असहयोग आंदोलन Hindi PDF Summary
नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए असहयोग आंदोलन PDF in Hindi / Asahyog Andolan PDF in Hindi प्रदान करने जा रहे हैं। जैसा कि आप सभी जानते होंगे कि असहयोग आंदोलन औपचारिक रूप से शुरू हुआ था। यह आंदोलन 1 अगस्त 1920 को शुरू हुआ था। इसके बाद इस आंदोलन का प्रस्ताव 4 सितंबर 1920 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पारित हुआ।
कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में पारित होने के बाद इस आंदोलन को कांग्रेस ने इसे अपना औपचारिक आंदोलन स्वीकृत कर लिया था। यह महात्मा गांधी की देखरेख में चलाया जाने वाला प्रथम जन आंदोलन था जो कि इस आंदोलन का व्यापक जन आधार भी था। इसके अंतर्गत गाँधी जी ने कहा था कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया जाए तो भारत एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त कर लेगा।
असहयोग आंदोलन PDF in Hindi / Asahyog Andolan PDF in Hindi
असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि
- साम्राज्यवादी शासन ने ऐसे कदम उठाए जिन्होंने उसके विरुद्ध संघर्ष करना अनिवार्य कर दिया।
- ऐसे दौर(1919) में जब जनअसंतोष व्यापक रुप धारण कर रहा था और एक प्रभावी नेतृत्व उसे दिशा देने के लिए मंच पर आ गया था।
- जलियांवाला बाग( जहां जनरल डायर ने निहत्थे लोगों पर बिना चेतावनी दिए गोली चलाकर सहस्त्रों लोगों को मारा अथवा जख्मी कर दिया) का नृशंस हत्याकांड आदि ने असहयोग आंदोलन को जन्म दिया और असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की।
- यह कदम थे खिलाफत के प्रश्न पर मुस्लिम विरोधी रुख, रोलट कानून( जिससे प्रशासन को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और बिना मुकदमे के बंदे क्रम में रखने की अनुमति थी) का पारित किया जाना।
असहयोगआंदोलन का इतिहास और कार्यक्रम
महात्मा गांधी ने 1919 की घटनाओं को देखते हुए कांग्रेस के कलकत्ता विशेष अधिवेशन सितंबर 1920 में असहयोग आंदोलन को प्रारंभ करने का निर्णय लिया और इस संबंध में प्रस्ताव पारित करवाया असहयोग आंदोलन प्रस्ताव के लेखक स्वयं महात्मा गांधी थे। असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव सी.आर.दास द्वारा रखा गया दिसंबर 1920 के नागपुर वार्षिक अधिवेशन में पुनः इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई।
असहयोग आंदोलन को निम्न मुख्य मांगों (असहयोग आंदोलन के कारण) पर बल देने हेतु प्रारंभ किया गया था –
- खिलाफत मुद्दा
- रोलट एक्ट
- पंजाब में जलियांवाला बाग और उसके बाद के उत्पीड़न के विरुद्ध न्याय की मांग
- स्वराज्य प्राप्ति
- महात्मा गांधी प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार के साथ सहयोग करने के पक्ष में थे लेकिन 1919 में हुई चार मुख्य घटनाओं के बाद महात्मा गांधी का ब्रिटिश सरकार की न्यायप्रियता और इमानदारी में विश्वास खत्म हो गया और उन्होंने असहयोग आंदोलन चलाने का निर्णय लिया। इसके लिए महात्मा गांधी ने सितंबर 1920 में कार्यक्रम पर विचार करने के लिए कोलकाता में कांग्रेस का अधिवेशन आयोजित किया गया।
