भीड़ में खोया आदमी | Bheed Me Khoya Aadmi Chapter PDF Hindi

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भीड़ में खोया आदमी | Bheed Me Khoya Aadmi Chapter Hindi - Description

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप भीड़ में खोया आदमी PDF / Bheed Me Khoya Aadmi Chapter PDF प्राप्त कर सकते हैं। भीड़ में खोया आदमी एक अत्यधिक प्रसिद्ध निबंध है जिसकी रचना श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी ने की है। श्री लीलाधर शर्मा पर्वतीय जी हिन्दी साहित्य जगत के एक जाने – माने लेखक, निबंधकर तथा रचनाकार थे।
भीड़ में खोया आदमी निबंध का विषय बढ़ती जनसंख्या है। जैसा कि आप जानते हैं बढ़ती जनसंख्या आज न केवल किसी एक देश अपितु सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व के लिए के सबसे बड़ा संकट बन चुकी है। अतः लेखक ने इस निबंध के माध्यम से इस सामाजिक संकट की ओर सबका ध्यान आकर्षित किया है।

भीड़ में खोया आदमी Story PDF / Bheed Me Khoya Aadmi PDF

  • लेखक का प्रमुख जनसंख्या वृद्धि के दुष्रिणामों पर प्रकाश डालना है । लेखक ने इस निबन्ध में यह समझने का प्रयास भी किया है कि जब जनसंख्या वृद्धि होती है तो उससे जुड़े समस्याएं जैसे – पर्यावरण प्रदूषण, खाद्यान्न की कमी, बेरोजगारी, आवास समस्या, शिक्षा सुविधाएं में कमी आदि हमारे जीवन को भी प्रभवित करती हैं ।
  • एक ओर जहां लेखक का उद्देश्य इन समस्याएं की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करना है तो वहीं दूसरी ओर वह जन – सामान्य में राष्ट्रीय विषयों अथवा समस्याओं के प्रति जागरूकता पैदा करना चाहता है । लेखक ने अपने मित्र का उदाहरण देते हुए हमें यह समझने का प्रयास भी किया है कि यदि समय रहते हम सजग नहीं हुए तो देश में जनसंख्या की स्तिथि बद से बदतर हो जाएगी और देश की प्रगति में बाधक सिद्घ होगी ।
  • इसके अतिरिक्त लेखक इस निबन्ध के द्वारा हमें यह भी बताना चाहता है कि बीमारी, कुपोषण, गंदगी , बेरोजगारी , गंदे और सिकीर्ण मकानों के दूषित वातावरण जैसी अनेक समस्याएं से बचाव का एक मात्र उपाय है – सीमित परिवार । समय रहते यदि हम न संभाले तो हम भी भीड़ का एक हिस्सा बनकर ही रह जाएंगे ।

