दशरथ कृत शनि स्तोत्र | Dashrath Krit Shani Stotra Sanskrit PDF Summary
नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको दशरथ कृत शनि स्तोत्र संस्कृत PDF | Dashrath Krit Shani Stotra PDF in Sanskrit के लिए डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। दशरथ कृत शनि स्तोत्र को “दशरथ स्तुति शनि देव” के नाम से भी जाना जाता है। यह दशरथ उवाच शनि देव ( Dashrath Uvacha Shani Stotra) स्तुति है जिसकी रचना भगवान श्री राम के पिता श्री राजा दशरथ जी ने की थी। इस दिव्य स्तोत्र के पाठ से शनि देव का क्रोध शान्त होता है तथा कुण्डली में शनि सम्बन्धित समस्याओं का समाधान होता है। यह राजा दशरथ द्वारा शनि देव की स्तुति है। इस स्तोत्र में राजा दशरथ जी शनिदेव को उनके भिन्न-भिन्न पवित्र नामों से पुकारते हैं तथा उनकी महिमा का बखान करते हैं। यदि आपके ऊपर शनिदेव की कुदृष्टि चल रही है और आप अपने जीवन में अनेक प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं तो आपको भी दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
भक्तजनों को हर शनिवार श्री शनि चालीसा का गायन करना चाहिए और शनि आरती भी करनी चाहिए। जो भी शनि स्तुति करते हैं उन पर शनिदेव की कृपा हमेशा बनी रहती है। आप शनि अष्टक तथा शनि कवच स्तोत्र का पाठ कर के अपने जीवन में शनि की कृपा का अनुभव कर सकते हैं शनिदेव मंत्र बोलते समय हमें शब्दों के उच्चारण का बहुत ध्यान रखना चाहिए।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र PDF | Dashrath Krit Shani Stotra PDF in Sanskrit
॥ अथ श्री शनैश्चरस्तोत्रम् ॥
श्रीगणेशाय नमः ॥
अस्य श्रीशनैश्चरस्तोत्रस्य । दशरथ ऋषिः ।
शनैश्चरो देवता । त्रिष्टुप् छन्दः ॥
शनैश्चरप्रीत्यर्थ जपे विनियोगः ।
दशरथ उवाच ॥
कोणोऽन्तको रौद्रयमोऽथ बभ्रुः कृष्णः शनिः पिंगलमन्दसौरिः ।
नित्यं स्मृतो यो हरते च पीडां तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ १॥
सुरासुराः किंपुरुषोरगेन्द्रा गन्धर्वविद्याधरपन्नगाश्च ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ २॥
नरा नरेन्द्राः पशवो मृगेन्द्रा वन्याश्च ये कीटपतंगभृङ्गाः ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ३॥
देशाश्च दुर्गाणि वनानि यत्र सेनानिवेशाः पुरपत्तनानि ।
पीड्यन्ति सर्वे विषमस्थितेन तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ४॥
तिलैर्यवैर्माषगुडान्नदानैर्लोहेन नीलाम्बरदानतो वा ।
प्रीणाति मन्त्रैर्निजवासरे च तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ५॥
प्रयागकूले यमुनातटे च सरस्वतीपुण्यजले गुहायाम् ।
यो योगिनां ध्यानगतोऽपि सूक्ष्मस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ६॥
अन्यप्रदेशात्स्वगृहं प्रविष्टस्तदीयवारे स नरः सुखी स्यात् ।
गृहाद् गतो यो न पुनः प्रयाति तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ७॥
स्रष्टा स्वयंभूर्भुवनत्रयस्य त्राता हरीशो हरते पिनाकी ।
एकस्त्रिधा ऋग्यजुःसाममूर्तिस्तस्मै नमः श्रीरविनन्दनाय ॥ ८॥
शन्यष्टकं यः प्रयतः प्रभाते नित्यं सुपुत्रैः पशुबान्धवैश्च ।
पठेत्तु सौख्यं भुवि भोगयुक्तः प्राप्नोति निर्वाणपदं तदन्ते ॥ ९॥
कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौद्रोऽन्तको यमः ।
सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलादेन संस्तुतः ॥ १०॥
एतानि दश नामानि प्रातरुत्थाय यः पठेत् ।
शनैश्चरकृता पीडा न कदाचिद्भविष्यति ॥ ११॥
॥ इति श्रीब्रह्माण्डपुराणे श्रीशनैश्चरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
दशरथ कृत शनि स्तोत्र के लाभ व महत्व | Dashrath Krit Shani Stotra Benefits & Significance
- दशरथ उवाच शनि देव स्तुति का पाठ करने से शनि देव का क्रोध शान्त होता है।
- शनि की साढ़ेसाती व ढैया के कारण होने वाली समस्याओं के निदान हेतु आपको इस दिव्य स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए।
- यदि कोई पुराना रोग आपको बहुत लम्बे समय से पीड़ित कर रहा है तो निश्चित ही आपको इस स्तोत्र का पाठ करने से उस रोग से मुक्ति मिलेगी।
- यदि आपके ऊपर शनि देव की कुदृष्टि है तो आप भी प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ सकते हैं।
- किसी आवश्यक यात्रा पर जाने से पहले पूर्ण विधि-विधान से दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करने से यात्रा सफल व फलदायक सिद्ध होती है।
- दशरथ वास शनिदेव स्तुति के प्रभाव से शत्रुओं का सर्वनाश होता है।
- दशरथ कृत शनि स्तोत्र अत्यधिक प्रभावशाली है तथा इसके नियमित पाठ से व्यक्ति के घर में धन-धान्य की कमी नहीं रहती।
- मकर व कुम्भ राशि के जातकों को इस स्तोत्र का पाठ करने से जीवन में समस्त प्रकार के सुखों को प्राप्त कर सकते हैं।
दशरथ कृत शनि स्तोत्र पाठ विधि संस्कृत | Dashrath Krit Shani Stotra Path Vidhi in Sanskrit
- प्रतिदिन दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना अत्यधिक लाभकारी है किन्तु यदि आप प्रतिदिन यह पाठ करने में असमर्थ हैं तो प्रत्येक शनिवार को इसका पाठ करने से आप शनि देव की विशेष कृपा व आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
- सर्वप्रथम स्नान आदि दैनिक कार्य समाप्त करके एक आसन पर पद्मासन में बैठ जाएँ।
- अब एक लकड़ी की चौकी पर काला कपड़ा बिछा कर उस पर शनि देव की एक प्रतिमा अथवा छायाचित्र को स्थापित करें।
- तदोपरान्त मानसिक ध्यान करते हुए शनि देव का आवाहन करें।
- अब शनिदेव को आसन ग्रहण करवाएं।
- आसन ग्रहण करवाने के पश्चात सरसों के तेल का एक चौमुखी (चारमुखी) दीपक शनिदेव के समक्ष प्रज्जवलित करें।
- तत्पश्चात दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पूर्ण भक्ति-भाव से पाठ करें।
- पाठ सम्पूर्ण होने के उपरान्त शनि बीज मन्त्र “ॐ प्राँ प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः” का यथाशक्ति जप करें।
- अब शुद्ध सरसों के तेल के दीपक से शनिदेव की आरती करें तथा अपने व परिवार की कुशलता हेतु कामना करें।
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