बालमणि अम्मा कविताएं | Balamani Amma Poems Hindi - Description
नमस्कार मित्रों, इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको बालमणि अम्मा कविताएं PDF / Balamani Amma Poems PDF in Hindi के लिए डाउनलोड लिंक दे रहे हैं। बालामणि अम्मा एक भारतीय कवयित्री थी जो मलयालम में कविता लिखने के लिए जानी जाती थी। वह एक प्रसिद्द लेखिका भी थीं और उन्हें मातृत्व की कवयित्री के रूप में जाना जाता था। अम्मा मुथस्सी और मज़ुविंते कथा उनकी कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ थीं। वह पद्म भूषण सरस्वती सम्मान साहित्य अकादमी पुरस्कार और एज़ुथाचन पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों और सम्मानों की प्राप्तकर्ता थीं। इस पोस्ट में दिए गए लिंक पर क्लिक कर के आप Balamani Amma Poems in HIndi PDF डाउनलोड कर सकते हैं।
बालमनी अम्मा का पुरा नाम नालापत बालमनी अम्मा था यह मल्यालम भाषा मे साहित्य लेखन करने वाली एक मशहुर भारतीय कवयित्री थी। बालमनी अम्मा का जनम मद्रास के पुन्नयुरकुलम मालाबार जि मद्रास मे 19 जूलै 1909 मे हुआ था। जब बालमनी अम्मा बहुत छोटी थी तभी से उन्हे कविता करने का शौक चढ गया था उनकी प्रथम कविता कुप्पुकाई 1930 के दौरान प्रकाशित की गई थी।
बालमणि अम्मा कविताएं PDF | Balamani Amma Poems PDF in Hindi
“बतलाओ माँ
मुझे बतलाओ
कहाँ से, आ पहुँची यह छोटी-सी बच्ची?”
अपनी अनुजाता को
परसते-सहलाते हुए
मेरा पुत्र पूछ रहा था
मुझसे;
यह पुराना सवाल
जिसे हज़ारों लोगों ने
पहले भी बार-बार पूछा है।
प्रश्न जब उन पल्लव-अधरों से फूट पड़ा
तो उससे नवीन मकरन्द की कणिकाएँ चू पड़ीं;
आह, जिज्ञासा
जब पहली बार आत्मा से फूटती है
तब कितनी आस्वाद्य बन जाती है
तेरी मधुरिमा!
कहाँ से? कहाँ से?
मेरा अन्तःकरण भी
रटने लगा यह आदिम मन्त्र।
समस्त वस्तुओं में
मैं उसी की प्रतिध्वनि सुनने लगी
अपने अन्तरंग के कानों से;
हे प्रत्युत्तरहीण महाप्रश्न!
बुद्धिवादी मनुष्य की
उद्धत आत्मा में
जिसने तुझे उत्कीर्ण कर दिया है
उस दिव्य कल्पना की जय हो!
अथवा
तुम्हीं हो
वह स्वर्णिम कीर्ति-पताका
जो जता रही है सृष्टि में मानव की महत्ता।
ध्वनित हो रहे हो
तुम
समस्त चराचरों के भीतर
शायद,
आत्मशोध की प्रेरणा देने वाले
तुम्हारे आमंत्रण को सुनकर
गाएँ देख रही हैं
अपनी परछाईं को
झुककर।
फैली हुई फुनगियों में
अपनी चोंचों से
अपने-आप को टटोल रही हैं, चिड़ियाँ।
खोज रहा है अश्वत्थ
अपनी दीर्घ जटाओं को फैलाकर
मिट्टी में छिपे मूल बीज को;
और, सदियों से
अपने ही शरीर का
विश्लेषण कर रहा है
पहाड़।
ओ मेरी कल्पने,
व्यर्थ ही तू प्रयत्न कर रही है
ऊँचे अलौकिक तत्वों को छूने के लिए।
कहाँ तक ऊँची उड़ सकेगी यह पतंग
मेरे मस्तिष्क की पकड़ में?
झुक जाओ मेरे सिर
मुन्ने के जिज्ञासा-भरे प्रश्न के सामने!
गिर जाओ, हे ग्रंथ-विज्ञान
मेरे सिर पर के निरर्थक भार-से
तुम इस मिट्टी पर।
तुम्हारे पास स्तन्य को एक कणिका भी नहीं
बच्चे की बढ़ी हुई सत्य-तृष्णा को—
बुझाने के लिए।
इस नन्हीं-सी बुद्धि को थामने-सम्भालने के लिए
कोई शक्तिशाली आधार भी तुम्हारे पास नहीं!
हो सकता है
मानव की चिन्ता पृथ्वी से टकराए
और सिद्धान्त की चिंगारियाँ बिखेर दे।
पर, अंधकार में है
उस विराट सत्य की सार-सत्ता
आज भी यथावत।
घड़ियाँ भागी जा रही थीं
सौ-सौ चिन्ताओं को कुचलकर;
विस्मयकारी वेग के साथ उड़-उड़कर छिप रही थीं
खारे समुद्र की बदलती हुई भावनाएँ
अव्यक्त आकार के साथ,
अन्तरिक्ष के पथ पर।
मेरे बेटे ने प्रश्न दुहराया
माता के मौन पर अधीर होकर।
“मेरे लाल
मेरी बुद्धि की आशंका अभी तक ठिठक रही है
इस विराट प्रश्न में डुबकी लगाने के लिए,
और जिसको
तल-स्पर्शी आँखों ने भी नहीं देखा है,
उस वस्तु को टटोलने के लिए।
हम सब कहाँ से आए?
मैं कुछ भी नहीं जानती!
तुम्हारे इन नन्हें हाथों से ही
नापा जा सकता है
तुम्हारी माँ का तत्त्व-बोध।”
अपने छोटे से प्रश्न का
जब कोई सीधा प्रत्युत्तर नहीं मिल सका
तो मुन्ना मुस्कुराता हुआ बोल उठा
“माँ भी कुछ नहीं जानती।”
Balamani Amma Poems in Hindi PDF – कविताएं
- कूप्पुकई (1930)
- अम्मा (1934)
- कुटुंबनी (1936)
- धर्ममर्गथिल(1938)
- स्त्री हृदयम (1939)
- प्रभंकुरम (1942)
- भवनईल (1942)
- ऊंजलींमेल (1946)
- कालिकोट्टा (1949)
- भावनाईल (1951)
- अवार पेयदुन्नु (1952)
- प्रणामम (1954)
- लोकांठरांगलील (1955)
- सोपनाम (1958)
- मुथास्सी (1962)
- अंबलथीलेक्कू (1967)
- नगरथिल (1968)
- वाईलारुंम्पोल (1971)
- अमृथंगमया (1978)
- संध्या (1982)
- निवेद्यम (1987)
- मथृहृदयम (1988)
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