- इस अधिवेशन में गांधी जी ने असहयोग प्रस्ताव पेश करते हुए कहां अंग्रेजी सरकार शैतान है जिसके पास सहयोग संभव नहीं अंग्रेज सरकार को अपनी भूलों पर कोई दुख नहीं है अतः हम कैसे स्वीकार कर सकते हैं कि नवीन व्यवस्थापिका है हमारे स्वराज का मार्ग प्रशस्त करेगी अतः हम स्वराज्य प्राप्ति के लिए हमारे द्वारा प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनाई जानी चाहिए।
- गांधीजी के इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए एनी बेसेंट ने कहा यह प्रस्ताव भारतीय स्वतंत्रता को सबसे बड़ा धक्का है एक मूर्खतापूर्ण विरोध और समाज और सभी जीवन के विरुद्ध संघर्ष की घोषणा है सुरेंद्रनाथ बनर्जी मदन मोहन मालवीय देशबंधु चितरंजन दास विपिन चंद्र पाल मोहम्मद अली जिन्ना शंकरन नायर और सर नारायण चंद्रावरकर ने प्रारंभ में इस प्रस्ताव का विरोध किया फिर भी अली बंधुओं और मोतीलाल नेहरु के समर्थन से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया यही वर्षण था जहां से गांधी युग की शुरुआत हुई।
- दिसंबर 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में असहयोग प्रस्ताव से संबंधित लाला लाजपत राय और चितरंजन दास ने अपना विरोध वापस ले लिया। गांधीजी ने नागपुर में कांग्रेस के पुराने लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य के अंतर्गत स्वशासन के स्थान पर स्वराज का नया लक्ष्य घोषित किया उन्होंने यह भी कहा कि यदि आवश्यक हुआ तो स्वराज के लक्ष्य को अंग्रेजी साम्राज्य के बाहर भी प्राप्त किया जा सकता है।
- एनी बेसेंट मोहम्मद अली जिन्नाह विपिन चंद्र पाल जी एस खापर्डे जैसे नेताओं ने गांधी जी के प्रस्ताव से असंतुष्ट होकर कांग्रेस को त्याग दिया। नागपुर अधिवेशन का ऐतिहासिक दृष्टिकोण से इसलिए महत्व है क्योंकि यहां पर वैधानिक साधनों के अंतर्गत स्वराज प्राप्ति के लक्ष्य को त्यागकर सरकार का सक्रिय विरोध करने की बात स्वीकार की गई।
प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार
- अप्रैल, 1921 में प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर उनका सर्वत्र काला झण्डा दिखाकर स्वागत किया गया। गांधी जी ने अली बन्धुओं की रिहाई न किये जाने के कारण प्रिन्स ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन का बहिष्कार किया।
- 17 नवम्बर 1921 को जब प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बम्बई, वर्तमान मुम्बई आगमन हुआ, तो उनका स्वागत राष्ट्रव्यापी हड़ताल से हुआ। इसी बीच दिसम्बर, 1921 में अहमदाबाद में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ।
- यहाँ पर असहयोग आन्दोलन को तेज़ करने एवं सविनय अवज्ञा आन्दोलन चलाने की योजना बनी।
आन्दोलन समाप्ति का निर्णय
- इसी बीच 5 फ़रवरी 1922 को गोरखपुर ज़िले के चौरी- चौरा नामक स्थान पर पुलिस ने जबरन एक जुलूस को रोकना चाहा, इसके फलस्वरूप जनता ने क्रोध में आकर थाने में आग लगा दी, जिसमें एक थानेदार एवं 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गई।
- इस घटना से गांधी जी स्तब्ध रह गए। 12 फ़रवरी 1922 को बारदोली में हुई कांग्रेस की बैठक में असहयोग आन्दोलन को समाप्त करने के निर्णय के बारे में गांधी जी ने यंग इण्डिया में लिखा था कि, “आन्दोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मैं हर एक अपमान, हर एक यातनापूर्ण बहिष्कार, यहाँ तक की मौत भी सहने को तैयार हूँ।”
- अब गांधी जी ने रचनात्मक कार्यों पर ज़ोर दिया।
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