भीड़ में खोया आदमी कहानी के मुख्य बिंदु

  • लेखक के एक मित्र बाबू श्यामलाकांत सीधे-सादे, परिश्रमी, ईमानदार किंतु जिंदगी में बड़े लापरवाह हैं।
  • उम्र में लेखक से छोटे हैं, परंतु अपने घर में बच्चों की फौज खड़ी कर ली है।
  • पिछली गर्मियों में लेखक को उनकी लड़की के विवाह में सम्मिलित होने के लिए हरिद्वार जाना पड़ा। गाड़ियों में अत्यधिक भीड़ के कारण उन्हें बिना आरक्षण के ही जाना पड़ा।
  • लक्सर में गाड़ी बदलते वक्त लेखक ने देखा कि पूरी ट्रेन की छत यात्रियों से पटी पड़ी है। वह सोचता है कि अपने प्राणों को संकट में डालकर लोग इस प्रकार यात्रा करने के लिए क्यों मजबूर हैं?
  • श्यामलाकांत जी के बड़े लड़के दीनानाथ को पढ़ाई पूरी किए दो वर्ष हो गए हैं, परंतु वह अभी भी नौकरी की तलाश में भटक रहा है। हजारों व्यक्ति पहले से ही नौकरी के लिए लाइन में लगे हैं।
  • मित्र के छोटे-से मकान में भरे हुए सामान और बच्चों की भीड़ देखकर लेखक का दम घुटने लगता है। दो वर्ष तक भटकने के बाद उन्हें सिर छिपाने के लिए यह छत मिली थी।
  • शहर पहले की तुलना में कई गुना फैल चुके हैं। नई कॉलोनियाँ बन गई हैं, परंतु फिर भी लोग मकानों के लिए भटक रहे हैं। जनसंख्या बढ़ रही है परंतु मकान और खाद्यान्न कम हो रहे हैं।
  • तभी श्यामला जी की पत्नी जलपान लेकर आई। उनके पीछे उनकी तीन छोटी लड़कियाँ और पल्ला पकड़े दो छोटे लड़के थे।
  • उनकी दुर्बल काया और पीले चेहरे को देखकर लेखक ने उनसे पूछा कि क्या डॉक्टर को दिखाकर वे अपना इलाज करवा रही हैं?
  • उन्होंने बताया कि वे डॉक्टर को दिखाने गई थी, परंतु आजकल अस्पतालों में इतनी भीड़ होती है कि डॉक्टर भी मरीजों को ठीक से देख ही नहीं पाते।
  • मित्र की पत्नी बोलीं कि उनकी तबीयत ठीक न रहने के कारण वे विवाह के कपड़े दर्जी से सिलवाना चाहती थी।
  • हर दर्जी ने पहले से सिलने आए कपड़ों का ढेर दिखाकर अपनी मजबूरी जाहिर कर दी। दुकानें तो पहले से कहीं अधिक खुल गई हैं, परंतु ग्राहकों की बढ़ती भीड़ के कारण वे अब भी कम पड़ रही हैं।
  • तभी मित्र का दूसरा बेटा हारा-थका अपनी माँ से चाय का एक कप बनाने के लिए कहता है क्योंकि उसका सारा दिन राशन की दुकान पर लग गया, पर फिर भी पूरा सामान नहीं मिला।
  • लेखक सोच में पड़ जाता है कि सुख-सुविधाओं का विस्तार होने के बावजूद लोगों की ज़रूरतें पूरी क्यों नहीं हो पा रही हैं ? जहाँ देखो भीड़ ही भीड़ है।
  • घर में बच्चों के पालन-पोषण, रहन-सहन और शिक्षा की यदि पूरी व्यवस्था न हो, तो बच्चों की यह भीड़ में दुखदायी बन जाती है।
  • बीमारी कुपोषण से, गंदे और संकीर्ण मकानों के दूषित वातावरण से होती है।
  • यदि सीमित परिवार हो, स्वच्छ जलवायु हो और खाने के लिए भरपूर भोजन सामग्री हो, तो बीमारी से बचा जा सकता है।
  • बढ़ती जनसंख्या के कारण अनुशासन नहीं रहता, दुर्घटनाएँ बढ़ती हैं, समय, शक्ति और धन व्यय करके भी व्यक्ति के कार्य सिद्ध नहीं हो पाते। वह स्वयं भी भीड़ में खो जाता है।

भीड़ में खोया आदमी का शीर्षक की सार्थकता​:

  • भीड़ में खोया आदमी निबंध लीलाधर शर्मा पर्वतीय द्वारा लिखी गया है ।
  • निबंध में लेखक ने बढ़ती हुई जनसंख्या के बारे में बताया है ।
  • निबंध में लेखक ने देश में बढ़ती हुई जनसंख्या से विभिन्न साधनों के सिमित होने के बारे में बताया है , जैसे घर , स्टेशन , अस्पताल , रोज़गार कार्यालय शासन आदि के सिमित उदाहरण देते हुए बताया है ।
  • बढ़ती हुई भीड़ में आदमी का अपना अस्तित्व खोता जा रहा है ।
  • बढ़ती हुई जनसंख्या से बहुत सारी समस्याएँ पैदा हो रही है , रोजगार कम हो रहा है , लोगों के रहने तक के लिए जगह नहीं है , भोजन की कमी आ रही है , स्वास्थ्य में कमी , अस्पतालों की सुविधाओं में कमी ।
  • धन का अभाव हो रहा है ।
  • लेखक ने इस प्रकार बढ़ती हुई जनसंख्या होने वाली समस्याओं के बारे में बताया गया है ।

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