आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी PDF | Aditya Hridaya Stotra PDF in Hindi

आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी PDF | Aditya Hridaya Stotra Hindi PDF Download

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आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी PDF | Aditya Hridaya Stotra Hindi PDF Summary

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र हिंदी PDF / Aditya Hridaya Stotra in Hindi PDF download free में प्रदान करने जा रहे हैं। आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य नारायण जी को समर्पित है। यह अत्यंत ही चमत्कारी एवं प्रभावशाली स्तोत्र है। सनातन हिन्दू धर्म के अनुसार सूर्यदेव जी को विश्वभर में बहुत ही बड़े स्तर पर पूजा जाता है।

माना जाता है कि सूर्यदेव जी का पूजन करने से मनुष्य के जीवन से नकारात्मक्ता का अंत हो जाता है तथा दिव्य सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। सूर्यदेव जी को मान -सम्मान तथा प्रतिष्ठा का देव माना जाता है। जो भी व्यक्ति भगवान सूर्य का पूजन प्रतिदिन श्रद्धा-भाव से करता है उसे समाज में मान-प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।

कहा जाता है कि यदि आपको किसी भी प्रकार का नेत्र रोग है तो इसके निवारण हेतु सूर्यदेव जी का पूजन अवश्य करना चाहिए। इसी के साथ यदि आप भी सूर्यदेव जी की विशेष कृपा प्राप्त करना चाहते हैं, तो नियमित रूप से विधिवत सम्पूर्ण आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें। यदि आप प्रतिदिन इस स्तोत्र का पाठ करने में असमर्थ हैं तो इस स्तोत्र का पाठ केवल रविवार के दिन अवश्य करें।

आदित्य हृदय स्तोत्र (हिंदी PDF) / Aditya Hridaya Stotra PDF in Hindi

॥ विनियोग॥

ॐ अस्य आदित्यह्रदय स्तोत्रस्यअगस्त्यऋषि: अनुष्टुप्छन्दः आदित्यह्रदयभूतो।

भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतयाब्रह्माविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः॥

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्।

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्॥१॥

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्।

उपागम्याब्रवीद्राममगस्त्यो भगवान् ऋषिः॥२॥

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्।

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसि॥३॥

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्।

जयावहं जपेन्नित्यम् अक्षय्यं परमं शिवम्॥४॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्।

चिन्ताशोकप्रशमनम् आयुर्वर्धनमुत्तमम्॥५॥

रश्मिमंतं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्।

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्॥६॥

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः।

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः॥७॥

एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः।

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः॥८॥

पितरो वसवः साध्या ह्यश्विनौ मरुतो मनुः।

वायुर्वह्निः प्रजाप्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः॥९॥

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्।

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः॥१०॥

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्।

तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्ताण्ड अंशुमान्॥११॥

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनो भास्करो रविः।

अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः॥१२॥

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः।

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवङ्गमः॥१३॥

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः।

कविर्विश्वो महातेजाः रक्तः सर्वभवोद्भवः॥१४

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः।

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते॥१५॥

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः।

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः॥१६॥

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः।

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः॥१७॥

नम उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः।

नमः पद्मप्रबोधाय मार्ताण्डाय नमो नमः॥१८॥

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूर्यायादित्यवर्चसे।

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः॥१९॥

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने।

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः॥२०॥

तप्तचामीकराभाय वह्नये विश्वकर्मणे।

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे॥२१॥

नाशयत्येष वै भूतं तदेव सृजति प्रभुः।

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः॥२२॥

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः।

एष एवाग्निहोत्रं च फलं चैवाग्निहोत्रिणाम्॥२३॥

वेदाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव च।

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्व एष रविः प्रभुः॥२४॥

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तातेषु भयेषु च।

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव॥२५॥

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्।

एतत् त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि॥२६॥

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं वधिष्यसि।

एवमुक्त्वा तदागस्त्यो जगाम च यथागतम्॥२७॥

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत्तदा।

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान्॥२८॥

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वा तु परं हर्षमवाप्तवान्।

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान्॥२९॥

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा युद्धाय समुपागमत्।

सर्वयत्नेन महता वधे तस्य धृतोऽभवत्॥३०॥

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः।

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति॥३१॥

॥ इति आदित्यहृदयम् मन्त्रस्य ॥

सूर्य भगवान की आरती / Surya Dev Aarti Lyrics in Hindi PDF

जय कश्यप-नन्दन,ॐ जय अदिति नन्दन।

त्रिभुवन – तिमिर – निकन्दन,भक्त-हृदय-चन्दन॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सप्त-अश्वरथ राजित,एक चक्रधारी।

दु:खहारी, सुखकारी,मानस-मल-हारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सुर – मुनि – भूसुर – वन्दित,विमल विभवशाली।

अघ-दल-दलन दिवाकर,दिव्य किरण माली॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सकल – सुकर्म – प्रसविता,सविता शुभकारी।

विश्व-विलोचन मोचन,भव-बन्धन भारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

कमल-समूह विकासक,नाशक त्रय तापा।

सेवत साहज हरतअति मनसिज-संतापा॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

नेत्र-व्याधि हर सुरवर,भू-पीड़ा-हारी।

वृष्टि विमोचन संतत,परहित व्रतधारी॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

सूर्यदेव करुणाकर,अब करुणा कीजै।

हर अज्ञान-मोह सब,तत्त्वज्ञान दीजै॥

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

आदित्य हृदय स्तोत्र के फायदे PDF / Benefits of Chanting Aditya Hridaya Stotra in Hindi PDF

  • आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से मनुष्य के पुराने से पुराने रोग का भगवान सूर्य नारायण जी की कृपा से शीघ्र ही नाश हो जाता है।
  • यदि आप इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करते हैं तो आपको अपने जीवन में सभी प्रकार की सुख तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • हिन्दू धर्म के अनुसार आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों की मनचाहे वरदान की प्राप्ति होती है।
  • जीवन के हर क्षेत्र में उन्नति, ख्याति आदि प्राप्त करने के लिए आपको इस स्तोत्र का पाठ पूर्ण श्रद्धा से अवश्य करना चाहिए।
  • किसी भी जातक के जीवन में कोई भी कार्य ठीक प्रकार से न हो रहा हो या बंता काम बिगड़ रहा हो तो उसके लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ अत्यंत ही सुलभ एवं सरल उपाय है।

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