राजकुले रणे ॥ १८॥
 
भूतप्रेतमहादुर्गे रणे सागरसम्प्लवे ।
दशवारं पठेद्रात्रौ मिताहारी जितेन्द्रियः ॥ १९॥
 
विजयं लभते लोके मानवेषु नराधिपः ।
सिंहव्याघ्रभये चाग्नौ शरशस्त्रास्त्रयातने ॥ २०॥
 
श‍ृङ्खलाबन्धने चैव काराग्रहनियन्त्रणे ।
कायस्तम्भे वह्निदाहे गात्ररोगे च दारूणे ॥ २१॥
 
शोके महारणे चैव ब्रह्मग्रहविनाशने ।
सर्वदा तु पठेन्नित्यं जयमाप्नोत्यसंशयम् ॥ २२॥
 
भूर्जे वा वसने रक्ते क्षौमे वा तालपत्रके ।
त्रिगन्धेनाथवा मस्या लिखित्वा धारयेन्नरः ॥ २३॥
 
पञ्चसप्तत्रिलौहैर्वा गोपितं कवचं शुभम् ।
गले कट्यां बाहुमूले वा कण्ठे शिरसि धारितम् ॥ २४॥
 
सर्वान् कामानवाप्नोति सत्यं श्रीरामभाषितम् ॥ २५॥
 
उल्लङ्घ्य सिन्धोः सलिलं सलीलं यः शोकवह्निं जनकात्मजायाः ।
आदाय तेनैव ददाह लङ्कां नमामि तं प्राञ्जलिराञ्जनेयम् ॥ २६॥
 
ॐ हनुमानञ्जनासूनुर्वायुपुत्रो महाबलः ।
श्रीरामेष्टः फाल्गुनसखः पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥ २७॥
 
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोकविनाशनः ।
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥ २८॥
 
द्वादशैतानि नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः ।
स्वापकाले प्रबोधे च यात्राकाले च यः पठेत् ॥ २९॥
 
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् ।
धनधान्यं भवेत्तस्य दुःखं नैव कदाचन ॥ ३०॥
 
ॐ ब्रह्माण्डपुराणान्तर्गते नारद अगस्त्य संवादे ।
श्रीरामचन्द्रकथितपञ्चमुखे एकमुखी हनुमत् कवचम् ॥
 

एक मुखी हनुमान कवच के लाभ / Ek Mukhi Hanuman Kavach Benefits

एक मुखी हनुमान कवच के पाठ से व्यक्ति को निम्नलिखित लाभ होते हैं –

  • इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति समस्त संकटों से सुरक्षित रहता है।
  • हनुमान जी को प्रसन्न करने से श्री राम जी की भी कृपा होती है।
  • यदि आपको सोते हुए नींद में डर जाते हैं, तो इसका पाठ अवश्य करें।
  • हनुमान जी की कृपा प्राप्त करने के लिए यही एक सरलतम मार्ग है।
  • यदि आपके घर में कोई नकारात्मक शक्ति है, तो इसके पाठ से वह दूर हो जाएगी।

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