आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्य में स्थान PDF Hindi

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आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्य में स्थान Hindi - Description

नमस्कार मित्रों, आज इस लेख के माध्यम से हम आप सभी के लिए आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्य में स्थान PDF निशुल्क प्रदान करने जा रहे हैं। हिन्दी निबन्ध को नया आयाम प्रदान करने वाले शुक्ल जी हिन्दी साहित्य के आलोचक, निबन्धकार एवं युग प्रवर्तक साहित्यकार थे। इनके समकालीन हिन्दी गद्य के काल को ‘शुक्ल युग’ के नाम से जाना जाता है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का साहित्य में सदा से एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण एवं विशेष स्थान रहा है क्योंकि उन्होनें अपने सम्पूर्ण जीवन में हिन्दी साहित्य में अपना बहुत अधिक योगदान दिया था। इनकी साहित्यिक सेवाओं के फलस्वरूप हिन्दी को विश्व साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हो सका। इसीलिए हिन्दी साहित्य में इनकी एक अलग ही पहचान मानी जाती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल अपने संपूर्ण जीवन में साहित्य की सेवा में ही लगे रहे थे।

उन्होंने हिंदी साहित्य को अपनी अत्यंत ही अमूल्य कृतियाँ प्रदान की थी। शुक्ल जी का साहित्यिक जीवन काव्य रचना से प्रारंभ हुआ था और इसके बाद वे एक निबंधकार संपादक और समालोचक के रूप में उभरे। उन्होंने आनंद कादंबिनी, नागरी प्रचारिणी सभा, हिंदी शब्द सागर जैसी पत्रिकाओं में संपादक का काम भी किया। इसीलिए यदि यज जानकारी आपको अच्छी लगी हो और इस विषय पर और अधिक जानकारी चाहते हैं तो acharya ramchandra shukla का sahitya में स्थान pdf प्रारूप में इस लेख के द्वारा आसानी से प्राप्त कर सकते हैं।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल का साहित्य में स्थान PDF

  • आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी हिन्दी के पहले ऐसे समीक्षक हैं जिन्होंने वैविध्यपूर्ण जीवन के ताने बाने में गुंफित काव्य के गहरे और व्यापक लक्ष्यों का साक्षात्कार करने का वास्तविक प्रयत्न किया।
  • शुक्ल जी ने ‘भाव या रस’ को काव्य की आत्मा माना है, पर उनके विचार से काव्य का अंतिम लक्ष्य आनन्द नहीं माना गया है बल्कि विभिन्न भावों के परिष्कार, प्रसार और सामंजस्य द्वारा लोकमंगल की प्रतिष्ठा को माना गया है।
  • रामचंद्र जी की दृष्टि से महान् काव्य वह है जिससे जीवन की क्रियाशीलता उजागर हुई हो। इसे उन्होंने काव्य में लोकमंगल की साधनावस्था कहा है। शुक्ल जी की समस्त मौलिक विचारणा लोकजीवन के मूर्त आदर्शों से प्रतिबद्ध है। शुक्ल जी की स्थापनाएँ शास्त्रबद्ध उतनी नहीं हैं जितनी मौलिक।
  • उन्होंने अपनी लोकभावना और मनोवैज्ञानिक दृष्टि से काव्यशास्त्र का संस्कार किया। इस दृष्टि से वे आचार्य कोटि में आते हैं। काव्य में लोकमंगल की भावना शुक्ल जी की समीक्षा की शक्ति भी है और सीमा भी। उसकी शक्ति काव्यनिबद्ध जीवन के व्यावहारिक और व्यापक अर्थों के मार्मिक अनुसंधान में निहित है, पर उनकी आलोचना का पूर्वनिश्चित नैतिक केंद्र उनकी साहित्यिक मूल्यचेतना को कई अवसरों पर सीमित भी कर देता है।
  • उनकी मनोवैज्ञानिक दृष्टि आलोच्य कवि की मनोगति की पहचान में अद्वितीय है। जायसी, सूर और तुलसी की समीक्षाओं द्वारा शुक्ल जी ने व्यावहारिक आलोचना का उच्च प्रतिमान प्रस्तुत किया।
  • इनमें शुक्ल जी की काव्यमर्मज्ञता, जीवनविवेक, विद्वत्ता और विश्लेषणक्षमता का असाधारण प्रमाण मिलता है। काव्यगत संवेदनाओं की पहचान, उनके पारदर्शी विश्लेषण और यथातथ्य भाषा के द्वारा उन्हें पाठक तक संप्रेषित कर देने की उनमें अपूर्व सामर्थ्य है। इनके हिंदी साहित्य के इतिहास की समीक्षाओं में भी ये विशेषताएँ स्पष्ट हैं।
  • रामचंद्र शुक्ल जी के मनोविकार सम्बंधी निबन्ध परिणत प्रज्ञा की उपज हैं। इनमें भावों का मनोवैज्ञानिक रूप स्पष्ट किया गया है तथा मानव जीवन में उनकी आवश्यकता, मूल्य और महत्व का निर्धारण हुआ है। भावों के अनुरूप ही मनुष्य का आचरण ढलता है- इस दृष्टि से शुक्ल जी ने उनकी सामाजिक अर्थवत्ता का मनोयोगपूर्वक अनुसंधान किया।
  • उन्होंने मनोविकारों के निषेध का उपदेश देनेवालों पर जबर्दस्त आक्रमण किया और मनोवेगों के परिष्कार पर जोर दिया। ये निबंध व्यावहारिक दृष्टि से पाठकों को अपने आपको और दूसरों को सही ढंग से समझने में मदद देते हैं तथा उन्हें सामाजिक दायित्व और मर्यादा का बोध कराते हैं।
  • समाज का संगठन और उन्नयन करनेवाले आदर्शों में आस्था इन रचनाओं का मूल स्वर है। भावों को जीवन की परिचित स्थितियों से संबद्ध करके काव्य की दृष्टि से भी उनका प्रामाणिक निरूपण हुआ है। अपने सर्वोत्तम रूप में शुक्ल जी का विवेचनात्मक गद्य पारदर्शी है। गहन विचारों को सुसंगत ढंग से स्पष्ट कर देने की उनमें असामान्य क्षमता है। उनके गद्य में आत्मविश्वासजन्य दृढ़ता की दीप्ति है। उसमें यथातथ्यता और संक्षिप्तता का विशिष्ट गुण पाया जाता है।
  • शुक्ल जी की सूक्तियाँ अत्यंत अर्थगर्भ होती हैं। उनके विवेचनात्मक गद्य ने हिंदी गद्य पर व्यापक प्रभाव डाला है। शुक्ल जी का ‘हिंदी साहित्य का इतिहास’ हिंदी का गौरवग्रंथ है। साहित्यिक प्रवृत्तियों के आधार पर किया गया कालविभाग, साहित्यिक धाराओं का सारर्थक निरूपण तथा कवियों की विशेषताबोधक समीक्षा इसकी प्रमुख विशेषताएँ हैं।
  • शुक्ल जी की कविताओं में उनके प्रकृतिप्रेम और सावधान सामाजिक भावों द्वारा उनका देशानुराग व्यंजित है। इनके अनुवादग्रंथ भाषा पर इनके सहज आधिपत्य के साक्षी हैं।
  • आचार्य शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार थे। जिस क्षेत्र में भी कार्य किया उसपर उन्होंने अपनी अमिट छाप छोड़ी। आलोचना और निबंध के क्षेत्र में उनकी प्रतिष्ठा युगप्रवर्तक की है। “काव्य में रहस्यवाद” निबंध पर इन्हें हिन्दुस्तानी अकादमी से ५०० रुपये का तथा चिंतामणि पर हिन्दी साहित्य सम्मलेन, प्रयाग द्वारा १२०० रुपये का मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ था।

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