विंधेश्वरी चालीसा दुर्गा चालीसा | Durga Chalisa and Vindheshwari Chalisa PDF

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विंधेश्वरी चालीसा दुर्गा चालीसा | Durga Chalisa and Vindheshwari Chalisa PDF Summary

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप विंधेश्वरी चालीसा दुर्गा चालीसा PDF / Durga Chalisa and Vindheshwari Chalisa PDF प्राप्त कर सकते हैं । विंधेश्वरी चालीसा व दुर्गा चालीसा दोनों ही देवी माँ को समर्पित अत्यधिक प्रभावशाली चालीसा हैं । यह दोनों ही चालीसा माता रानी के भिन्न स्वरूपों को समर्पित हैं। यदि आपका कोई विशेष कार्य लंबे समय से अटकता चला आया हो तो नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान यथाशक्ति विंधेश्वरी चालीसा का पाठ करना चाहिए।

नवदुर्गा के नौ दिनों तक पूर्ण विधि – विधान से इसका पाठ करने से देवी माता शीघ्र प्रसन्न होती हैं तथा अपने भक्तों का कल्याण कर उनके समस्त संकट हर लेती हैं। यदि आप माता को प्रसन्न करके शीघ्र ही उनकी कृपा प्राप्त करना करना चाहते हैं हो तो आपको नियमित रूप से चालीसा का पाठ करना चाहिए । यदि आप किसी विशेष कारण से प्रतिदिन पाठ करने में असमर्थ हैं, तो आपको कम से कम शुक्रवार के दिन श्री दुर्गा चालीसा एवं  विंधेश्वरी चालीसा का पाठ अवश्य करना चाहिए।

