भाद्रपद (भादो) पूर्णिमा कथा | Bhadrapada Purnima Vrat Katha PDF in Hindi

भाद्रपद (भादो) पूर्णिमा कथा | Bhadrapada Purnima Vrat Katha Hindi PDF Download

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भाद्रपद (भादो) पूर्णिमा कथा | Bhadrapada Purnima Vrat Katha Hindi PDF Summary

नमस्कार पाठकों, इस लेख के माध्यम से आप भाद्रपद (भादो) पूर्णिमा कथा PDF / Bhadrapada Purnima Vrat Katha Hindi PDF प्राप्त कर सकते हैं। वैदिक ज्योतिष में पूर्णिमा तिथि को अत्यधिक विशेष माना जाता है। प्रत्येक पूर्णिमा तिथि का अपना एक विशेष स्थान है किन्तु इस लेख में हम आपको भाद्रपद पूर्णिमा की कथा के संदर्भ में बताएँगे।
यदि किसी विशेष कार्य की पूर्ति हेतु आप लंबे समय से कार्यरत हैं तो आपको पूर्णिमा तिथि पर इस व्रत का पालन अवश्य करना चाहिए। यदि आप इस व्रत का पूर्ण विधि – विधान से मन में श्रद्धा रखते हुये पालन करते हैं तो आपका प्रत्येक कार्य सिद्ध होगा। इस अवसर पर श्री सत्यनारायण भगवान जी की कथा का भी विधान हैं।

भाद्रपद (भादो) पूर्णिमा कथा PDF / Bhadrapada Purnima Vrat Katha PDF in Hindi

पौराणिक कथाओं के मुताबिक द्वापर युग में एक बार यशोदा मां ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह उन्हें एक ऐसा व्रत बताएं जिसको करने से मृत्यु लोक में स्त्रियों को विधवा होने का भय ना रहे। भगवान श्रीकृष्ण ने यशोदा मां को बताया कि स्त्रियों को 32 पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए। यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति मनुष्यों की भक्ति बढ़ाने वाला है। योशादा मां ने श्रीकृष्ण से पूछा कि क्या इस व्रत को मृत्युलोक में किसी ने किया था?
इस पर भगवान ने बताया कि कार्तिका नाम की नगरी थी, वहां चंद्रहास नामक एक राजा राज करता है। उसी नगरी में धनेश्वर नाम के ब्राम्हण की पत्नी रूपवती थी। दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते थे और उस नगरी में बहुत प्रेम से रहते थे। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी, लेकिन संतान ना होने के कारण वह अक्सर दुखी रहा करते थे। एक दिन एक योगी उस नगरी में आया, वह नगर के सभी घरों से भिक्षा लेता था। लेकिन रूपवती के घर से भिक्षा नहीं लेता था।
एक दिन दुखी होकर धनेश्वर, योगी से भिक्षा ना लेने की वजह पूछता है। इस पर योगी ने कहा कि निसंतान के घर की भीख पतिथों के अन्न के समान होती है और जो पतिथो का अन्न ग्रहण करता है वह भी पतिथ हो जाता है। इसलिए पतिथ हो जाने के भय से उनके घर की भिक्षा नहीं लेता है। इसे सुन धनेश्वर दुखी हो गए और उन्होंने योगी से पुत्र प्राप्ति का उपाय पूछा। इस पर योगी ने मां चंडी की उपासना करने की सलाह दी। धनेश्वर देवी चंडी की उपासना करने के लिए वन में चला गया, मां चंडी ने धनेश्वर की भक्ति से प्रसन्न होकर 16वें दिन दर्शन दिया।
मां चंडी ने कहा कि तुम्हारा पुत्र होगा, लेकिन वह केवल 16 वर्षों तक ही जीवित रहेगा। यदि वह स्त्री और पुरुष 32 पूर्णिमा का व्रत करेंगे तो वह दीर्घायु हो जाएगा। मां चंडी ने एक आम के वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर उसे पत्नी को खिलाने को कहा। मां चंडी ने कहा कि तुम्हारी पत्नी स्नान कर शंकर भगवान का ध्यान कर फल को खा ले, तो भगवान शिव की कृपा से गर्भवती हो जाएगी। इस उपाय को करने के बाद धनेश्वर को पुत्र की प्राप्ति हुई तथा 32 पूर्णिमा का व्रत करने से पुत्र को दीर्घायु की प्राप्ति हुई।
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