विंधेश्वरी चालीसा दुर्गा चालीसा PDF / Durga Chalisa and Vindheshwari Chalisa

।। श्री दुर्गा चालीसा ।।

नमो नमो दुर्गे सुख करनी।

नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥

निरंकार है ज्योति तुम्हारी।

तिहूं लोक फैली उजियारी॥

शशि ललाट मुख महाविशाला।

नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥

रूप मातु को अधिक सुहावे।

दरश करत जन अति सुख पावे॥

 तुम संसार शक्ति लै कीना।

पालन हेतु अन्न धन दीना॥

अन्नपूर्णा हुई जग पाला।

तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥

प्रलयकाल सब नाशन हारी।

तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥

शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।

ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥

रूप सरस्वती को तुम धारा।

दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।

परगट भई फाड़कर खम्बा॥

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।

हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।

श्री नारायण अंग समाहीं॥

 क्षीरसिन्धु में करत विलासा।

दयासिन्धु दीजै मन आसा॥

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।

महिमा अमित न जात बखानी॥

मातंगी अरु धूमावति माता।

भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥

श्री भैरव तारा जग तारिणी।

छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥

 केहरि वाहन सोह भवानी।

लांगुर वीर चलत अगवानी॥

कर में खप्पर खड्ग विराजै।

जाको देख काल डर भाजै॥

सोहै अस्त्र और त्रिशूला।

जाते उठत शत्रु हिय शूला॥

नगरकोट में तुम्हीं विराजत।

तिहुंलोक में डंका बाजत॥

शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।

रक्तबीज शंखन संहारे॥

महिषासुर नृप अति अभिमानी।

जेहि अघ भार मही अकुलानी॥

रूप कराल कालिका धारा।

सेन सहित तुम तिहि संहारा॥

परी गाढ़ संतन पर जब जब।

भई सहाय मातु तुम तब तब॥

 अमरपुरी अरु बासव लोका।

तब महिमा सब रहें अशोका॥

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।

तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥

प्रेम भक्ति से जो यश गावें।

दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।

जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥

 जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।

योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥

शंकर आचारज तप कीनो।

काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।

काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥

शक्ति रूप का मरम न पायो।

शक्ति गई तब मन पछितायो॥

शरणागत हुई कीर्ति बखानी।

जय जय जय जगदम्ब भवानी॥

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।

दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥

मोको मातु कष्ट अति घेरो।

तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥

आशा तृष्णा निपट सतावें।

रिपू मुरख मौही डरपावे॥

 शत्रु नाश कीजै महारानी।

सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥

करो कृपा हे मातु दयाला।

ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।

तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।

सब सुख भोग परमपद पावै॥

देवीदास शरण निज जानी।

करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥

॥ इति श्री दुर्गा चालीसा सम्पूर्ण ॥

श्री विन्धेश्वरी चालीसा PDF / Shri Vindheshwari Chalisa PDF

||दोहा||

नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब।

सन्तजनों के काज में करती नहीं विलम्ब।

||चौपाई ||

जय जय विन्ध्याचल रानी,

आदि शक्ति जग विदित भवानी।

सिंहवाहिनी जय जग माता,

जय जय त्रिभुवन सुखदाता।

कष्ट निवारिणी जय जग देवी,

जय जय असुरासुर सेवी।

महिमा अमित अपार तुम्हारी,

शेष सहस्र मुख वर्णत हारी।

दीनन के दुख हरत भवानी,

नहिं देख्यो तुम सम कोई दानी।

सब कर मनसा पुरवत माता,

महिमा अमित जग विख्याता।

जो जन ध्यान तुम्हारो लावे,

सो तुरतहिं वांछित फल पावै।

तू ही वैष्णवी तू ही रुद्राणी,

तू ही शारदा अरु ब्रह्माणी।

रमा राधिका श्यामा काली,

तू ही मातु सन्तन प्रतिपाली।

उमा माधवी चण्डी ज्वाला,

बेगि मोहि पर होहु दयाला।

तू ही हिंगलाज महारानी,

तू ही शीतला अरु विज्ञानी।

दुर्गा दुर्ग विनाशिनी माता,

तू ही लक्ष्मी जग सुख दाता।

तू ही जाह्नवी अरु उत्राणी,

हेमावती अम्बे निरवाणी।

अष्टभुजी वाराहिनी देवी,

करत विष्णु शिव जाकर सेवा।

चौसठ देवी कल्यानी,

गौरी मंगला सब गुण खानी।

पाटन मुम्बा दन्त कुमारी,

भद्रकाली सुन विनय हमारी।

वज्र धारिणी शोक नाशिनी,

आयु रक्षिणी विन्ध्यवासिनी।

जया और विजया बैताली,

मातु संकटी अरु विकराली।

नाम अनन्त तुम्हार भवानी,

बरनै किमि मानुष अज्ञानी।

जापर कृपा मातु तव होई,

तो वह करै चहै मन जोई।

कृपा करहुं मोपर महारानी,

सिद्ध करिए अब यह मम बानी।

जो नर धरै मात कर ध्याना,

ताकर सदा होय कल्याना।

विपति ताहि सपनेहु नहिं आवै,

जो देवी का जाप करावै।

जो नर कहं ऋण होय अपारा,

सो नर पाठ करै शतबारा।

निश्चय ऋण मोचन होइ जाई,

जो नर पाठ करै मन लाई।

अस्तुति जो नर पढ़ै पढ़ावै,

या जग में सो अति सुख पावै।

जाको व्याधि सतावे भाई,

जाप करत सब दूर पराई।

जो नर अति बन्दी महं होई,

बार हजार पाठ कर सोई।

निश्चय बन्दी ते छुटि जाई,

सत्य वचन मम मानहुं भाई।

जा पर जो कछु संकट होई,

निश्चय देविहिं सुमिरै सोई।

जा कहं पुत्र होय नहिं भाई,

सो नर या विधि करे उपाई।

पांच वर्ष सो पाठ करावै,

नौरातन में विप्र जिमावै।

निश्चय होहिं प्रसन्न भवानी,

पुत्र देहिं ताकहं गुण खानी।

ध्वजा नारियल आनि चढ़ावै,

विधि समेत पूजन करवावै।

नित्य प्रति पाठ करै मन लाई,

प्रेम सहित नहिं आन उपाई।

यह श्री विन्ध्याचल चालीसा,

रंक पढ़त होवे अवनीसा।

यह जनि अचरज मानहुं भाई,

कृपा दृष्टि तापर होइ जाई।

जय जय जय जग मातु भवानी,

कृपा करहुं मोहिं पर जन जानी।

श्री दुर्गा आरती PDF / Shri Durga Aarti Lyrics PDF

जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी।

तुमको निशिदिन ध्यावत,हरि ब्रह्मा शिवरी॥

 जय अम्बे गौरी

माँग सिन्दूर विराजत,टीको मृगमद को।

 उज्जवल से दो‌उ नैना,चन्द्रवदन नीको॥

जय अम्बे गौरी

कनक समान कलेवर,रक्ताम्बर राजै।

 रक्तपुष्प गल माला,कण्ठन पर साजै॥

 जय अम्बे गौरी

केहरि वाहन राजत,खड्ग खप्परधारी।

 सुर-नर-मुनि-जन सेवत,तिनके दुखहारी॥

 जय अम्बे गौरी

कानन कुण्डल शोभित,नासाग्रे मोती।

कोटिक चन्द्र दिवाकर,सम राजत ज्योति॥

 जय अम्बे गौरी

शुम्भ-निशुम्भ बिदारे,महिषासुर घाती।

 धूम्र विलोचन नैना,निशिदिन मदमाती॥

जय अम्बे गौरी

चण्ड-मुण्ड संहारे,शोणित बीज हरे।

मधु-कैटभ दो‌उ मारे,सुर भयहीन करे॥

जय अम्बे गौरी

ब्रहमाणी रुद्राणीतुम कमला रानी।

 आगम-निगम-बखानी,तुम शिव पटरानी॥

जय अम्बे गौरी

चौंसठ योगिनी मंगल गावत,नृत्य करत भैरूँ।

बाजत ताल मृदंगा,अरु बाजत डमरु॥

जय अम्बे गौरी

तुम ही जग की माता,तुम ही हो भरता।

भक्‍तन की दु:ख हरता,सुख सम्पत्ति करता॥

जय अम्बे गौरी

भुजा चार अति शोभित,वर-मुद्रा धारी।

 मनवान्छित फल पावत,सेवत नर-नारी॥

जय अम्बे गौरी

कन्चन थाल विराजत,अगर कपूर बाती।

 श्रीमालकेतु में राजत,कोटि रतन ज्योति॥

 जय अम्बे गौरी

श्री अम्बेजी की आरती,जो को‌ई नर गावै।

 कहत शिवानन्द स्वामी,सुख सम्पत्ति पावै॥

 जय अम्बे गौरी

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